India News (इंडिया न्यूज), Congress organization issue , चंडीगढ़ : हरियाणा कांग्रेस में संगठनात्मक नियुक्तियों को लेकर इंतजार लंबा खिंच गया गया। पार्टी ने पिछले कई वर्षों में कई अध्यक्ष व प्रभारी देख लिए, लेकिन पिछले 9 साल में प्रदेश में संगठन खड़ा नहीं हो पाया। अब इस कड़ी में सामने आया है कि पार्टी पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद संगठनात्मक नियुक्ति कर सकती है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष उदयभान ने आश्वासन दिया कि जल्द ही नियुक्ति की जाएंगी, लेकिन ये सब इतना आसान नहीं है। पार्टी को नया प्रदेश प्रभारी मिले भी काफी समय हो गया है, लेकिन धरातल पर हालात ज्यों के त्यों हैं।
हालांकि खुद पार्टी के दिग्गज मानते हैं कि नियुक्ति न होने के चलते पार्टी को नुकसान भी हो रहा है। ये बात भी सर्वविदित है कि पार्टी के दिग्गजों के बीच जारी कलह के चलते अभी तक ये मामला सिरे नहीं चढ़ पाया। चूंकि अब प्रदेश अध्यक्ष बड़े कॉन्फिडेंस से तय समय में नियुक्तियों का दावा कर रहे हैं तो पार्टी को उम्मीद भी बंधी है। लेकिन ये भी किसी से छुपा नहीं है कि इस तरह के वादे पार्टी नेताओं, अध्यक्षों व इंचार्ज द्वारा पूर्व किए जा चुके हैं। मुख्य रूप से संगठनात्मक नियुक्तियां न होने के पीछे पार्टी दिग्गज भूपेंद्र सिंह हुड्डा व धुर विरोधी तिकड़ी रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुमारी सैलजा (एसआरके) के बीच जारी वर्चस्व की लड़ाई है, जिसके खत्म होने की भी उम्मीद नगण्य ही हैं। फिलहाल हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा खेमा भारी है।
हरियाणा कांग्रेस को इसी साल 9 जून को दीपक बाबरिया के रुप में नए प्रभारी मिले लेकिन संगठनात्मक नियुक्तियों की बात अब तक सिरे नहीं चढ़ पाए। हालांकि वो भी कई बार कह चुके हैं कि जल्द ही नियुक्तियों संबंधित प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाया जाएगा, लेकिन स्थिति नहीं बदली। इसके पीछे मुख्य रूप से पार्टी के सियासी दिग्गजों के बीच जारी मतभेद रहे। इनसे उम्मीद की जा रही थी वह कांग्रेस की आपसी कलह को खत्म कर पाएंगे लेकिन चीजों में कोई खास बदलाव नहीं हुआ।
नए प्रभारी द्वारा हरियाणा कांग्रेस के नेताओं के साथ आयोजित की गई पहली ही बैठक में आपसी खींचतान और वर्चस्व की लड़ाई सबके सामने आ गई थी। बेशक दीपक बाबरिया ने मीटिंग में सबके सामने कड़ा रुख और रवैया दिखाया हो लेकिन चीजें सकारात्मक रूप से फलीभूत नहीं हो पाई। उनसे पहले हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी रहे शकील अहमद, पृथ्वीराज चव्हाण, कमलनाथ और गुलाम नबी आजाद के कार्यकाल भी विवादित रहे हैं। उनसे पहले पार्टी प्रभारी रहे विवेक बंसल के विरुद्ध जिस तरह की मोर्चेबंदी की गई थी, वो सर्वविदित है। हुड्डा खेमे के आगे वोट नहीं टिक पाए।
साल 2014 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में संपन्न हुए चुनावों के बाद कई पार्टी दिग्गजों को हरियाणा कांग्रेस में अध्यक्ष व इंचार्ज की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन हालात नहीं बदले। प्रभारी के सामने बैठकों में ही कई मर्तबा खुलकर जुबानी जंग चली और समर्थक भी आमने-सामने रहे।
