भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर का बचपन तकलीफों में बीता Dr. Bhimrao Ambedkar Bharat Ratna

डॉ. भीमराव अंबेडकर एक महान समाज सुधारक थे। वे अपने युग के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे राजनेता और एवं विचारक थे। उन्होंने छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष किया और इसके जरिए वे निम्न जाति वालों को छुआछूत की प्रथा से मुक्ति दिलाना चाहते थे और समाज में बराबर का दर्जा दिलाना चाहते थे।

Dr. Bhimrao Ambedkar Bharat Ratna: डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में, जिसे अब डॉ. अंबेडकर नगर के नाम से जाना जाता है में हुआ था। मुंबई विश्वविद्यालय से बीए, कोलंबिया विश्वविद्यालय से एमए, पीएचडी और एलएलडी की उपाधि अर्जित की। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एमएससी, डीएससी की। ग्रेज इन (बैरिस्टर-एट-लॉ) की उपाधि हासिल की। वे विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, समाजशास्त्री, समाज सुधारक, शिक्षाविद, इतिहासविद, लेखक, पत्रकार, इतिहासविद रहे।

उन्होंने वकील और प्रोफेसर के काम को पेशे के रूप में अपनाया। उनका विवाह 1906 में रमाबाई अंबेडकर के साथ हुआ था। उनके निधन के बाद 1948 में डॉ. सविता अंबेडकर से शादी की। वे कई सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक संगठनों से जुड़े रहे। भारतीय बौद्ध सभा से भी जुड़े और बौद्ध धर्म अपनाया। 6 दिसम्बर 1956 में 65 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

बचपन बहुत तकलीफों में बीता Dr. Bhimrao Ambedkar Bharat Ratna

कहा जाता है कि बाबा साहब अंबेडकर का बचपन बहुत तकलीफों में बीता। वे और उनके पिता मुंबई शहर के एक ऐसे मकान में रहने गए जहां एक ही कमरे में पहले से बेहद गरीब लोग रहते थे इसलिए दोनों के एक साथ सोने की व्यवस्था नहीं थी तो बाबासाहेब अंबेडकर और उनके पिता बारी-बारी से सोया करते थे।

जब उनके पिता सोते थे तो भीमराव अंबेडकर दीपक की हल्की सी रोशनी में पढ़ते थे। भीमराव अंबेडकर संस्कृत पढ़ने के इच्छुक थे, परंतु छुआछूत की प्रथा के अनुसार और निम्न जाति के होने के कारण वे संस्कृत नहीं पढ़ सकते थे। कई अपमानजनक स्थितियों का सामना करते हुए डॉ. भीमराव अंबेडकर ने धैर्य और वीरता से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की और इसके बाद कॉलेज की पढ़ाई।

 

नौ भाषाओं का ज्ञान था Dr. Bhimrao Ambedkar Bharat Ratna

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1907 में मैट्रिकुलेशन पास की। एली फिंस्टम कॉलेज से 1912 में ग्रेजुएट हुए। 1915 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की शिक्षा ली। 1917 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली। नेशनल डेवलपमेंट फॉर इंडिया एंड एनालिटिकल स्टडी विषय पर उन्होंने शोध किया।

1917 में ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन साधन के अभाव के कारण वह अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाए। कुछ समय बाद लंदन जाकर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अधूरी पढ़ाई उन्होंने पूरी की। इसके साथ-साथ एमएससी और बार एट-लॉ की डिग्री भी प्राप्त की। वे अपने युग के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे राजनेता और एवं विचारक थे। वे 64 विषयों में मास्टर थे। 9 भाषाओं के जानकार थे।

32 डिग्रियां प्राप्त की Dr. Bhimrao Ambedkar Bharat Ratna

भीमराव अंबेडकर जीवनी में बाबासाहब समाज सुधारक होने के साथ-साथ लेखक भी थे। लेखन में रुचि होने के कारण उन्होंने कई पुस्तकें लिखी। उनके पास 32 डिग्रियां थीं। वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं।

प्रथम विश्व युद्ध की वजह से उनको भारत लौटना पड़ा। कुछ समय बाद उन्होंने बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में नौकरी शुरू की। बाद में उनको सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गई। कोल्हापुर के शाहू महाराज की मदद से एक बार फिर वह उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए।

सामाजिक सुधार का उठाया बीड़ा Dr. Bhimrao Ambedkar Bharat Ratna

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इतनी असमानताओं का सामना करने के बाद सामाजिक सुधार का बीड़ा उठाया। ऑल इंडिया क्लासेज एसोसिएशन का संगठन किया। सामाजिक सुधार को लेकर वह बहुत प्रयत्नशील थे। ब्राह्मणों द्वारा छुआछूत की प्रथा को मानना, मंदिरों में प्रवेश न करने देना, दलितों से भेदभाव, शिक्षकों द्वारा भेदभाव आदि सामाजिक सुधार करने का प्रयत्न किया।

परंतु विदेशी शासन काल होने कारण यह ज्यादा सफल नहीं हो पाया। विदेशी शासकों को यह डर था कि यदि ये लोग एक हो जाएंगे तो परंपरावादी और रूढ़िवादी वर्ग उनका विरोधी हो जाएगा।डॉ. भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष किया और इसके जरिए वे निम्न जाति वालों को छुआछूत की प्रथा से मुक्ति दिलाना चाहते थे और समाज में बराबर का दर्जा दिलाना चाहते थे।

1920 के दशक में मुंबई में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने भाषण में यह साफ-साफ कहा था कि जहां मेरे व्यक्तिगत हित और देश हित में टकराव होगा वहां पर मैं देश के हित को प्राथमिकता दूंगा परंतु जहां दलित जातियों के हित और देश के हित में टकराव होगा वहां मैं दलित जातियों को प्राथमिकता दूंगा। वे दलित वर्ग के लिए मसीहा के रूप में सामने आए जिन्होंने अपने अंतिम क्षण तक दलितों को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष किया। वे आजाद भारत के पहले कानून मंत्री भी बने थे। 6 दिसंबर 1956 को अपने घर दिल्ली में उनका निधन हुआ।

संघर्ष पूर्ण जीवन Dr. Bhimrao Ambedkar Bharat Ratna

डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। उनका पूरा जीवन संघर्ष में बीता। उन्होंने भारत की आजादी के बाद देश के संविधान के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया। कमजोर और पिछड़े वर्ग के अधिकारों के लिए पूरा जीवन संघर्ष किया।

डॉ. अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत और समतामूलक समाज के निर्माणकर्ता थे। अंबेडकर समाज के कमजोर, मजदूर, महिलाओं आदि को शिक्षा के जरिए सशक्त बनाना चाहते थे। इसी कारण डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती को भारत में समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। बाबा साहब ने अपने जीवन में जातपात और असमानता का सामना किया। यही वजह है कि वह दलित समुदाय को समान अधिकार दिलाने के लिए कार्य करते रहे।

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