India News (इंडिया न्यूज),Supreme Court,दिल्ली : क्या मृत्यु या हत्या से पूर्व रिकॉर्ड या शूट किए गए ऑडियो-वीडियो मैसेज को डाइंग डिक्लरेशन माना जा सकता है। इसी सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका के माध्यम से ऑडियो-वीडियो रिकार्डिंग को सबूत मानने कथित हॉरर किलिंग की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई है। इस याचिका में राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की गई है। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक युवती की हॉरर किलिंग की जांच सीबीआई से कराने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
यह याचिका उमा पालीवाल ने दायर की है। मरने वाली युवती ने उमा पालीवाल को ही एक मैसेज भेजकर अपनी हत्या की आशंका व्यक्त की थी। दरअसल उदयपुर के झल्लारा थाने में 27 मई 2022 कोमें एक मामला दर्ज किया गया था। जिसमें हत्या करने, सबूत मिटाने और आपराधिक साजिश रचने के आरोप लगे थे।
याचिकाकर्ता ‘विशाखा संगठन’ में वरिष्ठ अधिकारी हैं और उन्हीं के संगठन में काम करने वाली एक युवती ने अपनी पसंद से शादी करने के लिए अपने ही परिजनों द्वारा हत्या की आशंका जताई थी।
आरोप है कि युवती को उसके परिजनों ने 10 मई 2022 को बुरी तरह से पीटा के अगले दिन युवती का शव उसके कार्यस्थल पाया गया था। मरने से पहले युवती ने एक वीडियो मैसेज रिकॉर्ड कर उमा पालीवाल को भेजा था, जिसमें हत्या की आशंका जताई थी।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि युवती की हत्या के मामले में पुलिस ने जांच में खानापूर्ति कर मामले को निपटा दिया है और चार्जशीट में सिर्फ पीड़िता की मां को आरोपी बनाया है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाया है कि क्या मौत से पहले रिकॉर्ड किए गए वॉइस या वीडियो मैसेज को मृत्यु पूर्व बयान माना जा सकता है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।
यह भी पढ़ें : Muslim Women: तलाक के बोझ तले कब तक दबी रहेंगी मुस्लिम औरतें! अब तक दायर 8 याचिकाओं पर SC जल्द करेगा फैसला
यह भी पढ़ें : EWS Reservation: EWS आरक्षण के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर नौ मई को सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई