India News (इंडिया न्यूज़), Supreme Court’s decision on Jallikattu, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में सांडों को काबू करने वाले खेल जल्लीकट्टू को इजाजत देने वाले राज्य सरकार के कानून को उचित ठहराया है। गुरुवार को अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि खेल सदियों से तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा और इसे बाधित नहीं किया जा सकता। जजों ने कहा, नए कानून में क्रूरता के पहलू का ध्यान रखा गया है।
सांड़ों के साथ क्रूरता का हवाला देते हुए कानून रद्द करने की मांग की गई थी। याचिका में कानून को संसद से पास पशु क्रूरता निरोधक कानून का उल्लंघन बताया गया था। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, अगर कोई पशु से क्रूरता करे तो उस पर कार्रवाई हो। महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ और कर्नाटक के कंबाला खेल के खिलाफ लगी याचिका को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया है। जजों ने कहा कि तीनों अधिनियम वैध हैं और इसमें पशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच जजों की संविधान पीठ ने याचिकाओं पर फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि जल्लीकट्टू कई वर्ष से खेले जाने वाला पारंपरिक खेल है, जिसपर रोक लगाना सही नहीं होगा।
तमिलनाडु सरकार ने पिछली सुनवाई में कहा था कि जल्लीकट्टू केवल मनोरंजन का काम नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाला कार्यक्रम है। इस खेल में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती है। सरकार ने कहा था कि कोलंबिया, पेरू और स्पेन जैसे देश भी बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। सरकार ने यह भी तर्क दिया था कि जल्लीकट्टू में शामिल सांडों को साल भर किसान ट्रेनिंग देते हैं ताकि कोई खतरा न हो।
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