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Ashok Tanwar : भाजपा के धुर विरोधी रहे अशोक तंवर भगवा रंग में रंगे

PUBLISHED BY: • LAST UPDATED : January 21, 2024
  • पार्टी आरक्षित सीट अंबाला या सिरसा से उतार सकती है अशोक तंवर को

  • भाजपा की तंवर के जरिए एससी वर्ग को साधने की कोशिश 

डॉ. रविंद्र मलिक, India News, (इंडिया न्यूज), Ashok Tanwar, चंडीगढ़ : आम आदमी पार्टी को तिलांजलि देने के बाद डॉ. अशोक तंवर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व मुख्यमंत्री मनोहर लाल की मौजूदगी में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया है। माना जा रहा है कि राज्यसभा का टिकट न मिलने पर उन्होंने आप छोड़ी और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए उन्होंने भाजपा का हाथ थामा है। साल 2019 के बाद चार साल की अवधि में उन्होंने 4 पार्टी बदली हैं।

साल-2019 में कांग्रेस दिग्गज व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से खींचतान के चलते उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। ये भी बता दें कि अशोक तंवर ने 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में सुबह दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी को समर्थन दिया और फिर शाम को पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल को समर्थन देने की घोषणा कर दी। इसके पीछे उन्होंने हवाला दिया था कि वो भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के ऐसा कर रहे हैं। भाजपा का लंबे समय तक विरोध करने के बाद अब वो खुद भाजपा में शामिल हो गए। सोशल मीडिया पर अब तंवर के भाजपा का कड़ा विरोध करते हुए के वीडियो वायरल हो रहे हैं।

तंवर के जरिए भाजपा को एससी वर्ग को साधने की जुगत

तंवर की भाजपा में एंट्री को दोनों नजरिए से देखा जा रहा है। तंवर की भाजपा में आने के पीछे जहां राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं तो वहीं भाजपा को बदले में तंवर से काफी उम्मीदें हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस में एससी वर्ग से कई बड़े नेता हैं जो वोटर्स को अपनी तरफ खींचने का मादा रखते हैं जबकि भाजपा में फिलहाल कोई ऐसा बड़ा एससी चेहरा नहीं है। कांग्रेस में कुमारी सैलेजा व उदयभान हैं तो वहीें भाजपा में फिलहाल कोई बड़ा कद्दावर एससी लीडर नहीं हैं। रतनलाल कटारिया की मृत्यु के बाद पार्टी में ऐसा कोई चेहर नहीं नजर आ रहा।

कांग्रेस में रहते हुए तंवर का एससी वोटर्स में ठीक-ठाक प्रभाव रहा है। ऐसे में भाजपा की कोशिश होगी कि तंवर के जरिए एससी वर्ग के वोटर्स को अपनी तरफ लाया जाए। पिछले साल पीपीपी के आंकड़ों में सामने आया था कि हरियाणा में करीब 20 फीसद एससी वोटर्स हैं। ये भी बता दें कि अंबाला व सिरसा के अलावा 17 जिलों में 17 आरक्षित सीट हैें। भाजपा की नजर अब तंवर के जरिए इन एससी वोटर्स को अपने पाले में लाने की होगी।

सिरसा से सांसद रहे, यहां से टिकट के दावेदार

अशोक तंवर कांग्रेस में रहते हुए सिरसा लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा उनको सिरसा सीट से चुनाव में उतार सकती है। यहां उनका जनाधार भी है। आप छोड़ने के बाद उनके कई समर्थक भी भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं। सिरसा और अंबाला हरियाणा में दो आरक्षित सीट हैं। भाजपा जॉइनिंग से पहले तंवर ने कहा था कि वे टिकट की मंशा से भाजपा में नहीं जा रहे।

पार्टी जहां कहेगी, वहां जाकर मजदूरी करेंगे

वह पार्टी का मजदूर बनकर जा रहे हैं। पार्टी जहां कहेगी, वहां जाकर मजदूरी करेंगे। राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के चलते ही वो भाजपा में आए हैं तो वाजिब है कि वो टिकट के भी चाहवान होंगे। हालांकि पार्टी चाहे तो उनको अंबाला सीट से भी टिकट दे सकती है। अंबाला सीट पर पार्टी से कई दावेदार हैं। इस सीट पर भाजपा की सीधी टक्कर कांग्रेस से होने वाली है। ऐसे में भाजपा इस सीट पर कतई रिस्क नहीं लेना चाहेगी। भाजपा के मिशन 2024 को देखते हुए पार्टी की  कोशिश है पिछली बार की तरह सभी 10 सीटें पार्टी की झोली में आएं।

तंवर के आने से सुनीता दुग्गल की राह हुई कठिन

पिछली बार सिरसा सीट से भाजपा की टिकट पर सुनीता दुग्गल ने चुनाव जीता था। चूंकि तंवर का सिरसा लोकसभा से पुराना नाता है तो पार्टी को उनसे काफी उम्मीदें हैं। सुनीता दुग्गल के खिलाफ सीट पर काफी विरोध नजर आ रहा है। ये बात निरंतर सतह पर उभर रही है कि वोटर्स उनकी कार्यशैली से खुश नहीं हैं। वो कह रहे हैं कि काम तो दूर की बात, वो चुनाव जीतने के बाद लोगों को मिलने व धन्यवाद करने तक नहीं आई।

ये चर्चा पार्टी हाईकमान तक पहुंच चुकी है। पार्टी के इंटरनल सर्वे में भी सामने आ चुका है कि सिरसा सीट पर पार्टी की स्थिति काफी कमजोर है। ऐसे में तमाम समीकरणोें को देखते हुए पार्टी उनको सिरसा से रण में उतार सकती है। ये भी सामने आया है कि दिल्ली में पार्टी प्रभारी बिप्लब देव से मुलाकात कर सुनीता दुग्गल ने पार्टी में उनकी एंट्री का विरोध किया था।

तंवर ने 4 साल में 3 बार पार्टी बदली

कांग्रेस छोड़ने के बाद उनको अन्य किसी पार्टी में वैसी तवज्जो कम ही मिली। 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से नाराज होकर कांग्रेस छोड़ते हुए तंवर ने अपना भारत मोर्चा बनाया और फिर नवंबर-2021 में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में चले गए। लेकिन वहां भी वो ज्यादा समय तक नहीं रह पाए।

हालांकि टीएमसी का हरियाणा में कोई जनाधार नहीं था तो वो पार्टी में कुछ ज्यादा नहीं कर पाए। इसके बाद वह 4 अप्रैल 2022 को अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। आप में उनको स्टेट कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया लेकिन पार्टी में कोई ज्यादा सुखद अवस्था में नहीं रहे। ये देखते हुए लगभग पौने 2 साल वहां रहने के बाद अब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तंवर ने भाजपा का दामन थाम लिया।

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