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Divya Gita Satsang Kurukshetra : व्यक्ति के भाव में कपट और स्वभाव में नहीं होनी चाहिए कटूता : गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद

BY: • LAST UPDATED : December 6, 2024
  • कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान संस्थानम् में आयोजित दिव्य गीता सत्संग मेें स्वामी ज्ञानांद ने दिए प्रवचन

India News Haryana (इंडिया न्यूज), Farmers Protest Live Updates : कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान संस्थानम् में आयोजित दिव्य गीता सत्संग की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने व्यासपीठ से आशीर्वचन देते हुए कहा कि व्यक्ति के भाव में कपट और स्वभाव में कटूता नहीं होनी चाहिए। महाभारत में दुर्योधन ऐसा पात्र है जिसके स्वभाव में कपट और कटूता दोनों थी। दुर्योधन ने अपने इसी स्वभाव के कारण शल्य को कर्ण का सारथी बनाया। गीता के दूसरे अध्याय के 2 से 11 तक श्लोकों में दुर्योधन के छल और कपट का ही वर्णन है।

Divya Gita Satsang Kurukshetra : अर्जुन को कोई नहीं हरा पाया, लेकिन…

गीता मनीषी ने कहा कि जब सत्ता पर कोई काबिज हो और उसके पीछे किसी का कपट काम कर रहा हो तो यह पक्ष राजनीति को कमजोर बनाता है। राजा तो धृतराष्ट्र थे, लेकिन उनके पीछे सत्ता दुर्योधन चलाता था। इसीलिए वे पुत्र मोह में फंसे हुए थे, इससे राजनीति पतित होती हैं और गिर जाती हैं।

उन्होंने कहा कि अर्जुन को कोई नहीं हरा पाया, लेकिन कुरुक्षेत्र की धरा पर आकर अर्जुन अपने आप से हार गया। जिस गांडीव का अर्जुन कभी भी अपमान सहन नहीं कर सकता था, उस गांडीव को अर्जुन ने कुरुक्षेत्र की धरती पर उतार कर रख दिया। यह वृतांत संजय ने जब हस्तिनापुर में बैठे महाराजा धृतराष्ट्र को सुनाया तो वें बहुत प्रसन्न हुए।

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स्वामी ज्ञानानंद नेे किया गांडीव के इतिहास का जिक्र

गांडीव के इतिहास का जिक्र करते हुए गीता मनीषी ने बताया कि यह गांडीव ब्रह्मा से होते हुए प्रजापति के पास आया और फिर इंद्र व सोम से होता हुआ अर्जुन के पास आया था। 65 वर्ष तक गांडीव अर्जुन के पास रहा। ऐसे गांडीव को धरा पर रखकर अर्जुन निषाद में डूब गया। ऐसी स्थिति में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सहारा दिया। भगत पर भगवान का विश्वास केवल प्यार और समर्पण से बनता है।

अर्जुन के समर्पण के कारण ही भगवान श्री कृष्ण उसके सारथी बने और स्वयं रथ में नीचे स्थान पर बैठकर अर्जुन को ऊंचे स्थान पर बैठाया। इसी प्रकार प्यार और समर्पण के कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपने परम मित्र सुदामा को भी ऊंचा स्थान दिया। गीता मनीषी ने कहा कि जो भगवान की शरण में आ जाता है भगवान उसे ऊंचे स्थान पर बैठाते हैं।

उन्होंने कहा कि महाभारत अनूठी प्रेरणा का ग्रंथ है। यह अद्भुत प्रेरणा देता है। जब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने तो उन्होंने अर्जुन को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और उसका उत्साह बढ़ाया, जबकि दूसरी ओर कर्ण के सारथी शल्य ने हमेशा कर्ण का उत्साह कम किया। इसलिए जीवन का सारथी हमेशा भगवान को बनाओ। जिस प्रकार अर्जुन ने महाभारत युद्व से पहले भगवान श्री कृष्ण को मांगा था, क्योंकि अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण के प्रति समर्पित था और उसे कृष्ण पर पूरा भरोसा था। गीता मनीषी ने कहा कि व्यक्ति जहां से कुछ प्राप्त करता है, उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए, यही हमारे धर्म और संस्कृति की परंपरा है। गीता मनीषी ने भजन के माध्यम से संदेश दिया कि उपदेश है गीता का मानव कल्याण के लिए, अर्जुन तो बहाना है इस गीता ज्ञान के लिए।
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