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Kurukshetra News : 1992 से किचन गार्डनिंग कर रहा किसान रणधीर सिंह, 35 प्रकार की सब्जी, 16 बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम हो चुका दर्ज

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  • ऑर्गेनिक तरीके से करता है किचन गार्डनिंग

  • किचन गार्डनिंग को ऑर्गेनिक तरीके से करने के चलते भारत में सबसे पहले मिल चुका है ऑर्गेनिक खेती करने का राष्ट्रीय अवार्ड

India News Haryana (इंडिया न्यूज), Kurukshetra News : भारत में बड़े स्तर पर कृषि की जा रही है और ज्यादा उत्पादन लेने के लिए जहां कृषि विशेषज्ञ फल व सब्जियों सहित अन्य फसलों की नई-नई किस्में ईजाद कर रहे हैं वहीं फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए किसान अंधाधुंध पेस्टिसाइड का प्रयोग करते जा रहे हैं। इससे पैदावार में बढ़ोतरी तो जरूर होती है लेकिन कहीं न कहीं उससे मिलने वाली फल सब्जियां और अन्य फसलों से इंसान बीमार भी होते जा रहे हैं, लेकिन अब कुछ ऐसे किसान भी हैं जो रासायनिक खेती छोड़कर ऑर्गेनिक खेती या ये कहें प्राकृतिक खेती की तरफ रूख कर रहे हैं।

Kurukshetra News : रसायन खेती मानव जीवन के लिए खतरनाक!

सरकार और कृषि विभाग को भी यह समझ में आ गया है कि रसायन खेती मानव जीवन के लिए आने वाले समय में और भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है इसके लिए अब वह भी प्राकृतिक खेती और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने लगे हैं। ऐसे ही एक किसान रणधीर सिंह हैं जो कुरुक्षेत्र के सेक्टर 8 से हैं जो पिछले करीब 30 साल से ऊपर के समय से प्राकृतिक खेती के तौर पर किचन गार्डन करते आ रहे हैं और उन्होंने किचन गार्डन में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं।

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1992 से किया किचन गार्डन शुरू

किसान रणधीर सिंह ने बताया कि पहले वह कैथल के एक गांव में रहते थे। वहां पर स्कूल समय में उनका खेती करने में काफी दिलचस्पी थी। जिसके चलते उन्होंने थोड़ी पढ़ाई करने के बाद ही 1972 में अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती करनी शुरू की। लेकिन बच्चे बड़े होने के बाद जब वह नौकरी पर लग गए तब वह कैथल को छोड़कर कुरुक्षेत्र में रहने लगे। यहां पर वह कुरुक्षेत्र शहर में रहते हैं और जैसे ही एक दिन वह सब्जी की दुकान से सब्जी खरीदकर लाए तो उस सब्जी को खाकर उन्हें उल्टी हो गई, जिसके बाद उन्होंने मन बना लिया था कि वह अब खुद ही प्राकृतिक तरीके से ऑर्गेनिक खेती करेंगे और खुद भी स्वस्थ रहेंगे और अपने परिवार को भी स्वस्थ रखेंगे।

इतना ही नहीं, दूसरे किसानों को भी वह प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरित करेंगे और नए-नए प्रयोग करके ऑर्गेनिक खेती को नए आयाम तक पहुंचाएंगे। जिसके चलते उन्होंने 1992 में अपने घर के बाहर किचन गार्डन शुरू किया जो बिल्कुल ऑर्गेनिक तरीके से तैयार किया गया और उस किचन गार्डन में उन्होंने इतनी मेहनत की, वहां पर लगाई गई फसल पूरे भारत में मशहूर हो गई। उन्होंने कहा कि अब उनका मकसद यह है कि उनके साथ-साथ भारत के और किसान भी ऑर्गेनिक तरीके से खेती करें।

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किचन गार्डन में लगाते हैं कई तहर सब्जियां, फल और फसलें

किसान रणधीर सिंह ने कहा कि उन्होंने किचन गार्डन छोटे स्तर से शुरू किया था लेकिन अब उनके पास एक समय में आलू, टमाटर, गोभी, घीया, मटर, बंद गोभी, ब्रोकली, लहसुन, प्याज, लौकी, पालक, मेथी, नींबू, चुकंदर, मूली, गाजर, धनिया, तोरी सहित करीब 35 सब्जियां हैं। इसके साथ वह जड़ी बूटी भी लगा चुके हैं जो बिल्कुल ऑर्गेनिक तरीके से तैयार की जाती है। इतना ही नहीं, उन्होंने सब्जियों के साथ-साथ गन्ना और कई प्रकार के फल भी लगाए हुए हैं। यह फल और अन्य फसलें भी उन्होंने ऑर्गेनिक तरीके से तैयार किए हैं जो खाने में तो स्वादिष्ट होते ही हैं। उसके साथ उनकी गुणवत्ता भी काफी अच्छी है। उन्होंने कहा कि हालांकि अब उनकी उम्र भी काफी ज्यादा हो गई है लेकिन इसके बावजूद वह किचन गार्डन चला रहे हैं और अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं।

