तवायफों की जिंदगी का सबसे बूरा दिन वो रहता था जब उसकी बोली लगाई जाती थी
तवायफों की जब बोली लगाई जाती थी तो अंतिम बार वो महफिल में मुजरा किया करती थी
ये आखिरी मुजरा एक रस्म हुआ करती थी जिसे पेश करते हुए तवायफ रोने लगती थी
बता दें कि ये रस्म तवायफ पर जबरदस्ती थोप दी जाती थी और रस्म से पहले उन्हें
मारा पीटा और खाना-पीना बंद कर देने वाला घिनौना काम किए जाते थे
ऐसा इसलिए होता था क्योंकि तवायफ अपनी बोली नहीं लगवाना चाहती थी
जो भी तवायफ की ज्यादा बोली लगाता था उसे तवायफ को सौंप दिया जाता था
अक्सर तवायफें बोली के बाद अपनी जिंदगी खत्म कर लिया करती थी