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Raksha Bandhan : असुरक्षा की भावना से बाहर निकालता है रक्षा बंधन का पर्व : श्री श्री रवि शंकर 

• LAST UPDATED : August 16, 2024

India News Haryana (इंडिया न्यूज़), Raksha Bandhan : रक्षाबंधन के पावन पर्व के अवसर पर हरियाणा स्टेट मीडिया कोऑर्डिनेटर कुसुम धीमान ने श्री श्री रविशंकर के विचार अभिव्यक्त करते हुए कहा कि रक्षाबंधन की पूर्णमासी सिद्ध-महापुरुषों और ऋषियों को समर्पित है। बंधन का अर्थ है- अधीनता और रक्षा का अर्थ है सुरक्षा। जो बंधन आपकी रक्षा करता है, वही रक्षाबंधन है।

एक रस्सी को आपको बचाने के लिए या फिर आपका गला घोंटने के लिए भी बांधा जा सकता है। छोटा मन और सांसारिक विषय-वस्तु आपमें घुटन ला सकते हैं। विराट मन और ज्ञान आपकी रक्षा करता है। रक्षा-बंधन वह बंधन है जो आपकी सुरक्षा करता है। सत्संग के प्रति, गुरु के प्रति, सत्य के प्रति और ऋषियों के प्राचीन ज्ञान के प्रति आपका बंधन आपका उद्धार करता है।

Raksha Bandhan  : खिलने से रोकती है असुरक्षा की भावना

जो संबंध किसी इच्छा के कारण बनते हैं, वे अपने साथ दुःख लाते हैं। ऐसे संबंध जो प्रेम के कारण बनते हैं, वे सुरक्षा लाते हैं। इच्छा और प्रेम में यही एक अंतर है। जब हमारे भीतर कोई इच्छा होती है, तो हम सही और गलत में भेद नहीं कर पाते और स्वार्थी हो जाते हैं। जब हम प्रेम में होते हैं, तो हमारी सजगता बढ़ जाती है। इस संसार में पर्याप्त प्रेम है इसलिए चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। इस धरती पर बहुत से अच्छे लोग हैं और वे आपकी सुरक्षा कर रहे हैं।

असुरक्षित भावना से बुद्धि मंद हो जाती

असुरक्षा की भावना आपको खिलने से रोकती है। जब आप असुरक्षित अनुभव करते हैं तब आपकी बुद्धि मंद हो जाती है और आपका दृष्टिकोण धुंधला हो जाता है। आपके शरीर में बहुत से हार्मोनल बदलाव होने लगते हैं। आपका शरीर बहुत अधिक मात्रा में एड्रिनल पैदा करता है और आप कमजोर अनुभव करने लगते हैं।

आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। असुरक्षा की भावना  भावनात्मक और मानसिक स्तर पर आपकी दृष्टि को धुंधला कर देती है और जो जैसा है चीज़ों को वैसा ही देखने की आपकी क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो जाती है और उससे आपका सामाजिक व्यवहार भी प्रभावित होता है।

असुरक्षा की भावना का तोड़ है विश्वास

असुरक्षा आपको किसी के ऊपर विश्वास करने से रोकती है लेकिन असुरक्षा का तोड़ है विश्वास! जो व्यक्ति असुरक्षित अनुभव करता है उसे यह नहीं पता होता कि मित्रवत कैसे रहें, विश्वासपात्र कैसे बने रहें और समाज में लोगों पर विश्वास कैसे करें। तो आप असुरक्षा, डिप्रेशन, क्रोध और बुरे व्यवहार के दुष्चक्र में फंस जाते हैं । आपको इस बात का अहसास भी नहीं होता कि आपका व्यवहार अच्छा नहीं है। असुक्षा की भावना से आप जीवन में बहुत सारे अच्छे अवसर और कोई भी नई पहल करने का उत्साह खो देते हैं। असुरक्षा की भावना आपकी प्रगति, सुख और आनंदमय जीवन का अंत है।

रक्षा बंधन का क्या सन्देश : अपनी असुरक्षाएं छोड़ दें

एक पुरुष चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, कहीं न कहीं उसे कुछ सुरक्षा की आवश्यकता हो सकती है और यह एक महिला की दृढ़ इच्छाशक्ति और मनोभाव से आता है।  इसलिए बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और कहती हैं, ‘मैं तुम्हारी रक्षा के लिए हूँ ।’ यह मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। इस रक्षा बंधन का संदेश है – अपनी असुरक्षाएं छोड़ दें, बहुत सारी राखियां आपका इंतजार कर रही हैं। संसार आपको सुरक्षा दे रहा है। संसार की अच्छाई आपके साथ है। असुरक्षित होने की आवश्यकता नहीं, जागिये आप सुरक्षित हैं।

पुरुष बाहुबल से संरक्षण देता और महिला मनोबल से संरक्षण देती

हम समझते हैं सिर्फ पुरुष ही सशक्त है महिला दुर्बल है, उनमें शक्ति नहीं है। सी  गलत धारणा को दूर करने के लिए लोगों ने कहा कि महिलाओं के पास भी शक्ति है। वैसे देखेंगे तो महिला ही शक्ति है। पुरुष बाहुबल से संरक्षण देता है और महिला मनोबल से संरक्षण देती है। महिलाएं भावनात्मक रूप से, वैचारिक रूप से और आत्मबल देकर संरक्षण करती हैं।

महिलाओं की संकल्प शक्ति बहुत मज़बूत होती है। वे  अपनी संकल्प शक्ति से अपने भाइयों और पुरुषों को संरक्षण देती है।  महिलायें ऐसा न मानें कि आप कमजोर हैं,आपके भीतर भी दैवीय शक्ति है। आपके भीतर भी रक्षा करने की क्षमता है। इसलिए यहां स्त्री और पुरुष दोनों बराबर है। न तो कोई कम है और न ही कोई ज्यादा है। रक्षा बंधन इसी बात को दर्शाता है।

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