किचन गार्डन में उगाई सब्जियों से लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज करवा चुके नाम

किसी भी इंसान का सपना होता है कि वह जिस क्षेत्र में काम कर रहा है उसमें वह विश्वविख्यात हो और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड जैसे रिकॉर्ड में उसका कम से कम एक बार नाम दर्ज हो। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि ऑर्गेनिक तरीके से किचन गार्डन लगाने वाले किसान रणधीर सिंह इस किचन गार्डन में लगाई गई सब्जी और अन्य फसलों पर 16 बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं जो एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है।

भारत की सबसे लंबी घीया 6 फुट 2 इंच की तैयार कर चुके

किसान रणधीर सिंह ने बताया कि उन्होंने भारत की सबसे लंबी घीया (लौकी) 6 फुट 2 इंच की तैयार की हुई है। जिसके चलते उनका नाम चार बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो चुका है। उन्होंने लहसुन में भी दो बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवाया है। उन्होंने भारत में सबसे पहले लहसुन की एक गांठ 500 ग्राम और 700 ग्राम की तैयार की थी, जिसके चलते उनका लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड मिला था। उन्होंने कहा कि कोरोना काल के समय भी उन्होंने 920 ग्राम का लहसुन तैयार किया था लेकिन कोरोना काल के चलते उसे समय लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड नहीं दिया गया।

करेला में भी उनको दो लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड मिले हुए हैं। जबकि शलगम में भी उनको दो लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड मिले हुए हैं। अरबी में भी उनको लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड मिला हुआ है उन्होंने एक अरबी की गांठ 3 किलो 250 ग्राम की तैयार की थी। एक सतावर और दो रतालू में भी उन्होंने लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड का किताब अपने नाम दर्ज करवाया हुआ है। ऐसे ही अलग-अलग कुल मिलाकर उनका अब तक किचन गार्डन में प्राकृतिक तरीके से सब्जी तैयार करने में टोटल 16 बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के किताब से नवाजा गया है।

ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने पर भारत के प्रथम किसान के तौर पर मिल चुका राष्ट्रीय पुरस्कार

उन्होंने कहा कि वह 1992 से ऑर्गेनिक तरीके से खेती कर रहे हैं जिसके चलते उनको 2001 में सरकार के द्वारा ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने के चलते नेशनल अवार्ड से नवाजा गया था। अवार्ड मिलने वाले वह पहले ऐसे किसान थे जो भारत में ऑर्गेनिक तरीके से खेती कर रहे थे और बड़े-बड़े कीर्तिमान स्थापित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वह अपने सब्जियों को लेकर हरियाणा और पंजाब किसान मेलों में जाते हैं जिसके चलते उन्हें 219 बार प्रथम और द्वितीय पुरस्कार भी मिले हुए हैं। हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार के द्वारा रणधीर सिंह को कृषि रतन और राय बहादुर जैसे बड़े पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

ऑर्गेनिक खेती को दे रहे बढ़ावा, किसानों को फ्री में देते हैं फसलों के बीज

किसान रणधीर सिंह का कहना है कि उनका अब यह मकसद है कि उनके साथ-साथ अन्य किसान भी ऑर्गेनिक तरीके से खेती करें। वह अपने किचन गार्डन में किसी भी प्रकार के रसायन का प्रयोग नहीं करते वह जीव अमृत गोलमृत बनाकर उनका प्रयोग करते हैं या फिर देसी खाद उसके अंदर डालते हैं जिससे वह अच्छी पैदावार लेते हैं उन्होंने कहा कि रसायन के प्रयोग से हमारी फसले और सब्जियों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि पैदावार ज्यादा निकलती है लेकिन उसे मानव स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है इसलिए वह अब दूसरे किसानों को भी ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं ताकि वह खुद भी स्वस्थ रहें और दूसरों को भी स्वस्थ रखें। उन्होंने कहा कि वह किसानों को अपने द्वारा तैयार किए गए अवॉर्डी सब्जियों के बीज फ्री में देते हैं ताकि वह भी इस प्रकार की खेती करके खुद भी अपना नाम कमाएं और अपने देश और प्रदेश का नाम भी और रोशन करें।

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