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ISRO Aditya L1 Mission Launch LIVE : इसरो का पहला सोलर मिशन आदित्य L1 लॉन्च

• LAST UPDATED : September 2, 2023
  • 4 महीने में 15 लाख किमी दूर लैगरेंज पॉइंट पर जाएगा

  • सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय मिशन

  • कोरोना का अध्ययन करेगा सूर्य मिशन आदित्य एल-1

India News (इंडिया न्यूज़), ISRO Aditya L1 Mission Launch LIVE, बेंगलुरु : चंद्रमिशन-3 मिशन को फतेह करने के 10 दिनों के बाद अब इसरो ने सूर्य पर अपना परचम लहराने के लिए आदित्य एल-1 तैयार किया है। जिस पर देश ही नहीं पूरे विश्व की नजरें टिकी हैं। अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सूरज की स्टडी करने के उद्देश्य से शनिवार यानि 11.50 बजे आदित्य एल1 स्पेसक्राफ्ट को पीएसएलवी-सी57 रॉकेट के जरिए आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया।

यह आदित्य सूर्य की स्टडी करेगा। रॉकेट PSLV आदित्य को पृथ्वी की निचली कक्षा में छोड़ेगा। करीब 63 मिनट 19 सेकेंड बाद आदित्य 235 x 19500 Km की ऑर्बिट में पहुंच जाएगा। वह करीब 4 महीने बाद लैगरेंज पॉइंट-1 (L1) तक पहुंचेगा।

जानिए इस मिशन पर आया इतना खर्चा

सूर्य का अध्ययन करने वाला आदित्य एल1 पहला भारतीय मिशन होगा। ये स्पेसक्राफ्ट लॉन्च होने के चार माह (31 दिसंबर 2023) को लैगरेंज प्वाइंट-1 (एल1) तक पहुंचेगा। इस प्वाइंट पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता, जिसके चलते यहां से सूरज अध्ययन आसानी से किया जा सकेगा। इस मिशन की अनुमानित लागत 378 करोड़ रुपए आई है। अगर मिशन सफल रहा और आदित्य स्पेसक्राफ्ट लैग्रेंजियन प्वाइंट-1 पर पहुंच गया तो 2023 में इसरो के नाम ये दूसरी विश्व की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

अध्ययन से सौर मंडल के बाकी ग्रहों को भी समझा जा सकेगा

बिना सौर ऊर्जा धरती पर जीवन संभव नहीं है। सूरज की ग्रैविटी से ही सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं। सूरज की स्टडी इसलिए जरूरी है ताकि सौर मंडल के बाकी ग्रहों की समझ भी बढ़ सके। आदित्य-एल1 को इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकट पीएसएलपी-सी57 धरती की लोअर अर्थ आर्बिट में छोड़ेगा। इसके बाद 3 या 4 आर्बिट मैन्यूवर करके सीधे धरती के स्फेयर आफ इंफ्लूएंस (एसओआई) से बाहर जाएगा।

गति अनियंत्रण हुई तो आदित्य-एल1 जलकर हो जाएगा खाक

आदित्य-एल1 को हैलो आर्बिट में डाला जाएगा, जहां एल1 प्वाइंट होता है। यह प्वाइंट सूरज और धरती के बीच में स्थित होता है, लेकिन सूरज से धरती की दूरी की तुलना में मात्र 1 फीसदी है। इस यात्रा में इसे लगभग 120 दिन लगेंगे, इसे इसलिए कठिन माना जा रहा है क्योंकि इसे दो बड़े ऑर्बिट में जाना है। धरती के सओआई से बाहर जाना पहली कठिन ऑर्बिट है, क्योंकि पृथ्वी अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से उसके आसपास हर चीज को खींचती है। दूसरी कठिन ऑर्बिट क्रूज फेज और हैलो ऑर्बिट में एल1 पोजिशन को कैप्चर करना है। अगर यहां उसकी गति नियंत्रित नहीं की गई तो वह सीधे सूरज की तरफ चलता चला जाएगा और जलकर खत्म हो जाएगा।

अंतरिक्ष के मौसम को इसलिए जानना जरूरी

सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है। इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं। ये उच्च ऊर्जा वाली प्रोटोन्स से बने होते हैं। सोलर मैग्नेटिक फील्ड का पता चलता है, जो बेहद विस्फोटक होता है। यहीं से कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) होता है। इसकी वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है, इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना जरूरी है। यह मौसम सूरज की वजह से बनता और बिगड़ता है।

वहीँ यह भी बता दें कि यह वैज्ञानिक रूप से बेहद फायदेमंद होने वाला है क्योंकि 7 उपकरण, उन घटनाओं को जानने-समझने की कोशिश करेंगे कि वहां क्या हो रहा है। खगोलशास्त्री और प्रोफेसर आरसी कपूर कहा, आदित्य एल1 में शामिल सबसे महत्वपूर्ण उपकरण सूर्य के कोरोना का अध्ययन करेगा। आम तौर पर इसका अध्ययन केवल पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान ही किया जा सकता है।

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