India News Haryana (इंडिया न्यूज), Kumari Selja Won Sirsa Lok Sabha Seat : सिरसा लोकसभा सीट के रुझानों में कांग्रेस की कुमारी सैलजा क़रीब 2 लाख 20 हज़ार से अधिक वोटों से (2 :30 बजे तक) लगातार जीत की तरफ आगे बढ़ रही हैं। वहीं भाजपा प्रत्याशी अशोक तंवर पीछे हैं। उल्लेखनीय है कि सिरसा लोकसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी और इस सीट पर ज्यादातर कांग्रेस का कब्जा रहा है। हालांकि, साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा को पहली बार जीत मिली थी। इस सीट पर अब तक 16 बार चुनाव हुए है, जिसमें 9 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की। सिरसा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और आईएनएलडी के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला का गृह क्षेत्र है। हालांकि सिरसा सीट इनेलो का गढ़ मानी जाती है।
Kumari Selja Won Sirsa Lok Sabha Seat : समर्थकों में खुशी की लहर
लोकसभा सीट पर कांग्रेस की प्रत्याशी कुमारी सैलजा ने एक बड़ी मार्जिन के साथ बड़ी जीत हासिल की है, उन्हें अब तक 7,32,298 वोट मिले हैं, जबकि उनके मुख्य प्रतिद्वंदी भाजपा के अशोक तंवर को 4,64,472 वोट मिले हैं। इनेलो के संदीप लौट 92,279 वोट पा चुके हैं। कुमारी सैलजा की इस बढ़त से उनके समर्थकों में खुशी की लहर है और उनके आवास पर जश्न का माहौल है। सिरसा संसदीय सीट से विजय उपरांत जिला निर्वाचन अधिकारी एवं उपायुक्त आर.के. सिंह ने शैलजा को जीत का प्रमाण पत्र दिया।
सिरसा लोकसभा सीट पर कांग्रेस की कुमारी सैलजा भाजपा के अशोक तंवर से लगातार आगे चल रही हैं। फिलहाल वे भाजपा से 2,51,017 वोटों से आगे हैं। कांग्रेस को अब तक 6,94,694 और भाजपा को 4,43,677 वोट मिल चुके हैं। इनेलो के संदीप लौट को 85,027 वोट मिले हैं। कांग्रेस प्रत्याशी कुमारी सैलजा की लीड अब 2,33,000 से ज्यादा वोटों की हो गई है। इस मौके पर उनके समर्थक जगह-जगह आतिशबाजी कर रहे हैं और मिठाइयां बांट रहे हैं। सिरसा में कांग्रेस नेता मोहित शर्मा ने भी बाजारों में मिठाई बांटकर खुशी मनाई।
कांग्रेस ने सैलजा तो भाजपा ने अशोक तंवर को उतारा था मैदान में
इससे पहले भाजपा की सुनीता दुग्गल यहां से सांसद थीं, लेकिन भाजपा ने उनका टिकट काट दिया और कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से होते हुए भाजपा में शामिल हुए अशोक तंवर को मैदान में उतारा है। अशोक तंवर 2009 में कांग्रेस की टिकट पर यहां से चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि, 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सुनीता दुग्गल ने कांग्रेस के अशोक तंवर को 3,09,918 वोटों से हराया था। सुनीता दुग्गल को 7,14,351 वोट मिले थे जबकि तंवर को 404,433 वोट मिले थे।
इस सीट पर कांग्रेस की कुमारी सैलजा और भाजपा के डॉ. अशोक तंवर के बीच कड़ा मुकाबला रहा। दोनों ही नेता पहले कांग्रेस में थे और सांसद रह चुके हैं। अब वे अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ा। सुबह से ही कुमारी सैलजा बढ़त बनाए हुए थी और उनकी जीत से समर्थकों में खुशी का माहौल है।
35 सालों से राजनीति में सक्रिय
