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Meri Awaaz Suno Rally : जींद रैली के जरिए कई निशाने साधने की जुगत में बीरेंद्र सिंह

  • भाजपा और जजपा पर भी दबाव बढ़ाने की कोशिश

  • भीड़ जुटाकर उचाना सीट पर दावा मजबूत करेंगे बीरेंद्र सिंह

  • साथ में भाजपा से राजनीतिक मोलभाव से पहले खुद को सशक्त करने की कोशिश

India News (इंडिया न्यूज़), Meri Awaaz Suno Rally, चंडीगढ़ : हरियाणा में आने वाले चुनाव को लेकर तमाम पार्टियां चुनावी तैयारियों में जुटी हैं। इनेलो और जजपा ने 25 सितंबर को कैथल और सीकर रैलियों के जरिए दमखम दिखाने की की कोशिश की। इसी कड़ी में अब 2 अक्टूबर को भाजपा दिग्गज चौधरी बीरेंद्र सिंह ने मेरी आवाज सुनो रैली का आयोजन रखा है। उनकी कोशिश है कि चुनाव से पहले पार्टी के अंदर और बाहर दोनों जगह अपनी ताकत की बानगी पेश करें।

उनकी यह रैली बिना भाजपा के हो रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पार्टी लाइन से अलग हटकर रैली को सफल बनाने के लिए सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह और परिवार के अन्य लोगों के साथ एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। बीरेंद्र सिंह की रैली पर उनकी पार्टी और दूसरे दलों की नजर टिकी हुई हैं। ये भी किसी से छिपा नहीं है कि वो अंदरुनी तौर पर अपनी पार्टी से नाराज चल रहे हैं। रैली के जरिए उनकी कोशिश है कि पार्टी हाईकमान में उनकी प्रत्यक्ष बैठ हो।

क्या बीरेंद्र सिंह उठा सकते हैं बड़ा कदम …

बीरेंद्र सिंह 2 अक्टूबर को रैली में क्या कदम उठाएंगे, इस पहलू पर सबकी नजर टिकी हुई है। बीरेंद्र सिंह के समर्थक लगातार दावा कर रहे हैं कि वो रैली में कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। पूर्व में भी इस तरह की चर्चाएं चली थी कि वो भाजपा को छोड़कर अपनी नई पार्टी का गठन कर सकते हैं, लेकिन वो लगातार इस तरह की संभावनाओं को नकारते रहे।
एक बार फिर ऐसी ही चर्चा उफान पर है कि वो भाजपा को तिलांजली देकर अपनी खुद की पार्टी का ऐलान कर सकते हैं या फिर कांग्रेस ज्वाइन कर सकते हैं। उनके समर्थक द्वारा बार-बार इसको लेकर संकेत दिया जाना काफी कुछ बयां करता है। चूंकि फैसला उनको लेना है तो 2 अक्टूबर को ही पता लगेगा।

भाजपा को फायदा या नुकसान, इस पर भी मंथन जारी

चूंकि चौधरी बीरेंद्र इस रैली को गैर राजनीतिक आयोजन बता रहे हैं और भाजपा का भी इस रैली में कोई किरदार नहीं है तो इसके चलते भी कई तरह की चर्चाओं के दौर जारी हैं। ये बात निरंतर धरातल पर आ रही है कि इस रैली से भाजपा को फायदा होगा या नुकसान। खुद भाजपा भी लगातार पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर बनाए हुए है। हालांकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर रैली सफल रहती है तो कहीं न कहीं भाजपा को इससे फायदा होगा, बशर्ते बीरेंद्र सिंह भाजपा से अलग होने का फैसला न लें।

जाट समुदाय के बीच भाजपा की कोई खास पैठ नहीं है। चौधरी वीरेंद्र सिंह की गिनती कद्दावर जाट नेताओं में होती है तो भाजपा की कोशिश है कि उनके जरिए जाट वोट बैंक में सेंध लगाई जाए। यदि चौधरी बीरेंद्र सिंह इस रैली के जरिए जाटलैंड और जाटों को साधने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा को इसका फायदा मिलना तय है लेकिन बदले में बीरेंद्र सिंह भी भाजपा से पूरी शिद्दत से राजनीतिक मोल भाव करने की हालत में होंगे।

