इंडिया न्यूज, नई दिल्ली।
चैत्र चतुर्दशी पर पिहोवा में होने वाला मेला उत्तर भारत के प्रमुख मेलों में शुमार है। मेले में देशभर से लाखों श्रद्धालु स्नान करने, पिंडदान करने और पितरों की सद्गति कराने के लिए यहां पिहोवा पहुंचते हैं। ज्ञात रहे कि कोरोना काल के कारण पिछले दो साल से यह मेला नहीं लग सका था, लेकिन इस बार मेले को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। चैत्र चतुर्दशी मेला प्राचीन काल से ही लग रहा है। करीब 1140 साल पहले 882 ईस्वी में लिखे एक शिलालेख से भी इसकी पुष्टि होती है। पिशाची चतुर्दशी मेले में अब लोग अपने पूर्वजों के निमित्त पिंडदान आदि कराने आते हैं।
मेले में पहले जहां घोड़ों के व्यापारियों को फायदा होता था। वहीं इससे कर (टैक्स) के रूप में राजस्व भी जुटाया जाता था। पंडित विनोद पचौली के अनुसार यहां स्नान व दान और पिंडदान के अलावा घोड़ों का भी व्यापार होता था। इसके लिए देशभर से पहुंचे प्रमुख लोगों की समिति बनाई जाती थी।
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