P.C- Pinterst
प्राचीन हिंदू पुराणों में शिव और श्री कृष्ण के बीच हुए एक अद्भुत संग्राम की कथा मिलती है, जिसमें वाणासुर की भूमिका अहम रही।
राजा बलि के पुत्र वाणासुर ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे सहस्र भुजाओं का वरदान प्राप्त किया।
इस वरदान के कारण वाणासुर अपार शक्तिशाली हो गया और उसका भय सभी के दिलों में बैठ गया उसे अपने बल का अभिमान हो गया।
वाणासुर की यह शक्ति और उसका घमंड ही उसके विनाश का कारण बना उसकी शक्ति का गलत प्रयोग और अत्याचार बढ़ते गए, जिसके परिणामस्वरूप भगवान श्री कृष्ण को इस स्थिति का सामना करना पड़ा।
शिव और कृष्ण के बीच इस युद्ध का वर्णन पुराणों में विस्तार से किया गया है, जिसमें ईश्वरीय शक्तियों का टकराव और उसके परिणाम का उल्लेख है।
यह कथा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि अहंकार और शक्ति का गलत उपयोग किसी के लिए भी विनाशकारी हो सकता है।
वाणासुर का उदय और पतन इस बात का जीवंत उदाहरण है कि किसी भी शक्ति का संतुलित उपयोग ही सच्ची विजय की ओर ले जाता है।