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बायो-डिकंपोजर तकनीक पर्यावरण के लिए वरदान
बायो-डिकंपोजर तकनीक पर्यावरण के लिए वरदान
करनाल / महेंद्र सिंह
फसल अवशेष प्रबंधन किसानों के लिए बड़ी चुनौती रहा है। सरकार और प्रशासन के लाख प्रयासों के बावजूद किसान फसलों के अवशेष में आग लगाते है। फसल अवशेषों को पोषक खाद में बदलने के लिए पूसा संस्थान ने बायो-डिकंपोजर तकनीक विकसित की है । एक्सपर्ट के अनुसार फसल अवशेष एंजाइम का छिड़काव करने के बाद 20 से 25 दिन में फाने सड़ जाते है और जमीन अगली फसल की बुआई के लिए तैयार हो जाती है।
पूसा इंस्टीट्यूट के सहयोग से फील्ड में काम कर रही नेचर फार्म की टीम जमालपुर गांव में पहुंची। किसानों को फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए विकसित की गई डिकम्पोज विधि की विस्तृत जानकारी दी गई । सीटीओ प्रणव तिवारी ने कहा कि धान की फसल लेने के बाद किसान को अगली फसल लेने के लिए भूमि को तैयार करना होता है। इसलिए वह फसल में आग लगा देते है। आग की वजह से पर्यावरण प्रदूषण तो बढ़ता ही है साथ ही भूमि का उपजाऊपन भी खराब हो जाता है। पूसा बायो-डिकंपोजर किसानों के लिए एक बड़ा विकल्प साबित हो सकता है। पराली के अपघटन से कार्बनिक कार्बन और मिट्टी के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। अगले फसल चक्र के लिए उर्वरकों की लागत में उल्लेखनीय कमी आती है। जब कुछ समय के लिए इस सिस्टम को अपनाया जाता है, तो यह मिट्टी के पोषक तत्वों और माइक्रोबियल गतिविधि में काफी वृद्धि करता है। जिससे किसानों के लिए कम लागत पर बेहतर उपज और उपभोक्ताओं के लिए जैविक उत्पाद सुनिश्चित होता हैं।
पंजाब और हरियाणा में 26 हजार किसानों के स्वामित्व वाली 5 लाख एकड़ भूमि में छिड़काव किया जा रहा है। जिसके सार्थक परिणाम सामने आ रहे है। वहीं जमालपुर के किसान प्रवीन शर्मा ने बताया कि उसने दवाई का छिड़काव करवाया था। जिसके 20 दिन बाद ही उसने अपना खेत दूसरी फसल के लिए तैयार कर लिया था। अब उसमें सरसों लगाई हुई है और इसका खर्च भी 500 से 700 रुपए प्रति एकड़ आता है।
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