India News (इंडिया न्यूज), Wrestlers Protest in Delhi, चंडीगढ़ : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती में भारत का नेतृत्व करने वाले कई पहलवान गत 23 अप्रैल से जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे हुए हैं। इन पहलवानों में ज्यादात्तर महिला पहलवान हैं जिन्होंने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं। ये सभी पहलवान आरोपी पर कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं। पहलवानों के धरने में बुधवार देर रात उस समय हंगामा हो गया जब दिल्ली पुलिस और धरने पर बैठे पहलवानों में झड़प हो गई।
बुधवार रात के बाद गुरुवार को पहलवानों को उस समय झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने उनके मामले में दखल देने से इनकार करते हुए उनका केस लौटा दिया। इसके बाद धरने पर बैठे पहलवानों में मायूसी छा गई। लेकिन इस मायूसी ने एक चिंगारी का काम किया। न केवल हरियाणा की खाप और किसान यूनियन पहलवानों के पक्ष में सामने आई अपितु पंजाब की सबसे बड़ी किसान यूनियन, भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों के समर्थन में उतर आई है । 7 मई को अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्राहां के नेतृत्व में पंजाब से हजारों महिलाएं जंतर-मंतर पर खिलाड़ियों का साथ देने पहुंच रही हैं।
जोगिंदर सिंह उग्राहां भारत में किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक हैं। संगरूर जिले के सुनाम शहर के रहने जोगिंदर सिंह का जन्म और पालन-पोषण एक किसान परिवार में हुआ था। पंजाब के बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि जोगिंदर सिंह उग्रराहां पूर्व सैनिक हैं। भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद, उन्होंने खेती की ओर रुख किया और किसान हितों की लड़ाई में सक्रिय हो गए।
उन्होंने साल 2002 में भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) का गठन किया और तब से वह लगातार किसानों के मुद्दों पर संघर्ष कर रहे हैं। जोगिंदर सिंह उगराहां एक उत्कृष्ट वक्ता हैं और इस कला से वो लोगों को जुटाने में माहिर हैं। यह संगठन अमृतसर, बठिंडा, बवाला, गुरदासपुर, लुधियाना, संगरूर, फरीदकोट, फिरोजपुर मनसा, मोगा और मुक्तसर जिले में अपना प्रभाव रखता है।
ज्ञात रहे कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जब कोई भी खुलकर सामने नहीं आ रहा था तो उस समय उग्राहां गुट ने पंजाब से किसान संघर्ष का बिगुल फूंकते हुए किसानों को दिल्ली चलने को कहा। यह पंजाब के किसान ही थे जो सबसे पहले दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर आंदोलन करते हुए डटे। इसके बाद से पूरे किसान आंदोलन की ज्यादात्तर अगुवाई सिंघु बॉर्डर से ही की गई। इस किसान आंदोलन के बाद ही केंद्र सरकार कृषि कानून वापस लेने को मजबूर हुई थी।
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