1 जनवरी, 2025 से स्विट्जरलैंड, भारत के साथ मोस्ट-फेवर्ड-नेशन क्लॉज को खत्म करने का फैसला किया है।
इस फैसले का सीधा असर नेस्ले जैसी स्विस कंपनियों पर पड़ेगा, जिन्हें अब लाभांश पर ज्यादा टैक्स देना होगा।
स्विट्जरलैंड सरकार के इस कदम से भारतीय बाजार में स्विस निवेश प्रभावित हो सकता है।
जिसमें यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के तहत 100 बिलियन डॉलर का निवेश प्रस्तावित है।
स्विट्जरलैंड का यह कदम भारत के सुप्रीम कोर्ट के 2023 के फैसले के जवाब में है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी देश DTAA के तहत तब तक लाभ नहीं उठा सकता जब तक कि उसकी शर्तें पूरी न हों।
यदि नेस्ले को अधिक कर देना पड़ता है, तो वह अपने उत्पादों के माध्यम से उस कर का बोझ ग्राहकों पर डाल सकती है।
यह विकास उन भारतीय और विदेशी कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण है जो अंतर्राष्ट्रीय कर संधियों पर निर्भर हैं।
इससे पता चलता है कि अब कंपनियों को अपनी निवेश और कराधान रणनीतियों को बदलने की जरूरत है।