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How Bhagat Singh Became a Revolutionary at the Age of 23 23 साल की उम्र में भगत सिंह कैसे बने क्रांतिकारी

• LAST UPDATED : March 20, 2022

इंडिया न्यूज

How Bhagat Singh Became a Revolutionary at the Age of 23 : 23 साल की उम्र में भगत सिंह कैसे बने क्रांतिकारी

शहीद भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान न्योछावर कर दी। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर के बंगा में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में आता है। वहीं भगत सिंह का पैतृक गांव खटकड़ कलां हैं। जहां उनकी याद में शहीद स्मारक का निर्माण भी करवाया गया है। भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता मुहिम के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।

आज के समय में भी कई नौजवान शहीद भगत सिंह के बताए मार्ग पर चलते हैं। पिछले दिनों भी शहीद भगत सिंह का गांव खटकड़ कलां काफी चर्चा में आया। जब पंजाब के नए मुख्यमंत्री भगवंत मान का शपथ समारोह वहां करवाया गया। भगत सिंह को मात्र 23 साल की उम्र में ही फांसी की सजा सुना दी गई थी भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश सरकार ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया। भगत सिंह की शहीदी के बाद देशभर में जनता ने उनकी याद में अंग्रेज सरकार के खिलाफ रोष मार्च निकाले थे।

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भगत सिंह का जन्म
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर बंगा में हुआ था। आजादी के बाद यह हिस्सा पाकिस्तान में चला गया। भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। शहीद भगत सिंह का पैतृक गांव खटकड़ कलां है। जहां पिछले दिनों पंजाब के नए सीएम भगवंत मान ने शपथ ली थी। भगत सिंह एक क्रांतिकारी परिवार से संबंध रखते थे और अपने चाचा अजित सिंह से काफी प्रभावित थे।

भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह और चाचा स्वर्ण सिंह जेल में थे। वह ब्रिटिश सरकार की तरफ से लागू किए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने पर जेल में थे। भगत सिंह एक सिख परिवार से संबंधित थे। करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय उनके आइडल थे।

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क्रांतिकारी बनने के संस्कार परिवार से मिले थे
शहीद भगत सिंह क्रांतिकारी परिवार से संबंध रखते थे। उनके जन्म के समय उनके पिता और दोनों चाचा ब्रिटिश सरकार के लाए कानून का विरोध करने के चलते जेल में बंद थे। भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की थी। उस संघ के सदस्यों ने ब्रिटिश सरकार के औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ किसानों को जागरूक करना आरंभ किया।

अंग्रेजों को इस बात का पता लग गया और अजीत सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज कर दिए गए। जिसके चलते अजीत सिंह को विदेश पलायन करना पड़ा। शहीद भगत सिंह ने अपनी शुरूआती पढ़ाई गांव के ही स्कूल में की और उसके बाद वो दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल में उच्च शिक्षा के लिए गए। भगत सिंह ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया।

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जलियावालां बाग हत्याकांड ने डाला था प्रभाव
शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन में मोड़ 13 अप्रैल 1919 को आया। जब अमृतसर के जलियावालां बाग में आम सभा के दौरान निहत्थे लोगों पर जनरल डायर ने गोलियां चलाने का हुक्म दे दिया था। जिसमें हजारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इस अमानवीय कृत्य को देखकर भगत सिंह के मन में देश को स्वतंत्र करवाने की बात ने घर कर लिया और वह शहीद चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर देश की आजादी के लिए काम करने लगे।

इसी कड़ी में देश को जागरूक करने के लिए शहीद भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली असेंबली हाल में बम फेंके। जिसके बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद लाहौर षड्यंत्र मामले में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई। 23 मार्च 1931 को तीनों को फांसी दी गई। वहीं बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावस की सजा सुनाई गई।

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