India News Haryana (इंडिया न्यूज), Stubble Burning Cases : बीते कुछ सालों की तरह इस बार भी दिल्ली की हवा बेहद खराब स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय राजधानी और एनसीआर में आने वाले हरियाणा के कई राज्यों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 से 500 के बीच या इससे भी ज्यादा रिपोर्ट हुआ है और इस दिशा में अतिरिक्त कदम उठाए जाने की जरूरत है।
हालांकि बार-बार दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए हरियाणा की पराली जलाने की घटनाओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाता था, लेकिन हर किसी को जानकारी होगी कि वायु प्रदूषण में पराली जलाने की घटनाओं का योगदान महज कुछ फीसदी ही है। इस बार भी हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं की बेहद व्यापक स्तर पर कमी आई है और पड़ोसी पंजाब राज्य में पराली जलाने की घटनाएं हरियाणा की तुलना में कहीं ज्यादा रिपोर्ट की गई हैं।
इस बार कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, जींद, फतेहाबाद और सिरसा जैसे जिलों में किसानों ने पराली जलाने के बजाय उसे बेलर मशीनों से गांठों में बदल दिया। इसकी वजह बेलर मशीनों की बढ़ी हुई उपलब्धता और सरकार की ओर से दी जा रही सब्सिडी है। इसके अलावा, मानसून के समय पर खत्म होने से किसानों को खेत साफ करने के लिए ज्यादा समय मिला। हालांकि, पराली के निपटारे का काम अभी आधा ही हुआ है। बची हुई पराली को बिजली संयंत्रों तक पहुंचाने की जरूरत है, जिसके लिए को अतिरिक्त कदम उठाने की जरूरत है।
2021 की तुलना में 80 फीसदी से ज्यादा मामले घटे हैं। हरियाणा में पिछले चार साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्पष्ट पता चलता है कि पराली जलाने की घटनाओं में 80 फीसदी से भी ज्यादा कमी आई है। सैटेलाइट डाटा के अनुसार हरियाणा में 2021 में 6969 घटनाएं सामने आई थी और इनकी तुलना में 2022 में पराली जलानी घटनाएं घटकर 3747 रह गईं।
आंकड़ों के लिहाज एक साल की अवधि में हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में 52 फीसदी की कमी रिपोर्ट हुई है। इसके बाद साल 2023 में 2296 पराली जलाने की घटनाएं रिपोर्ट हुईं और साल 2022 की तुलना 1300 से ज्यादा कम मामले रिपोर्ट हुए और इस लिहाज से पराली जलाने के नए मामलों में 62 फीसद की कमी रिपोर्ट की गई। वहीं साल 2024 में जीरी का फसली सीजन पूरा हो चुका है तो इस सीजन में सैटेलाइट डाटा के अनुसार पराली जलाने की कुल 1389 घटनाएं रिपोर्ट हुए हैं।
आंकड़ों के लिहाज से 2021 की पराली जलाने के 6969 मामलों की तुलना में साल 2024 में 5530 कम मामले (करीब 80 फीसदी), 2022 के 3647 मामलों की तुलना में 2258 कम मामले (62 फीसदी कम) और 2023 के 2296 मामलों की तुलना में 907 कम मामले ( करीब 40 फीसदी) रिपोर्ट हुए हैं। ये भी बता दें कि गत जीरी के सीजन में 15 सितंबर से 10 नवंबर तक 56 दिनों में पराली जलाने के 922 केस सामने आए हैं, जबकि साल 2023 में 10 नवंबर तक 1917 केस थे। साल 2022 में पराली जलाने के कुल 3154 मामले आए थे। वहीं, साल 2023 में 2303 मामले आए थे, यानी 37 फीसदी कमी दर्ज हुई थी।
हरियाणा जीटी रोड बेल्ट पर पड़ने वाले आधा दर्जन से ज्यादा और पंजाब बॉर्डर से सटे जिले जिनको ज्यादा पैदावार होने के चलते धान के कटोरे की संज्ञा दी गई, में अबकी पार पिछले कुछ साल की तुलना में बेहद कम मामले रिपोर्ट हुए हैं। जींद जिले में अबकी बार सबसे ज्यादा 214 पराली जलाने के मामले रिपोर्ट हुए हैं वहीं पिछले साल यहां 335 मामले रिपोर्ट हुए थे।
वहीं अबकी बार कैथल में 194, सिरसा में 185, कुरुक्षेत्र में 132, फतेहाबाद में 130, करनाल में 94 मामले रिपोर्ट हुए हैं, जबकि पिछले साल इन जिलों में क्रमश: 270, 161, 154, 126 और 576 मामले रिपोर्ट हुए थे। जीटी रोड बेल्ट पर सबसे ज्यादा जीरी उगाने वाले जिलों में अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, अंबाला के अलावा साथ लगते कैथल में भी पराली जलाने के मामलों में व्यापक स्तर पर कमी आई है।
हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का रवैया भी काफी सख्त रहा है। प्रदेश में पहली बार पराली जलाने पर किसानों की गिरफ्तारी और मेरी फसल-मेरा ब्योरा पोर्टल पर रेड एंट्री की कार्रवाई हुई है। रेड एंट्री होने वाले किसान दो सीजन तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसल नहीं बेच सकेंगे। अभी तक 600 से अधिक किसानों की रेड एंट्री और 300 से अधिक एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। हरियाणा सरकार के बेहतर पराली प्रबंधन की तस्वीर नासा के मानचित्र पर भी प्रदर्शित हो चुकी है।
हरियाणा पराली प्रोत्साहन योजना के तहत पराली प्रबंधन के लिए किसानों को एक हजार रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही किसानों को पराली को मिट्टी में मिलाने और गांठें बनाने के लिए सुपर सीडर, जीरो टिलेज मशीन, स्ट्रॉ चॉपर और हैप्पी सीडर जैसे कृषि यंत्र सब्सिडी पर दिए जा रहे हैं। ये भी बता दें कि हरियाणा के 7 जिलों में 15 जगह उद्यमी बॉयलर चलाने के लिए पराली से ईंधन बनाकर काम चलाते हैं।
इसी तरह 11 जिलों में 23 जगहों पर ईंट बनाई जा रही हैं और 10 जिलों में बिजली का निर्माण कराया जाता है। यहां पर 3,51,000 मीट्रिक टन पराली की खपत है। कैथल के कांथली क्षेत्र में बिजली संयंत्र स्थापित है। जिले की 90 फीसदी पराली इसी संयंत्र में जाती है, शेष पिहोवा स्थित गत्ता फैक्ट्री में भेजी जाती है। ज्यादातर पराली फैक्ट्रियों में बेच दी जाती है।