रेवाड़ी/श्याम बाथला
रेवाड़ी के गांव चिमनावास के सैनिकों पर बनी वेब सीरीज तो हम सबने देखी ही है लेकिन क्या आप जानना चाहेंगे कि शरहद पर उस समय क्या स्थिति थी, उन्हीं परिस्थितियों को जानने के लिए हम मिले हवलदार निहाल सिंह जी से जो मौत के मुंह से बचकर वापस आए थे, आईये जानते हैं 1962 के असली हीरो से 1962 की पूरी कहानी।
रेजांगला पोस्ट पर रेवाड़ी जिले के कुमाऊं बटालियन में तैनात 124 अहीर जवानों ने चीन के 1300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था, इन जवानों ने अंतिम गोली और अंतिम सांस तक अदम्य साहस और वीरता से विश्व की अभूतपूर्व लड़ाई लड़ी, इन जवानों में वीरता से लड़े जिवित बचकर वापस आए हवलदार निहाल सिंह ने उस युद्ध के अहम पलों को साझा किया।
ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी हॉट स्टार पर हाल ही में आई वेब सीरीज ‘1962: द वार इन द हिल्स’ इन दिनों युवाओं में काफी चर्चित हो रही है, ये कहानी हरियाणा के रेवाड़ी जिले के जवानों पर है जिन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दुश्मन देश के छक्के छुड़ा दिए,
124 सैनिकों ने 1300 चीनी सैनीकों को मारा
इस युद्ध में कुमाऊं रेजीमेंट की C कंपनी के 124 अहीर जवानों ने चीन के 1300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था, इस युद्ध में हमारे 17 जवान ही बचकर वापस आ पाए थे, रेवाड़ी के गांव चिमनावास निवासी सेना मैडल से नवाजे गए सूबेदार निहाल सिंह यादव उस युद्ध के असली सिपाही जो बचकर वापस आए थे।
ये तस्वीरें हैं रेवाड़ी के गांव चिमनावास स्थित 1962 के भारत चीन युद्ध में जिंदा बचकर आये सेना मैडल सहित आठ वीरता मैडल से नवाजे गए सेवानिवृत सूबेदार निहाल सिंह के घर कीं। जहां वह आजकल अपने परिवार के बीच रहकर छोटे मोटे कामों के साथ खेती बाड़ी का भी करते हैं, इनकी उम्र 80 वर्ष हो चुकी है लेकिन जज्बा आज भी 18 वर्ष के जवान से कम नहीं,पूर्व हवलदार ने 1962 के भारत चीन युद्ध की अविस्मरणीय कथा बताई।
सूबेदार निहाल सिंह के अनुसार जब यह सेना में भर्ती हुए तो इनकी उम्र 18 वर्ष की थी, इन्होंने बताया कि 1962 के भारत चीन युद्ध मे चीन के करीब तीन हजार सौनिक थे, जबकि भारत के सिर्फ 124 सैनिक ही उनके सामने थे, जो किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था लेकिन हम हिंदुस्तानियों ने कभी झुकना और हार मानना तो सीखा ही नहीं था, मेजर शैतान सिंह की अगुवाई में 13 कुमाऊँ यूनिट के 124 जवानों पर चीन के तीन हजार सैनिकों ने रेजांगला पोस्ट पर धावा बोल दिया लेकिन उन्हें नाकों चने चबाते हुए हमने उनके 1300 सौनिकों को मौत के घाट उतार दिया, जबकि युद्ध में घायल हुए चीनियों की तो कोई गिनती ही नहीं, इन्हें आज भी चीनी सेना से किया गया धोखा कभी भूलता नहीं है, इस युद्ध में भारत के 124 में से 17 जवान जिंदा बचे थे जिनमें से आज भी चार जवान जिंदा हैं।, इनके बरकरार जोश की बात तो सुनिए कि आज इनकी उम्र 80 की हो चुकी है लेकिन जरूरत पड़ी तो आज भी रात के अंधेरे में यह अकेले ही चीनियों को तबाह करने का दम रखते हैं।
एक वाक्या जो कभी नहीं भूलता, इन्होंने भगवान के प्रति अपनी अडिग आस्था जताते हुए बताया कि युद्ध के दौरान जब यह दुश्मन एल एम जी से गोलियां दाग रहे थे तभी अचानक इनकी दोनों बाजुओं में गोलियां लग गई और दुश्मनों ने इसका फायदा उठाते हुए इन्हें राउंडअप कर लिया और चीनी सरहद में ले जाकर बंदी बना लिया, और पहरे पर लगा दया, आधी रात का वक्त हो चुका था चारों ओर बर्फ गिर रही थी तभी इन्हें वहां से भागने का मौका मिला और यह वहां से निकलकर झाड़ियों में जा छिपे जो पूरी तरह बर्फ से ढ़कीं थीं,
जब दुश्मनों को पता चला कि यह वहां से भाग गए तो उन्होंने 5 राउंड फायर कर रोशनी में इन्हें तलाशने की कोशिश की लेकिन यह उनकी निगाह में नहीं आये, ये पगड़न्ड़ी से भारतीय सीमा में घुसने की फिराक में थे लेकिन वहां भी दुश्मन मौजूद थे, तभी इन्हें वहां कुत्ता आता हुआ नजर आया जिसका नाम टॉमी था और अक्सर वह उसे खाने को रोटी देते थे। टॉमी इनके पास आ गया तो इन्होंने उससे अपनी सीमा में चलने को बोला, बस फिर क्या था भगवान के रुप में आये टॉमी ने इन्हें पहाड़ों की तलहटी से होते हुए इनकी सीमा में इनकी बटालियन तक पहुंचा ही दिया, यह वाक्या चाहकर भी नहीं भूल पाते,चीन की धोखेबाज प्रवृत्ति पर इन्होंने कहा कि काठ की हांडी सिर्फ एक बार ही चढ़ती है, एक न एक दिन चीन की यही प्रवृत्ति दुनिया के नक्शे से चीन का नाम ख़त्म कर देगी इसमें को संदेह नहीं,
उन्होंने कहा 1962 के भारत युद्ध पर सरकार ने जो वैब सीरीज बनाई उसके लिये यह सरकार का धन्यवाद करते हैं, जिसने शहीदों की याद को युगों-युगों तक संजोये रखने की एक अच्छी शुरुआत की है,युवा पीढ़ी के लिये इन्होंने संदेश देते हुए कहा कि देश सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है इसलिए ज्यादा से ज्यादा सेना में भर्ती होकर देश सेवा में तत्पर रहें।