India News Haryana (इंडिया न्यूज), International Peace Day : शांति केवल संघर्ष की अनुपस्थिति नहीं है और न ही कोई ऐसी चीज है जिसे आप बाजार से खरीद लें या कोई उच्च नीति बनाकर प्राप्त लें। इसे अपने भीतर ही पोषित करना होता है। शांति आपका स्वभाव है। शांति की आवश्यकता तीन स्तरों पर होती है। पहला स्तर है- अपने भीतर की शांति; दूसरा स्तर है- हमारे आस-पास के वातावरण जैसे हमारे परिवार, हमारे मित्रों और कार्यक्षेत्र में शांति; तीसरा स्तर है देशों के बीच शांति। दरअसल व्यक्तिगत शांति के बिना न ही हमारे वातावरण में शांति संभव है और न ही विश्व में।
अब यहां शांति का अर्थ यह नहीं है कि आप निष्क्रिय रहें। शांति योद्धा तो किसी भी गलत कार्य को रोकने की इच्छाशक्ति के साथ सक्रिय रहते हैं। वे समाज में गलत कार्यों और गलत करने वाले लोगों को उजागर करते हैं और उनके विरोध में खड़े रहते हैं। तो हममें से प्रत्येक व्यक्ति को एक शांतिदूत और शांति योद्धा बनना चाहिए। जब तक हमारे वैश्विक परिवार का एक-एक सदस्य शांतिपूर्ण नहीं रहता, तब तक हमारी शांति अधूरी है। हमारे सामने यह चुनौती है कि हम उन लोगों, देशों और विश्व के उन भागों में पहुंचे जहां शांति नहीं है; जहाँ संघर्ष हो रहे हैं। दुनिया के कोने-कोने में शांति लाने की जिम्मेदारी हमारी है। अधिकतर शांति प्रेमी निष्क्रिय और मौन रहते हैं लेकिन आज शांतिपूर्ण लोगों को सक्रिय होने की आवश्यकता है।
एक बार 1940 के आस-पास महात्मा गांधी दार्जिलिंग में रेल यात्रा कर रहे थे। उनके साथ पंडित सुधाकर चतुर्वेदी थे जो दक्षिण भारतीय क्षेत्र के लिए उनके सचिव हुआ करते थे। हमने कई वर्ष बाद पंडित जी से शिक्षा ग्रहण की। यात्रा के बीच में ही कहीं, रेल का इंजन और रेल के डिब्बे एक-दूसरे से अलग हो गए। इंजन आगे चला गया और डिब्बे पीछे की तरफ जाने लगे। ऐसा होते ही बाकी यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई लेकिन उसी समय गांधी जी ने उनसे कहा कि वे कुछ आवश्यक बातें नोट करने पर ध्यान दें जो गांधी जी उस समय उनसे कह रहे थे।
पंडित जी को यह बात काफी अटपटी लगी और उन्होंने गांधी जी से कहा कि “इस समय लोग अपने प्राण बचाने के लिए चिंतित हैं और आप नोट्स लेने के लिए कह रहे हैं।” गांधी जी ने अपने सचिव से कहा कि “यदि इस समय कोई दुर्घटना घटी तो हममे से कोई नहीं रहेगा लेकिन यदि हम बच गए तो इस बात का पश्चाताप हमेशा रहेगा कि हमने इतना समय बेकार की चिंता करने में व्यर्थ कर दिया।”जीवन में निरंतर ऐसी परिस्थितियां आती रहती हैं जो आपको विचलित करें पर जब हम भीतर से शांत और केंद्रित होते हैं, तो अपने चारों ओर शांति की तरंगे फैलाते हैं।
लोग अक्सर संकट के समय एकजुट हो जाते हैं, लेकिन क्या हम शांति के प्रसार जैसी किसी सकारात्मक, रचनात्मक और सामंजस्यपूर्ण कार्य के लिए एकजुट हो सकते हैं? यदि हम मानसिक रूप से मजबूत रहें और गलत जानकारियों से प्रभावित न हों, तो हम ऐसा कर सकते हैं। आज के समय में सोशल मीडिया दो-धारी तलवार जैसी है। इससे सही जानकारी भी मिल सकती है और बहुत सी अफवाहें भी फैलाई जा सकती हैं जो कहीं किसी अशांति का कारण बन सकती है, इसलिए इस परिदृश्य को बुद्धिमानी से उपयोग करने की जरूरत है।
शांति का समर्थन करने वाली सामूहिक आवाज़ों में अपार शक्ति है। कोलंबिया 52 वर्ष से गृहयुद्ध से ग्रस्त था। हमने उनके मुख्य विद्रोही समूह से बातचीत की और वे युद्ध विराम के लिए तैयार हो गए। उन्होंने वर्षों से चल रहे सशस्त्र संघर्ष को त्यागकर अहिंसा का मार्ग ले लिया। सब लोग युद्ध का अंत होने पर बहुत खुश थे, उन्होंने शांति का समर्थन तो किया लेकिन जनमत संग्रह में भाग नहीं लिया।
परिणाम स्वरूप पहले जनमत संग्रह में शांति प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया। हालाँकि बाद में देश की जनता जागी और उन्होंने शांति को ही चुना पर इसमें और कई प्रयास लगे। इस तरह से इतिहास इसका प्रमाण है कि जनसंख्या का एक छोटा सा प्रतिशत भी एक बड़ा परिवर्तन ला सकता है। तो जो लोग शांति के समर्थन में खड़े हैं उन्हें अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
एक शांत मन प्रभावशाली संवाद कर सकता है; यह समझ देशों और समुदायों के बीच शांति स्थापित करने के लिए बहुत आवश्यक है। हम सभी को आज इस बात के प्रति सजग होने की आवश्यकता है कि सामुदायिक प्रयासों और आपसी समझ से हम एक सौहार्दपूर्ण और करुणामयी विश्व बना सकते हैं; आइये इसी भावना के साथ हम सब शांति का समर्थन करें, शांति के लिए खड़े हों !