India News (इंडिया न्यूज), Haryana Reserved Assembly Seats, चंडीगढ़ : देश में इस साल लोकसभा और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। प्रदेश में एक बड़ा वोट बैंक आरक्षित वर्ग से है। इसको देखते हुए सभी राजनीतिक दल वर्ग को साधने में जुट गए हैं। हरियाणा में 17 सीटें एससी वर्ग के लिए आरक्षित हैं और सरकार बनाने में इन सीटों का अहम योगदान रहता है। सभी दलों में समुदाय से नेता हैं जो आने वाले चुनाव को लेकर तैयारियों में जुटे हैं। सभी दलों की कोशिश है कि पिछली बार जीती गई आरक्षित की गई सीटों में इजाफा किया जाए।
इसी कड़ी में यह भी बता दें कि प्रदेश जातीय आधार वोटर्स की संख्या का मामला भी चर्चा में रहता है। हालांकि हरियाणा में जातिगत जनगणना तो नहीं हुई, लेकिन पिछले साल सरकार ने पीपीपी आधार पर वर्ग विशेष को लेकर आंकड़े जारी किए थे। पिछले साल परिवार पहचान पत्र स्कीम के तहत सामान्य, एससी, बीसी और बैकवर्ड क्लास के परिवारों के आंकड़े जरूर सामने आए हैं। गौरतलब है कि देश में जाति आधारित जनगणना की मांग दशकों पुरानी है। विपक्ष के अनुसार इसका उद्देश्य अलग-अलग जातियों की संख्या के आधार पर उन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण देना और जरूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं लाभ देना मकसद बताया जाता है।
आपको बता दें कि प्रदेश में कुल 90 विधानसभा सीटों में से 17 हलके अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों लिए 2030 तक आरक्षित रहेंगे, जिनमें अंबाला में मुलाना, सिरसा में कालांवाली, फतेहाबाद में रतिया, हिसार में उकलाना, भिवानी में भवानी खेड़ा, झज्जर में झज्जर सीट, रोहतक में कलानौर, यमुनानगर में साढौरा, कुरुक्षेत्र में शाहाबाद, कैथल में गुहला, करनाल में नीलोखेड़ी, पानीपत में इसराना, सोनीपत में खरखौदा, जींद में नरवाना, रेवाड़ी में बावल, गुरुग्राम में पटौदी और पलवल में होडल शामिल हैं। हरियाणा के मौजूदा कुल 22 जिलों में पांच जिलों महेंद्रगढ़, फरीदाबाद, पंचकूला, नूंह और चरखी दादरी में कोई भी विधानसभा सीट आरक्षित नहीं है। बता दें कि अंबाला और सिरसा दोनों ही सीटें भाजपा द्वारा पिछली बार जीती गई थी। अंबाला से पार्टी के रतन लाल कटारिया चुनाव जीते थे, लेकिन बीमारी के चलते उनका देहावसान होने से ये सीट खाली है और इस पर उपचुनाव लंबित हैं। वहीं सिरसा से सीट से भाजपा की सुनीता दुग्गल ने चुनाव जीता था।
हरियाणा में कुल 17 आरक्षित सीटें हैं। इन सीटों पर सबसे ज्यादा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सबसे ज्यादा 7 विधायक जीते हैं। यमुनानगर में साढौरा से रेणुबाला, पानीपत में इसराना से बलबीर वाल्मीकि, रोहतक में कलानौर से शकुंतला खटक, सोनीपत में खरखौदा से जयवीर वाल्मीकि, सिरसा के कालांवाली से शीशपाल केहरवाल, अंबाला में मुलाना से वरुण चौधरी, और रोहतक के झज्जर से गीता भुक्कल विधायक हैं। इसके बाद सत्ताधारी भाजपा के दूसरे स्थान पर सबसे ज्यादा 5 विधायक चुनाव जीते हैं।
