India News Haryana (इंडिया न्यूज), Congress Internal Strife : कोई भी पार्टी हो उस पर अनर्गल आरोप लगते ही रहते हैं। कांग्रेस की बात करें तो इस पार्टी पर परिवारवाद के आरोप देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी के समय से ही लगते आ रहे हैं। कांग्रेस की राजनीति में हमेशा से दलितों और पिछड़े वर्ग को लेकर विशेष अवधारणा रही है, लेकिन हालिया राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में जिस प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार है, वहां पर कांग्रेस परिवारवाद और जातिवाद के आरोपों से घिरी नजर आती है। हरियाणा में कांग्रेस इन आरोपों से अछूती नहीं है।
जिस प्रकार हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कुमारी सैलजा के रूप में पार्टी की बड़ी दलित नेता को लोकसभा सांसद होने का हवाला देकर मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर किया गया, उसने कांग्रेस पर उठ रहे इन सवालों को और गहरा कर दिया है। वहीं विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा कई सालों से हरियाणा कांग्रेस में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। पार्टी के भीतर उनके विरोधी भी कम नहीं हैं, लेकिन तमाम विरोधों के बावजूद हुड्डा कांग्रेस पार्टी में अपना कद समय-समय पर स्पष्ट करते रहे हैं।
हालांकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री रहते हरियाणा में होने वाली दलित विरोधी घटनाओं के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी आज भी निरुत्तर नजर आती है। मिर्चपुर और गोहाना कांड जैसी घटनाओं के कारण कांग्रेस पार्टी आज भी दलित समुदाय के प्रतिनिधित्व के मामले में बैकफुट पर नजर आती है, तो वहीं प्रदेश के दलित समुदाय के लोगों में भी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के प्रति एक स्वाभाविक रोष महसूस किया जा सकता है। हालांकि काँग्रेस आलाकमान से नजदीकी संबंध होने के कारण हरियाणा कांग्रेस में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कुमारी सैलजा को किनारे करने का काम किया है।
दो बार मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा भले ही हरियाणा में कांग्रेस का बड़ा चेहरा हैं, लेकिन पार्टी में इस बार कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और बिरेंद्र सिंह जैसे कद्दावर नेताओं ने हुड्डा की एकछत्र वाली छवि के लिए कड़ी चुनौती पेश की। लेकिन अंत में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने इन सभी नेताओं को पीछे धकेल कर फिर साबित कर दिया की हरियाणा कांग्रेस में अंतिम फैसला आज भी उनका ही है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण के समय भी कांग्रेस ने पार्टी नेताओं के सात करीबी रिश्तेदारों को मैदान में उतारा है, जिनमें दो बेटे, एक पत्नी, एक दामाद, एक पूर्व सीएम का पोता और भूपेन्द्र हुड्डा के समधी शामिल हैं। टिकट आवंटन में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की पैठ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी मांगों को अंततः कांग्रेस पार्टी को मानना ही पड़ा और नाराजगी की खबरों के बीच हुड्डा ने अपने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले समर्थित नेताओं को भी टिकट दिलवा दिया।
भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के विरोधी भी इस बात को मान चुके हैं कि हरियाणा कांग्रेस और उसके अहम फैसलों पर सबसे अधिक प्रभाव उनका ही है। कुमारी सैलजा को पार्टी की एक कर्मठ कार्यकर्ता के साथ-साथ दलितों का बड़ा चेहरा होने के बाद भी जिस तरह मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर किया गया, वह कांग्रेस में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की प्रभावी रणनीति और लॉबिंग का ही एक उदाहरण है। हालांकि पार्टी के बाहर इसका संदेश सकारात्मक नहीं गया और कार्यकर्ताओं के बीच “हुड्डा ही कांग्रेस है ,कांग्रेस ही हुड्डा है” जैसी बातें चलने लगीं। परिणामस्वरूप जिससे कांग्रेस से दलित वोट छिंटकता दिखाई दे रहा है।
वहीं आपको बता दें कि हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से जिन 89 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, उनमें से 72 उम्मीदवारों को भूपेंद्र सिंह हुड्डा का करीबी माना जा रहा है। वहीं कुमारी सैलजा के समर्थित उम्मीदवार दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सके। इसी कारण कांग्रेस पर हुड्डा कैंप के प्रभाव में आकर दलित और महिला नेता के योगदान को नजरअंदाज करने के आरोप लग रहे हैं, ताकि पार्टी की सत्ता का केंद्र कुछ चहेते और दबंग नेताओं के हाथों में ही कायम रहे।
विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस द्वारा एक सोची-समझी रणनीति के तहत पार्टी की कद्दावर दलित चेहरा मानी जाने वाली कुमारी सैलजा को राजनैतिक तौर पर किनारे करने के आरोप लग रहे हैं। सैलजा जमीन से जुड़ी नेता मानी जाती हैं, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह की पार्टी में मजबूत पकड़ होने के कारण कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सैलजा को तवज्जो नहीं दी और हुड्डा की जाट पॉलिटिक्स पर भरोसा जताया है। हरियाणा में चुनाव से पहले ही कांग्रेस में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जंग छिड़ी हुई है। पार्टी की नेता कुमारी सैलजा ने मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी इच्छा जाहिर की थी, लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी ने पल्ला झाड़ते हुए इसे उनका निजी बयान बता दिया था।
सैलजा समर्थकों और उनकी सोशल मीडिया टीम का कहना है कि उनके कार्यक्रमों से जुड़ी पोस्ट या उनके बयानों को कांग्रेस के अधिकारिक अकाउंट में साझा नहीं किया जा रहा। हरियाणा कांग्रेस अपने इस रवैये से अब विवादों में घिरती दिख रही है। सैलजा के साथ हुए इस व्यवहार को एक दलित नेता को पार्टी की मुख्यधारा से दूर करने की सोच के रूप में देखा जा रहा है, जो आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।