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Haryana Assembly Land Issue : विधानसभा जमीन पर सियासी बवाल, छह दशक बाद भी प्रदेश अपने हकों से मरहूम

• LAST UPDATED : November 16, 2024
  • हरियाणा को विधानसभा चंडीगढ़ में अब तक उसका निर्धारित 40 फीसद हिस्सा नहीं मिला

India News Haryana (इंडिया न्यूज), Haryana Assembly Land Issue : हरियाणा विधानसभा की नई बिल्डिंग बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा 11 नवंबर को एक गैजेट नोटिफिकेशन जिसमें हरियाणा को पंचकूला से सटे चंडीगढ़ के आईटी पार्क में जमीन देने पर सहमति दी है, के बाद सियासी गलियारों में बवाल मचा हुआ है। हरियाणा और पंजाब के सभी पार्टियों के राजनेता मामले को लेकर आमने-सामने हैं। केंद्र और हरियाणा में भाजपा की सरकार है, लेकिन खुद पंजाब जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है, के भाजपा नेता केंद्र सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं। पंजाब कांग्रेस, भाजपा और शिअद के नेता भगवंत मान के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी आलोचना कर रहे हैं और चूंकि चंडीगढ़ पर हरियाणा और पंजाब दोनों का हिस्सा निर्धारित है तो मामले का राजनीतिक रंग लेना वाजिब है।

Haryana Assembly Land Issue : प्रदेश में सत्ता पक्ष और विपक्ष मामले पर कुछ हद तक असहमत

पूरे मामले पर हरियाणा में सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के नेता भी ये कहते हुए एकजुट नजर आ रहे हैं कि पंजाब ने हरियाणा के जो वादे किए थे, उनकाे पूरा नहीं किया। सीएम नायब सिंह सैनी ने विधानसभा के लिए जमीन दिए जाने का स्वागत किया और कहा कि जल्द काम शुरू होगा। नायब सैनी बोले कि चंडीगढ़ पर हरियाणा का भी हक है, भगवंत मान गलत राजनीति से ऊपर उठकर काम कर रहे हैं।

हरियाणा के मंत्री अनिल विज ने भी कहा था कि पंजाब के सीएम भगवंत सिंह मान चंडीगढ़ पर हक जमाते हैं, लेकिन चंडीगढ़ तब उनका है, जब वह विभाजन में मिला हिंदी भाषी क्षेत्र हरियाणा को स्थानांतरित कर देंगे। कांग्रेस दिग्गज भूपेंद्र सिंह हु़ड्डा ने कहा कि हरियाणा के विधानसभा भवन के लिए चंडीगढ़ को जमीन के बदले जमीन हस्तांतरित ही नहीं की जानी चाहिए थी, क्योंकि चंडीगढ़ में हरियाणा का 40 फीसदी हक है।

मामले पर पंजाब में भाजपा, कांग्रेस, शिअद समेत तमाम विपक्षी दल एकजुट

विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा का कहना है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान का बीजेपी के साथ समझौता हो गया है और यह वही मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने उत्तर क्षेत्रीय कॉन्फ्रेंस में न्यू चंडीगढ़ में पंजाब के लिए नए हाईकोर्ट की मांग की थी। भाजपा के प्रधान सुनील जाखड़ ने कहा कि यह राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान की नाकामी है। अपने मीडिया पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि पंजाब की राजधानी के रूप में चंडीगढ़ न केवल एक भूमि क्षेत्र है, बल्कि इससे पंजाब के लोगों की गहरी भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं।

उन्होंने आगे लिखा, पंजाब और केंद्र/दिल्ली के बीच मजबूत संबंध बनाए रखने के लिए इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और मैं प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करने और इस फैसले को रद्द करने की अपील करता हूं। शिरोमणी अकाली दल ने कहा है कि केंद्र शासित प्रदेश में हरियाणा को जमीन आवंटित करने का कोई भी निर्णय असंवैधानिक होगा, क्योंकि यह अनुच्छेद 3 का उल्लंघन होगा, जिसके तहत केवल संसद ही राज्य की सीमाओं को बदल सकती है।

