डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Punjab University, चंडीगढ़ : हरियाणा की तरफ से पिछले कुछ दिनों से ये मामला निरंतर उठाया जा रहा है कि प्रदेश के अंबाला, यमुनानगर और कुरुक्षेत्र जिलों के कॉलेजों को पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) चंडीगढ़ से दोबारा से जोड़ा जाए। इससे यहां के कॉलेजों को पीयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के अंडर पढ़ाई करने का मौका मिलेगा। फिलहाल इन तीनों जिलों के कॉलेज कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के अंडर आते हैं। तीनों जिलों के कॉलेजों को पीयू से जोड़े जाने की हरियाणा सरकार की मांग से यूनिवर्सिटी स्टेकहोल्डर्स कोई खास इत्तेफाक नहीं रखते। मामले को लेकर उनकी अपनी आपत्तियां हैं।
वहीं पंजाब यूनिवर्सिटी की सीनेट बॉडी व पंजाब सरकार भी नहीं चाहते कि हरियाणा के कॉलेजों को पीयू से जोड़ा जाए। इससे परे पंजाब यूनिवर्सिटी खुद भी कई मोर्चों पर समस्याओं से जूझ रही है। पीयू के स्टूडेंट्स और टीचर्स पिछले कुछ समय में अलग-अलग मुद्दों पर धरने देते रहे हैं। इसके अलावा ये भी बता दें कि 5 अगस्त को नैक की टीम ने पीयू कैंपस का दौरा किया था। इस दौरान कई विभागों की कार्यशैली पर टीम ने गंभीर सवाल उठाए थे और अधिकारियों को काफी परेशानी से गुजरना पड़ा। इस मामले की चर्चा भी चहुंओर है।
वहीं मामले को लेकर कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के ज्यादातर टीचर्स का मानना है कि अगर हरियाणा के कॉलेजों को पीयू के अंडर लाया गया तो इसका नुकसान हरियाणा को ही होगा। जिन तीन जिलों के कॉलेजों को पीयू से जोड़ने की बात हो रही है, वहां से यूनिवर्सिटी को काफी रेवेन्यू मिलता है। केयूके पहले से ही आर्थिक मोर्चे पर जूझ रही है तो ऐसे में जरूरी है कि हम इन कॉलेजों को पीयू के अंडर लाने के लिए कदम आगे न बढ़ाएं। इसके अलावा टीचर्स का मत है कि खुद यूनिवर्सिटी आर्थिक मोर्चे पर जूझ रही है और अगर हमारे कॉलेज पीयू के अंडर आ गए तो ज्यादा आर्थिक दिक्कतें पेश आएंगी।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल लगातार कह रहे हैं कि पीयू पर हमारा भी हक है और इसमें हमें हिस्सेदारी चाहिए। पूर्व में भी हरियाणा के कई कॉलेज पीयू से एफिलिएटेड रहे हैं। पिछले दिनों मामले को लेकर पीयू प्रशासन, पंजाब सरकार और हरियाणा सरकार के बीच कई दौर की बात हो चुकी है। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी और सभी बैठक बेनतीजा रही। हरियाणा की हिस्सेदारी को लेकर पंजाब का रुख हरियाणा के कतई विपरित है। पंजाब के सीएम भगवंत मान ने हरियाणा को हिस्सेदारी देने से मना कर दिया है। माना जा रहा है कि पंजाब को लगता है कि अगर पीयू में हरियाणा को हिस्सेदारी दी गई तो पंजाब का चंडीगढ़ पर राजधानी का दावा कम पड़ेगा
पंजाब यूनिवर्सिटी फैकल्टी को सातवें वेतन आयोग के लाभ अब तक नहीं मिले। इसको लेकर टीचर्स के प्रयास जारी हैं लेकिन धरातल पर स्थिति जस की तस है। साल 2016 से लेकर फिलहाल तक उनका 7 साल का एरियर अब तक नहीं मिला। टीचर्स लगातार मांग कर रहे हैं उनको एरियर दिया जाए और ये उनका हक है। उनको सातवें वेतन के तहत एरियर की जो राशि दी जानी है, उसमें केंद्र और पंजाब सरकार दोनों द्वारा दिए जाने वाला हिस्सा निर्धारित है। दोनों ही द्वारा पीयू टीचर्स को महज विराट आश्वासन देकर ही टरकाया जा रहा है। मामले को लेकर पीयू फैकल्टी साइलेंट कैंडल लाइट प्रोटेस्ट कर रहे हैं और अपनी मांग नहीं जाने के विरोध में पीयू के गांधी भवन पर हर रोज शाम को पिछली 18 मई से मोमबत्ती जलाकर अपना मौन विरोध दर्ज करवा रहे हैं।
पंजाब यूनिवर्सिटी में अगर टीचिंग फैकल्टी की बात करें तो हालात चिंताजनक ही हैं। संस्थान में टीचर्स के स्वीकृत पद 1378 हैं। इनमें कई पद खाली हैं। हालांकि करीब 100 पदों पर वो टीचर्स काम कर रहे हैं जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इन टीचर को न्यायालय के स्थगन आदेश के बाद दोबारा समायोजित किया गया है। हर साल टीचर्स रिटायर भी होते हैं। ये भी बता दें कि साल 2014 के बाद से शिक्षकों की भर्ती नहीं की गई। अनुमानित तौर पर संस्थान में 45 से 50 फीसदी तक पद खाली हैं और इसके चलते स्टूडेंट्स की पढ़ाई प्रभावित हो रही है, लेकिन शायद ही इससे किसी को फर्क पड़ रहा हो।
स्थिति ये है कि पीयू में लंबे समय से कई बड़े प्रशासनिक पद खाली पड़े हैं और इनको अतिरिक्त प्रभार के रूप में किसी अन्य को देकर काम चलाया जा रहा है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संस्थान में रजिस्ट्रार, कंट्रोलर और डीसीडीसी जैसे प्रशासनिक ओहदे खाली हैं। इन पदों पर नियमित भर्ती न होने के चलते संस्थान का काम व्यापक पैमाने पर प्रभावित हो रहा है। दोनों पदों के जुलाई तक भरने की संभावना बताई जा रही थी, लेकिन फिलहाल तक स्थिति जस की तस है। इसके अलावा भी कई बड़े प्रशासनिक पद खाली हैं जिनको तुरंत प्रभाव से भरे जाने की आवश्यकता है।
पीयू फैकल्टी लंबे समय से लंबित एरियर दिए जाने की मांग कर रही है। मामले को लेकर केंद्र सरकार व पंजाब सरकार के सामने हम अपनी बात रख रहे हैं लेकिन धरातल पर स्थिति में कोई बदलाव नहीं है। दोनों का रवैया उचित नहीं है और इसके चलते टीचर्स में गलत संदेश जा रहा है। दोनों को चाहिए कि बिना किसी विलंब के तुरंत प्रभाव से टीचर्स का सात साल का लंबित एरियर रिलीज किया जाए। इसको लेकर हम पिछले महीने से साइलेंट कैंडल लाइटिंग प्रोटेस्ट कर रहे हैं।
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