इतना सब होने के बाद पार्टी हाईकमान हमेशा मूकदर्शक की भूमिका में ही नजर आई। वहीं ये भी बता दें कि 2014 के बाद प्रदेश अध्यक्षों के लिए भी चीजें आसान नहीं रही। उस वक्त अशोक तंवर को हुड्डा खेमे के चलते इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने 2019 में पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कुमारी सैलजा रही। उनको भी हुड्डा खेमे के विरोध के चलते 27 अप्रैल, 2022 में कार्यकाल पूरा किए बिना ही पद छोड़ना पड़ा। कुछ समय के लिए पद खाली रहा और फिर इस पर हुड्डा के खासमखास उदयभान पदासीन हुए।
हार के बाद कई दिग्गज हरियाणा के प्रभारी रहे हैं। लेकिन वो भी हरियाणा में पार्टी के नेताओं की कलह को खत्म नहीं कर पाए। हरियाणा में पिछले चार साल में 4 प्रभारी बदले जा चुके हैं। बावजूद इसके हरियाणा कांग्रेस के दिग्गजों की आपसी कलह समाप्त नहीं हुई। जनवरी 2019 में नेता गुलाम नबी आजाद को हरियाणा प्रभारी के तौर पर नियुक्त किया गया था, इसके महज डेढ़ साल बाद सितंबर 2020 में आजाद की जगह विवेक बंसल को हरियाणा में प्रभारी बनाकर भेजा गया। विवेक बंसल करीब 2 साल तक इस पद पर रहे।
बंसल के बाद दिसंबर 2022 में गुजरात कांग्रेस के दिग्गज शक्ति सिंह गोहिल को प्रभारी बनाया गया था। इसके बाद शक्ति सिंह गोहिल की जगह एक बार फिर से आलाकमान ने फेरबदल करते हुए दीपक बाबरिया को हरियाणा कांग्रेस का प्रभारी बनाया था। उपरोक्त से पहले साल 2015 में तत्कालीन कांग्रेस महासचिव शकील अहमद प्रभारी रहे। इनके बाद साल 2016 कमलनाथ को ये जिम्मेदारी दी गई ।
हरियाणा कांग्रेस में कलह का आलम ये है कि कई प्रभारियों की समय से पहले ही रवानगी हो गई। 2016 में हरियाणा राज्यसभा के लिए वोटिंग हुई थी, कांग्रेस के खुले समर्थन के ऐलान के बाद भी उम्मीदवार आरके आनंद राज्यसभा नहीं पहुंच पाए। उस वक्त माना गया कि कांग्रेस ने परोक्ष रूप से आनंद की राह में रोड़े अटकाए। उस वक्त शकील अहमद हरियाणा के प्रभारी थे। उसी वक्त शकील अहमद को प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त करने की तैयारी हो गई थी। हरियाणा के राज्यसभा वोटिंग कांड के 24 घंटे के भीतर कांग्रेस ने प्रभारी शकील अहमद की रवानगी कर दी।
शकील अहमद हरियाणा व पंजाब दोनों राज्यों के प्रभारी थे। उनके बाद कमलनाथ हरियाणा के कांग्रेस प्रभारी बने थे। पिछले प्रभारी विवेक बंसल हरियाणा कांग्रेस के आपसी कलह के बीच विवाद का हिस्सा रहे। राज्यसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार अजय माकन की हार ने ही एक तरह से उनकी हरियाणा से रवानगी की पटकथा लिख दी थी। चुनाव में क्रॉस वोटिंग के चलते अजय माकन को हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद माकन और भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनसे खासे नाराज थे। हुड्डा खेमे ने क्रॉस वोटिंग को लेकर किरण चौधरी पर आरोप लगाए थे और बंसल को भी लपेटे में लिया था।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान ने कहा कि आने वाले एक महीने में संगठनात्मक नियुक्ति हो जाएंगी। पहले जिला अध्यक्षों और प्रदेश कमेटी की नियुक्ति होंगी। इसके बाद ब्लॉक, यूथ, मंडल और सेक्टर स्तर पर नियुक्ति होंगी। पांच राज्यों के नतीजे आने के बाद इस प्रक्रिया पर काम शुरू हो जाएगा। प्रदेश कांग्रेस में कोई कलह नहीं है।
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