इशिका ठाकुर, India News (इंडिया न्यूज़), Karan Taal, करनाल : करनाल भारत के सबसे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण शहरों में से एक है। करनाल का नाम दानवीर कर्ण के नाम पर रखा गया है। ये शहर कई महान लड़ाइयों और युद्धों का केंद्र रहा है। इतना ही नहीं, करनाल की धरा कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत के युद्ध की भी गवाह है।
कुरुक्षेत्र महायुद्ध की 48 कोस परिधि में आने वाले स्थानों में करनाल का नाम विशेष रूप से अंकित है। करनाल जिला हड़प्पा सभ्यता, तीर्थों और महाभारत युग के प्राचीन मंदिरों से पहले के कई पुरातात्विक स्थलों का घर भी है। कर्ण नगरी करनाल के वो 4 मंदिर तथा कर्ण ताल आज भी आस्था का केंद्र है।
कहा जाता है दानवीर राजा कर्ण हर रोज सुबह कर्ण ताल में स्नान कर सबसे पहले झारखंडी शिव मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक कर अपने वजन के बराबर सोना दान करते थे। उसके बाद लक्कड़ मंडी स्थित काली माता मंदिर, फिर माता मनसा देवी मंदिर और इसके बाद मां सरस्वती के दर्शन करते थे जो अब अग्रवाल धर्मशाला में मौजूद है। झांरखंडी मंदिर में स्थापित शिवलिंग करनाल का सबसे प्राचीन शिविलिंग है जिसकी मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयं धरती से उत्पन्न हुआ है।
बता दें कि कर्ण ताल का नाम उस दानशील महाराजा कर्ण के नाम पर रखा गया है, जिसने पांडव जननी कुन्ती का पुत्र होते हुए भी कौरवों की ओर से महाभारत के युद्ध में भाग लिया था। इसी स्थान पर उसका शैन्य शिविर था। कर्ण ताल वह स्थान है जहां पर भगवान कृष्ण ने राजा कर्ण को उस अन्तिम दानशीलता का बयान उसके प्रतिद्वन्दी अर्जुन से किया था। जब राजा कर्ण महाभारत युद्ध के दौरान मृत्यु-शय्या पर पड़ा था तो भगवान कृष्ण और अर्जुन ब्राह्मणके वेश में उसके पास गए और उसे पूर्ववत् स्वर्ण-भिक्षा का दान करने के लिए कहा। राजा कर्ण के पास उस समय केबल एक स्वर्ण- दन्त था जिसको निकालकर उसने श्री कृष्ण को दान में देना चाहा। श्री कृष्ण ने इसे इसलिए अस्वीकार किया कि वह स्वर्ण-दन्त अप्रक्षालित था और एक ब्राह्मण न उसे धो सकता था और न ही उसे धोने के लिए जल ला सकता था। इस पर राजा कर्ण ने भूमि पर एक बाण फेंका और तत्काल स्वच्छ जल का एक झरणा फूटा जिससे उसने स्वर्ण- दन्त को धोकर अपनी दानवीरता का अन्तिम परिचय दिया था।
74 वर्ष के स्थानीय निवासी राजकुमार शर्मा ने बताया कि कर्णताल के पास बना झारखंडी महादेव मंदिर किसी के भी द्वारा स्थापित नहीं किया गया बल्कि यहां शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए थे। इनकी मान्यता है कि अगर कोई लगातार 40 दिन तक इनकी सेवा नियमित करता रहे तो उस व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है। अगर कोई व्यक्ति नियमित 40 दिन तक ऐसा नहीं कर सकता तो वह सोमवार के सोमवार शिव के दर्शन मात्र से ही हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यह मंदिर सदर बाजार स्थित कर्ण ताल के नजदीक है।
भगवान शिव का ये मन्दिर दानवीर राजा कर्ण के समय से भी यहां विद्धमान है। इस मन्दिर परिसर में पहले एक पीपल का वृक्ष हुआ करता था, जिसमें से दशहरे वाले दिन एक नागराज निकलते थे और वह नागराज बहुत लोगों ने देखे भी हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही मनोकामना पूर्ण हो जाती थी। राज कुमार शर्मा ने बताया कि उन्होंने 74 साल की उम्र में बहुत से लोगों की मन्नत पूरी होते हुए देखी है।
उन्होंने बताया कि इसके साथ ही माता मनसा देवी, मां काली और मां सरस्वती का मंदिर है जो अग्रवाल धर्मशाला में स्थापित है इन चारों मंदिरों में पूजा करने का विशेष महत्व है। अब यह कर्ण ताल एक तालाब के रूप में विकसित हो गया है। यहां पर पहले रानी घाट हुआ करता था, जिसमें रानियां स्नान किया करती थी। बुजुर्गों के अनुसार यह तालाब बहुत गहरा था, इसकी गहराई नापना ही बहुत मुश्किल था। उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है जैसे-जैसे समय बदलता गया, यह तालाब बंद होता चला गया।
वहीं कर्णताल के नजदीक ही दुकान चलाने वाले लगभग 70 वर्षीय अशोक कुमार ने बताया कि उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना है कि कर्णताल में स्नान करके इसके नजदीक बने शिव मंदिर, माता मनसा देवी, मां काली और मां सरस्वती के मंदिर में पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
शिव मंदिर की पुजारिन ममता देवी ने बताया कि उनकी लगातार अब ये 7वीं पीढ़ी चल रही है जो इस मंदिर में सेवा कर रही है और बुजुर्गों ने उन्हें बताया कि जहां राजा कर्ण के समय इस क्षेत्र में झाड़ियां हुआ करती थी जिन्हें काटते समय मंदिर में विद्यमान शिवलिंग का एक पत्थर दिखाई दिया, उस पत्थर पर कुल्हाड़ी लगी तो उसमें से एक खून की धारा के साथ बम-बम भोले की आवाज सुनाई दी, तब से यह शिव मंदिर झारखंडी मंदिर के नाम से यहां मौजूद है।
राजा कर्ण ताल में स्नान आदि कर मंदिर के बाहर बने कूप से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाया करते थे। जो भी व्यक्ति यहां आकर सच्चे मन से शिव भोले की आराधना करता है, उसकी हर मनोकामना शिवभोले पूरी करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में कोई भी इस समय पुरुष नहीं है, इसलिए परिवार की महिलाएं ही इस मंदिर की सेवा करती हैं।
राजा कर्ण के नाम पर पुकारा जाने वाला यह नगर और ताल 5000 वर्ष पर्यन्त आज भी भगवान कृष्ण के उस वरदान के साक्षी हैं। कर्णताल में पांच उस्त्रोत हैं जो कि पांच पांडव का अभिवेदन करते हैं। हालांकि तालाब और इसके पास बने मंदिरों का अलग-अलग राजाओं द्वारा जीर्णोद्धार तो जरूर करवाया गया होगा, लेकिन दुर्भाग्य से प्राचीन तालाब के भीतर महाभारत काल के सभी अवशेष या तो चोरी हो गए हैं या मौसम और समय के कहर का सामना नहीं कर पाए। हाल ही में नगर निगम करनाल द्वारा बनवाई गई दानवीर राजा कर्ण की विशाल प्रतिमा लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र है।
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