इनमें फतेहाबाद में रतिया से लक्ष्मण नापा, भिवानी के बवानीखेड़ा से विशंभर वाल्मीकि, रेवाड़ी में बावल से बनवारी लाल, गुरुग्राम में पटौदी से सत्यप्रकाश जरावता और फरीदाबाद में होडल से जगदीश नय्यर चुनाव जीतकर आए हैं। वहीं सत्ता में सहयोगी जजपा के तीन विधायक हैं। कैथल में गुहला चीका से ईश्वर सिंह, कुरुक्षेत्र में शाहाबाद से रामकरण कालाहिसार में उकलाना से अनूप धानक, और जींद में नरवाना से रामनिवास सुरजाखेड़ा चुनाव जीतकर आए हैं। वहीं नीलोखेड़ी से निर्दलीय धर्मपाल गोंदर चुनाव जीते हैं। इस लिहाज से देखें तो कांग्रेस की एससी वोटर्स में खासी पैठ है और पार्टी आगे भी इस बढत को बनाए रखने की जुगत में रहेगी।
पीपीपी के आधार पर जातीय आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में एससी वर्ग के कुल 13,68,365 परिवार हैं। ये कुल परिवारों का 20.71 फीसदी है। वहीं बीसी ए वर्ग के परिवारों की बात करें तो इनकी संख्या 11,23,852 हैं जो कुल परिवारों का 16.52 फीसदी बैठता है।
बीसी बी वर्ग की बात करें तो इनकी संख्या 869079 है जो कि कुल जनसंख्या का 12.78 फीसदी है। ये भी बता दें कि प्रदेश में 72 लाख परिवारों ने पीपीपी बनवाने के लिए आवेदन किया। इनमें से 68 लाख परिवारों का डाटा वेरीफाई हो चुका है। लगभग 2.5 लाख परिवार ऐसे हैं, जो किसी अन्य राज्य में रह रहे हैं, उनका डाटा अभी वेरीफाई होना है। कुछ परिवारों के डाटा वेरीफाई करने की प्रक्रिया चल रही है।
आने वाले चुनावों में एससी व बीसी वर्ग आंकड़ा देखते हुे साफ है कि ये दोनों वर्डिग साइडिंग फैक्टर साबित होने वाले हैं। हरियाणा में एससी व बीसी वर्ग की बात करें तो कुल जनसंख्या का ये करीब 51 फीसदी हैं। पीपीपी के आधार पर प्रदेश की कुल संख्या 2 करोड़ 83 लाख है। इनमें से एससी वर्ग के लोगों की संख्या 5861131 है और कुल का 20.71 प्रतिशत है। ऐसे में प्रदेश की कुल जनसंख्या का पांचवा हिस्सा एससी वर्ग का है।
बीसी ए वर्ग के लोगों की संख्या 4793312 है जो कुल जनसंख्या का 16.93 फीसद हैं। इनके अलावा बीसी बी कैटेगरी की संख्या 3797306 है । ये जनसंख्या का 13.41 फीसद है। बता दें कि पिछले दिनों आईएएस और मुख्यमंत्री प्रिंसिपल सेक्रेटरी वी. उमाशंकर ने परिवार पहचान पत्र के बारे में और परिवारों के डाटा को किस प्रकार से एकत्रित किया, अपडेट किया, के बारे में विस्तृत जानकारी साझा की। जातिगत समीकरणों से भाजपा की कोशिश होगी कि एससी व बीसी वर्ग को वोटर्स को साधने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएं।
बता दें कि साल 1872 में ब्रिटिश शासन के दौरान पहली बार जनगणना हुई थी। इसके बाद 1872 से लेकर 1931 तक जितनी भी दफा जनगणना हुई, इसमें जाति के आंकड़ों को दर्ज किया गया था। इसके बाद आजादी के बाद साल 1951 में पहली बार आजाद भारत में जनगणना करवाया गया। इस दौरान केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आंकड़ों को ही शामिल किया गया था, लेकिन 1951 के बाद 1961, 1971, 1981, 1991, 2001 और 2011 के किसी जनगणना में जातीय आंकड़े को शामिल नहीं किया गया है। एक तरह से साफ है कि देश आजाद होने के बाद यहां जातीय जनगणना नहीं हुई और इसको लेकर तमाम सियासी दल अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से मामले से इत्तेफाक रखते हैं।
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