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Swami Swaroopanand Saraswati Samadhi LIVE Update: आज दी जाएगी शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को समाधि

PUBLISHED BY: • LAST UPDATED : September 12, 2022

इंडिया न्यूज, MadhyaPradesh News (Swami Swaroopanand Saraswati Samadhi LIVE Update): ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) का कल यानि रविवार को निधन हो गया था। उन्होंने अंतिम सांस झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में दोपहर 3.30 बजे ली। जैसे ही उनके निधन के बारे में पता चला तो उनके अंतिम दर्शनों के लिए भारी संख्या में भक्तों का उमड़ना शुरू हो गया। उनकी पार्थिव देह आश्रम के गंगा कुंड स्थल पर रखी गई है। आज सायं उन्हें 4 बजे समाधि दी जाएगी।

उत्तराधिकारी को लेकर शुरू हुई चर्चाएं

वहीं शंकराचार्य के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर भी लगातार चर्चाएं की जा रही हैं। वहीं इस बारे में दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने कहा है कि समाधि की प्रक्रिया पूरी होने के बाद संत समाज की बैठक आयोजित की जाएगी जिसमें उनके नाम की घोषणा औपचारिक रूप से की जाएगी।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का मार्गदर्शन हमेशा मिला : कमलनाथ

पूर्व सीएम कमलनाथ ने कहा कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का मार्गदर्शन हमेशा हम सबको मिला। शंकराचार्य जी का जाना एक बहुत बड़ी क्षति है। देश हित में वे हमेशा अपनी बात बेबाकी के साथ रखते थे। ज्ञात रहे कि पूर्व सीएम कमनाथ सुबह उनके अंतिम दर्शनों के लिए पहुंचे थे।

यह भी जानें

  • शंकराचार्य की गद्दी के सामने 100 बटुक महाराज द्वारा मंत्रोच्चार किया गया।
  • परमहंसी गंगा आश्रम परिसर में पंडाल से 400 मीटर दूर समाधि के लिए एक गड्ढा तैयार किया गया।
  • भारी भीड़ होने के कारण ट्रैफिक पुलिस ने आश्रम से 2 किलोमीटर पहले ही झोतेश्वर गांव के प्रवेश द्वारा पर लोगों को रोक दिया।
  • अंतिम दर्शन के लिए प्रदेशभर से भक्त आश्रम पहुंच रहे हैं।
  • स्वामी स्वरूपानंद को आश्रम से गंगा कुंड तक पालकी पर बिठाकर ले जाया गया जिस पर से सभी ने उनके अंतिम दर्शन किए।
  • शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की पार्थिव देह पर चंदन लगाया हुआ है।
  • समाधि देने की तैयारी पूरी।

स्वामी जी का जीवन परिचय

आपको यह भी जानकारी दे दें कि स्वरूपानंद सरस्वती जी का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के जिला सिवनी में जबलपुर के पास एक गांव दिघोरी में हुआ था। 9 वर्ष की बालावस्था में ही उन्होंने घर त्याग दिया था और धर्म यात्राएं शुरू कर दी थी। इसी दौरान वे काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से शिक्षा ली।

ऐसे दी जाती है साधुओं को समाधि

शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परम्परा के साधु-संतों को भू-समाधि दी जाती है। जिसमें संत को पद्मासन या सिद्धि आसन की मुद्रा में बैठाकर समाधि दी जाएगी। अक्सर यह समाधि संतों को उनके गुरु की समाधि के पास या मठ में दी जाती है।

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