उल्लेखनीय है कि सैलजा अपने अब तक के करीब 35 वर्ष के सक्रिय सियासी सफर में केंद्र की राजनीति में ही सक्रिय रही हैं और वे 4 बार लोकसभा की सदस्य रहने के अलावा 1 बार राज्यसभा सदस्य और 3 बार केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं। 1991 में वे नरसिम्हा राव सरकार में उप शिक्षा मंत्री रहीं। 2004 में मनमोहन सरकार में वे आवास एवं गरीबी उन्मूलन मंत्री रहीं। 2009 से 2012 तक वे सामाजिक अधिकारिता, जबकि 2012 से 2014 तक पर्यटन मंत्री रहीं। 2014 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया।
सिरसा की जनता की सदैव ऋणी रहूंगी : सैलजा
कुमारी सैलजा ने प्रचंड जीत पर मतदाताओं का धन्यवाद करते हुए कहा है कि वे सदैव जनता की सदैव ऋणी रहेंगी। उनका लक्ष्य क्षेत्र को विकास, शिक्षा, चिकित्सा व बुनयादी सुविधाएं उपलब्ध करवाना उनकी प्राथमिकता होगी। उन्होंने मीडिया को जारी बयान में कहा है कि लोकतंत्र में मतदाता सबसे बड़ी ताकत होती है, सिरसा लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने उन्हें स्नेह, सहयोग, समर्थन रूपी आशीर्वाद से नवाजा है। वे इस प्यार व स्नेह का ऋण कभी उतार नहीं सकती।
उन्होंने कहा कि उनकी जीत भाजपा की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश का परिणाम है। मोदी ने जनता से जो झूठे वायदे किए। जनता ने झूठे वादे करने वालों को आइना दिखाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि सिरसा मेरा अपना घर है, यहां की जनता के आशीर्वाद से उनके पिता चौ. दलबीर सिंह चार बार सांसद रहे और दो बार सिरसा की जनता ने उन्हें सांसद बनने का मौका दिया है, तीसरी बार अपार प्यार और आशीर्वाद देने के लिए मैं उनका आभार व्यक्त करती है और उनकी सदैव ऋणी रहूंगी।
पिता के निधन के बाद राजनीति में सक्रिय हुई थी सैलजा
उल्लेखनीय है कि कुमारी सैलजा अपने पिता चौ.दलबीर सिंह के निधन के बाद साल 1988 में सियासत में सक्रिय हुईं। उनके पिता के निधन के बाद 1988 में हुए उपचुनाव में कुमारी सैलजा ने सिरसा लोकसभा सीट से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कामयाबी नहीं मिलीं। सैलजा 1991 और 1996 में सिरसा से, जबकि 2004 और 2009 में अंबाला से सांसद चुनी गईं। सैलजा ने अब तक के अपने 35 वर्ष के सियासी सफर में करीब 7 संसदीय चुनाव लड़े, लेकिन एक बार भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। वे 1988, 1991, 1996 और 1998 में सिरसा से जबकि 2004, 2009 और 2014 में अंबाला से चुनाव लड़ चुकी हैं। कुमारी सैलजा को सितंबर 2019 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया गया। वे इस पद पर 20 अप्रैल 2022 तक रहीं।
पुराने साथियों के साथ लगातार समन्वय बरकरार
खास बात यह है कि कुमारी सैलजा का शुरूआती राजनीतिक कर्मक्षेत्र सिरसा रहा। इसके अलावा वे हिसार में भी सक्रिय रहीं और साल 1999 के बाद उन्होंने अंबाला को अपनी कर्मभूमि बना लिया। बावजूद इसके अंबाला, हिसार, सिरसा, फतेहाबाद जैसे क्षेत्रों में अपने पुराने साथियों व समर्थकों के साथ उनका समन्वय लगातार बरकरार रहा। खास पहलू यह है कि छत्तीसगढ़ का प्रभारी नियुक्त किए जाने के बाद भी समय-समय पर कुमारी सैलजा लगातार सिरसा, अंबाला, फतेहाबाद व हिसार सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में सक्रिय नजर आईं हैं। अभी पिछले सप्ताह अपने सिरसा प्रवास के दौरान कुमारी सैलजा अपने समर्थकों के बीच पहुंचीं और उनसे सियासी मंथन भी किया। यही नहीं पिछले कुछ महीनों में सिरसा, फतेहाबाद के अनेक कांग्रेसी भी कुमारी सैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं।
