इंडिया न्यूज़, Sant Ravidas Jayanti 2023 : इस साल में रविदास जयंती 5 फरवरी 2023 को मनाई जा रही है। यह पर्व हर साल माघ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। सारे देश में इस साल संत रविदास जी की 646वीं जयंती मनाई जाएगी। रविदास जयंती के दिन रविदास जी के अनुयायी मिलकर जगह-जगह पर कार्यक्रम का आयोजन करते हैं।
कई जगहों पर रविदास जयंती के मौके पर रैलियां भी निकाली जाती है। इनका जन्म सन 1398 में रविवार के दिन हुआ था। रविवार के दिन जन्म होने के कारण ही इनका नाम रविदास पड़ा। आज हम आपको संत रविदास जी के जीवन से जुडी कुछ बातें बताने जा रहे हैं आइए जानते हैं:-
कृष्ण दीवानी मीरा बाई को संत रविदास जी ने ही भक्ति के लिए प्रेरित किया था। मीरा बाई संत रविदास जी की शिष्या थीं। संत रविदास जी ने अपना जीवन प्रभु की भक्ति में ही बिताया था। वह बचपन से ही भगवान की भक्ति में लीन थे। संत रविदास के गुरु रामानंद ने भी उन्हें उनकी प्रतिभा देखने के बाद ही शिष्य बनाया था।
मीरा बाई के एक अपने गुरु रविदास जी का जिक्र भी किया है। मीरा बाई के पद “गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी।’‘मीरा सत गुरु देव की करै वंदा आस जिन चेतन आतम कहया धन भगवन रैदास..” में संत रविदास जी का जिक्र है।
संत रविदास जी का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था। वह जूते बनाने का काम करते थे। वह कभी भी जात-पात में नहीं मानते थे। उन्होंने समाज को जातिगत भेदभाव मुक्त करने के प्रयास किए थे। संत रविदास जी की शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रभावित करती हैं। रविदास जी सभी की बिना भेदभाव के मदद करते थे। संत रविदास सभी काम को लगन के साथ करते थे चाहे वह जूते बनाने का काम हो या फिर प्रभु की भक्ति करने का काम हो।
1- रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच
जिसका अर्थ है कि सिर्फ जन्म लेने से कोई नीच नही बन जाता है बल्कि इन्सान के कर्म ही उसे नीच बनाते हैं।
2- जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
जिसका अर्थ है कि जिस प्रकार केले के तने को छिला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता है। पूरा पेड़ खत्म हो जाता है, ठीक उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बांट दिया गया है। इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग अलग बंट जाता है और इन अंत में इन्सान भी खत्म हो जाते है, लेकिन यह जाति खत्म नही होती है। इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होंगा तब तक इन्सान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है या एक नही हो सकता है।
3- हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
अर्थात हीरे से बहुमूल्य हरी यानि भगवान है उसको छोड़कर अन्य चीजो की आशा करने वालों को अवश्य ही नर्क जाना पड़ता है, अर्थात प्रभु की भक्ति को छोडकर इधर उधर भटकना व्यर्थ है।
4- करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
इसका अर्थ है कि हमे हमेशा अपने कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म बदले मिलने वाले फल की आशा भी नही छोडनी चाहिए,क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है।
5- कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
अर्थात राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।
6- ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’
रविदास जी का यह कथन आज भी बहुत प्रसिद्ध है। उनका मानना था कि यदि आप कोई काम शुद्ध मन और निष्ठा से करेंगे तो आपको इसका अच्छा ही परिणाम मिलेगा।
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