रैली सफल रही तो भाजपा का जजपा पर दबाव बढ़ेगा

वहीं भाजपा के एक सीनियर नेता ने बताया कि भाजपा भी चाहती है कि बीरेंद्र सिंह की रैली सफल हो। इसके पीछे मकसद ये है कि भाजपा सहयोगी जजपा पर दबाव डालने में सफल रहेगी। एनडीए की बैठक में बुलाए जाने से पहले भाजपा नेता लगातार कह रहे थे कि चुनाव से पहले जजपा से पिंड छुड़वा लेना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया तो चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ेगा।

इसके चलते कहीं न कहीं जजपा भी बैकफुट पर नजर आ रही थी। चूंकि अब वो एनडीए का हिस्सा है तो पार्टी को भाजपा की दबाव की राजनीति से निजात मिली। अब राजस्थान में चुनाव लड़ने के बहाने कहीं न कहीं वो भाजपा पर दबाव डालने की जुगत में है। इसी कड़ी में बीरेंद्र सिंह की रैली सफल रहने पर भाजपा सहयोगी जजपा पर दबाव बनाने में सफल रहेगी और पार्टी चाहेगी तो गठबंधन से भी निजात पा लेगी।

बेटे के सुरक्षित भविष्य के लिए रैली के जरिए भाजपा पर दबाव की रणनीति

बीरेंद्र के बेटे फिलहाल भाजपा की ओर से हिसार से सांसद हैं। लेकिन कहीं न कहीं पार्टी से उनकी व बेटे की नाराजगी और टीस धरातल पर उभरकर आ ही आती है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सार्वजनिक मंच पर भी बीरेंद्र सिंह कई बार अपनी ही पार्टी को घेर चुके हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीरेंद्र सिंह की कोशिश होगी कि रैली में ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाकर वो पार्टी को अपनी ताकत का अहसास करवाएं।

वो दिखाना चाहेंगे कि वो अब भी चूके हुए नहीं हैं और आज भी वोटर्स में उनकी पकड़ है। उनके समर्थकों का दावा है कि रैली में 50 हजार से ज्यादा लोगों के लिए इंतजाम किया है। अगर रैली उनके आशानुरूप रहती है तो इसके जरिए दबाव बनाकर कहीं न कहीं वो भाजपा से बेटे के सुरक्षित राजनीतिक भविष्य का आश्वासन चाहेंगे।

रैली के जरिए उचाना सीट पर जजपा की तुलना में दावा मजबूत करने की कोशिश

सत्ता में सहयोगी जजपा और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला और चौधरी बीरेंद्र सिंह के बीच राजनीतिक वर्चस्व की जंग जारी है। दोनों ही उचाना सीट पर दावा ठोक रहे हैं। चौधरी वीरेंद्र सिंह कई बार कह चुके हैं कि भाजपा को जजपा से गठबंधन तोड़ देना चाहिए और चुनाव में इससे पार्टी को नुकसान होगा। चौधरी बीरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी कई बार कह चुके हैं कि उचाना सीट से उनका परिवार ही मैदान में उतरेगा।

हालात चाहे कुछ भी रहे वह सीट से अपना दावा नहीं छोड़ेंगे। रैली के जरिए उनकी यह भी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाकर उचाना सीट पर अपनी दावेदारी मजबूत करें। चौधरी बीरेंद्र सिंह उचाना विधानसभा सीट से पांच दफा विधायक रह चुके हैं, फिलहाल ये सीट जजपा के खाते में है और यहां से दुष्यंत चौटाला विधायक हैं। उचाना बीरेंद्र सिंह की यह पैतृक सीट मानी जाती है। वह इस सीट को फिर से हासिल करना चाहते हैं, भाजपा से वह अपने बेटे के लिए यहां से दावेदारी पेश कर रहे हैं। गौरतलब है की उचाना से 1977 में पहली बार चौधरी बीरेंद्र सिंह सीट के पहले विधायक बने थे।

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Amit Sood

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