सैलजा को संगठन का है लंबा अनुभव
कुमारी सैलजा को संगठन में भी बड़ा लंबा अनुभव है। 1990 में कुमारी सैलजा को हरियाणा महिला कांग्रेस का प्रधान भी चुना गया। इसके अलावा वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्य रहने के अलावा कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य भी हैं। वर्तमान में कुमारी सैलजा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव हैं। पिछले साल दिसंबर में कुमारी सैलजा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी नियुक्त किया गया था। 1991 में वे पहली बार सिरसा से सांसद चुनी गईं और 29 वर्ष की उम्र में केंद्रीय मंत्री बनीं। 1996 में कुमारी सैलजा दूसरी बार सिरसा सीट से सांसद निर्वाचित हुईं। साल 1998 में वे इनैलो के डा. सुशील इंदौरा से चुनाव हार गईं।
साल 2004 के संसदीय चुनाव में पार्टी ने उन्हें सिरसा की बजाय अम्बाला संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया और उस चुनाव में उन्होंने अम्बाला संसदीय क्षेत्र से भाजपा के रत्तनलाल कटारिया को हराया। 2009 के संसदीय चुनाव में वे फिर से अम्बाला से सांसद चुनी गईं। 2014 में उन्हें कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने राज्यसभा का सदस्य जबकि 2019 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। खास बात यह है कि कुमारी सैलजा एकमात्र ऐसी महिला नेत्री हैं जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनी हैं, जबकि उनसे पहले किसी महिला को कांग्रेस अध्यक्ष पद तक पहुंचने का अवसर हासिल नहीं हुआ।
कुमारी सैलजा ने कभी भी पार्टी की लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघा
गौरतलब है कि कुमारी सैलजा को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का विश्वासपात्र माना जाता है। कुमारी सैलजा कांग्रेस पार्टी के प्रति हमेशा से ही वफादार रही हैं। 1988 से लेकर अब तक के 35 वर्षों के सफर में कुमारी सैलजा ने कभी भी पार्टी की लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघा है और हमेशा अनुशासन के दायरे में रहकर संगठन के लिए काम किया। यही वजह रही कि पार्टी हाईकमान द्वारा कुमारी सैलजा को वफादारी का पुरस्कार भी दिया जाता रहा है। इस कड़ी में उन्हें कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव, अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य एवं छत्तीसगढ़ के प्रभारी जैसे बड़े पदों पर नियुक्त किया है।
उल्लेखनीय है कि विवादों से हमेशा दूर रहने वाली कुमारी सैलजा ने संगठन में रहते हुए पार्टी को मजबूत किया है। विशेष बात यह है कि उन्हें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भी करीबी माना जाता है। कुमारी सैलजा के पिता चौ. दलबीर सिंह तीन दशक कांग्रेस की सियासत में सक्रिय रहे और अपने पिता के निधन के बाद 1988 से कुमारी सैलजा कांग्रेस में रहकर राजनीति कर रही हैं। कांग्रेस हाईकमान की ओर से अप्रैल 2022 में जब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद से उन्हें हटाया गया तो भी सैलजा ने शीर्ष नेतृत्व के फैसले को ही सर्वोपरि बताया था। इसके साथ ही कुमारी सैलजा तेजी से एक दलित महिला नेत्री के रूप में राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बनाने में सफल हुई हैं।