समझौते के तहत हरियाणा को 40 फीसद हिस्सा मिलना था, अब तक नहीं मिला

हरियाणा 1966 में पंजाब से अलग होकर अस्तित्व में आया था और दोनों राज्यों के बीच संसाधनों का एक निश्चित हिस्सा बांटा गया था। इसके बाद यह निर्णय लिया गया था कि विधानसभा भवन में हरियाणा को 40 प्रतिशत हिस्सा दिया जाएगा। हालांकि, हरियाणा विधानसभा के पास भवन में मात्र 27 प्रतिशत हिस्सा होने के कारण राज्य अभी भी अपने हिस्से से वंचित है और यह तथ्य इसके कामकाज को प्रभावित कर रहा है। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि हरियाणा को वह हिस्सा भी नहीं दिया जा रहा जो अलग होने के समय तय किया गया था।

परिसीमन के बाद करीब एक तिहाई सीट बढ़ जाएंगी

राज्य विधानसभा में 90 विधायक हैं और 2026 में विधानसभाओं की सीटें बढ़कर 120 से ज्यादा हो जाएंगी, जिसके लिए भवन में अतिरिक्त जगह की आवश्यकता होगी। बार-बार मांग के बावजूद हरियाणा के बड़े भाई पंजाब ने इसे नजरअंदाज किया और अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहा। इसी को ध्यान में रखते हुए साल 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को नए विधानसभा भवन के निर्माण के लिए केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में जमीन उपलब्ध कराने के लिए पत्र लिखा था जिसको लेकर अब नोटिफिकेशन जारी हो गया है।

राजधानी पर पंजाब का ही क्यों हक हो, हरियाणा भी बराबर दावेदार

पंजाब में सरकार चाहे कोई भी रही हो, हरियाणा के हितों की अनदेखी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। ऐसा एकतरफा रवैया दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी और यूटी चंडीगढ़ के मामले में भी रहा है। पंजाब का एकतरफा कहना रहा है कि चंडीगढ़ पूरी तरह से पंजाब की राजधानी है। इसकी बानगी इस बात से भी देखने को मिलती है कि जो भी पंजाब का राज्यपाल होता है, वहीं चंडीगढ़ का प्रशासक भी होता है।

पंजाब ने अप्रत्यक्ष रूप से साफ कर रहा है और साल 2016 के एक वाक्यात से सब साफ हो जाता है। उस वक्त पूर्व नौकरशाह और भाजपा नेता केजे अलफोंस को चंडीगढ़ का प्रशासक बनाया गया था। इसको लेकर अकाली दल ने केंद्र सरकार के सामने कड़ी आपत्ति उस वक्त जाहिर की थी कि ऐसा करना गलत होगा। हमेशा ये ही परंपरा रही है कि पंजाब का गर्वनर ही यूटी चंडीगढ़ का प्रशासक होता है। अगर किसी बाहरी व्यक्ति को गर्वनर बनाया गया तो इससे यूटी चंडीगढ़ पर पंजाब का हक कमजोर होगा।

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पंजाब ने न 400 गांव दिए, न ही आज तक एसवाईएल का पानी, पीयू का मामला भी लंबित

वहीं मालूम रहे कि हरियाणा और पंजाब के बीच कई दशक से सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) का मामला लंबित है। वर्षों पहले सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसकी अनुपालना करने की बजाय तत्कालीन पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

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दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की कई दफा मामले को लेकर बैठक भी हो चुकी है, लेकिन पंजाब निरंतर हरियाणा को उसके हिस्से का पानी देने से इंकार करता रहा है। इसके अलावा पंजाब द्वारा हरियाणा को 400 हिंदी भाषी गांव भी दिए जाने थे और आज तक भी ये गांव पंजाब में ही हैं। हरियाणा को ये गांव नहीं दिए गए हैं।

हरियाणा लंबे समय से अपने कई जिलों के कॉलेजों को पंजाबी यूनिवर्सिटी से जोड़ने की मांग करता रहा है, लेकिन सबसे ज्यादा तकलीफ इस मामले में पंजाब को है। चाहे कारण राजनीतिक हो या कुछ और। पंजाब के सभी राजनीतिक दलों का मानना है कि अगर पीयू केंद्र हरियाणा के कॉलेज लाए गए तो कहीं न कहीं चंडीगढ़ पर पंजाब का राजधानी के रूप में दावा कमजोर पड़ेगा।

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