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हरियाणा से श्री गुरु तेग बहादुर जी का गहरा नाता

PUBLISHED BY: • LAST UPDATED : April 23, 2022

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हरियाणा से श्री गुरु तेग बहादुर जी का गहरा नाता

इंडिया न्यूज, चंडीगढ़।
हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर जी का हरियाणा से गहरा नाता रहा है। गुरु महाराज ने हरियाणा के अलग-अलग जिलों में समय-समय पर अपने चरण रखे और धर्म का प्रचार किया। संगत के आग्रह पर गुरु जी गांवों और शहरों में गए, आज यहां पर ऐतिहासिक गुरुद्वारे स्थापित हैं। Deep relation of Shri Guru Tegh Bahadur ji with Haryana

हरियाणा में ऐसे शुरू हुआ गुरु महाराज का सफर

अप्रैल 1665 में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब भाई दग्गों जी की विनती पर गांव धमतान साहिब जींद पहुंचे। गुरु साहिब ने इस इलाके के लोगों को तम्बाकू उगाने तथा उसका सेवन करने से मना किया। भाई दग्गों ने गुरु साहिब को मुख्य प्रचार केंद्र बनाने के लिए यहां जमीन दी। गुरु साहिब ने इस क्षेत्र में कुएं खुदवाए एवं बाग लगवाए। एक धर्मशाला भी स्थापित करवाई। श्री गुरु तेग बहादुर जी दूसरी बार अक्टूबर 1665 में धमतान साहिब पहुंचे। गुरु साहिब की पहली गिरफ्तारी 8 नवंबर 1665 को मुगल हाकिमों द्वारा यहीं पर की गई थी। जींद जिले के नरवाना से 18 किलोमीटर दूर धमतान साहिब में आज गुरुद्वारा स्थापित है।

यहां भी लगाया था डेरा

गुरु साहिब ने इसके बाद जींद जिले के खटकड़ गांव के बाहर अपना डेरा लगाया और संगतों को गुरमति का उपदेश दिया। यहां के एक परिवार की गुर सिक्ख बीबी ने गुरु साहिब की बहुत सेवा की। इस गांव में उस माता के तीन बेटों के नाम पर तीन मुहल्ले हैं। गुरु साहिब की याद में यहां खटकड़ में सुदर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। इसके बाद गुरु साहिब जींद की धरती पर पहुंचे। इस क्षेत्र में कई कुओं और तालाबों का निर्माण करवाया। मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए युवाओं को हथियारबंद होकर अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। जींद शहर में गुरु साहिब की याद में आलीशान गुरुद्वारा मंजी साहिब सुशोभित है।

यह भी पढ़ें : पानीपत में श्री गुरु तेगबहादुर जी के 400वें प्रकाश उत्सव को लेकर तैयारियां जोरों पर Preparations in full swing for the 400th Prakash Utsav of Shri Guru Tegh Bahadur ji in Panipat

रोहतक शहर में भी रखे थे गुरु साहिब ने चरण

धर्म प्रचार यात्रा करते हुए श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी रोहतक शहर में भी आए थे। यहां 3 दिनों तक एक तालाब के पास ठहरे थे और संगत को धर्म उपदेश दिया था। कलालां मोहल्ले में गुरु साहिब की स्मृति में एक स्थान है, जिसका नाम माई साहिब है। यहां एक माई ने गुरु साहिब को श्रद्धा के साथ भोजन कराया था। गुरु साहिब की स्मृति में गुरुद्वारा बंगला साहिब नौंवी पातशाही यहां सुशोभित है।

श्री गुरु तेग बहादुर जी की याद में कैथल में स्थापित गुरुद्वारा मंजी साहिब

कैथल शहर में श्री गुरु तेग बहादुर जी के सिख रोडा बाढ़ी का घर था। जब भाई रोडा जी ने कैथल में गुरु साहिब के आगमन के बारे में सुना तो उसने नीम साहिब वाले स्थान पर जाकर गुरु साहिब को अपने घर में आने का अनुरोध किया। गुरु साहिब भाई रोडा बाढ़ी की इच्छा के अनुसार उनके घर कुछ दिन ठहरे। गुरु साहिब जी सुबह और शाम दोनों समय दीवान लगाते थे। यहां गुरु जी की याद में गुरुद्वारा मंजी साहिब सुशोभित है। प्रचार करते हुए गुरु साहिब ने खानपुर, करनाल में भी अपने चरण डाले। यहां गुरु साहिब ने पीपल के पेड़ के नीचे घोड़े बांधे थे और कुछ समय यहां रूककर विश्राम किया था। यहां के इलाके की संगतों को जालिम बादशाह औरंगजेब की ओर से किए जा रहे अत्याचारों से टक्कर लेने के लिए तैयार रहने का उपदेश दिया। यहां एक पुराना किला और गुरु साहिब के समय का एक कुआं मौजूद है। खानपुर गांव में गुरुद्वारा श्री गुरु तेगबहादुर साहिब सुशोभित है।

कुरुक्षेत्र का गुरुद्वारा कराह साहिब

कुरुक्षेत्र के गुरुद्वारा कराह साहिब में भी श्री गुरु तेग बहादुर जी पहुंचे थे। वहीं बता दें कि कुरुक्षेत्र के गुरुद्वारा कराह साहिब में इससे पहले श्री गुरु नानक देव जी ने भी चरण डाले थे और श्री गुरु हरगोबिंद साहिब भी इस स्थान पर ठहरे थे। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने इस जगह एक पिंगले पर मेहर की। उन्होंने गांव में कुएं और बाग लगाने के लिए धन दिया। भाई उदय सिंह जी ने उस समय तीन सौ बिघे जमीन गुरु घर के नाम लिगवाई थी। इस स्थान पर गुरुद्वारा कराह साहिब सुशोभित है। गुरु साहिब ने 1665 में कुरुक्षेत्र के बारना गांव में भी पवित्र चरण रखे। यहां गुरु घर के सेवक भाई सुधा जी की पत्नी ने अपने हाथों से काते गए सूत का चोला गुरु साहिब को भेंट किया था। गुरु साहिब कैथल से चलकर बारना, कुरुक्षेत्र के मार्ग से धर्म प्रचार करते हुए कीरतपुर साहिब पहुंचे। बारना गांव में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के पवित्र आगमन की याद में सुंदर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। श्री गुरु तेग बहादुर पटना साहिब से वापसी के दौरान भी धर्म प्रचार के लिए कुरुक्षेत्र के अजराणा कलां में आए थे। गुरु महाराज 1656 में पटना साहिब जाते हुए कुछ दिन थानेसर में ठहरे थे और धर्म प्रचार किया था। गुरु साहिब 1665 में धमतान साहिब से कीरतपुर साहिब जाते हुए भी यहीं ठहरे थे। गुरु साहिब ने इस स्थान का कई बार दौरा किया। उन्होंने यहां पक्के तालाब बावलियां तथा कुएं बनवाए। यहां एक सुंदर गुरुद्वारा सुशोभित है।

कुरुक्षेत्र के मनियारपुर में संगत को गुरुबाणी के उपदेशों से करवाया था अवगत

गुरु महाराज गांव सुलेमपुर, डूडी प्रचार दौरे के दौरान गांव मुनियारपुर पहुंचे थे। यहां रहते हुए संगत को गुरुबाणी के उपदेशों से अवगत कराया तथा नाम जपन, किरत करन और वंड छकने का हुक्म दिया। इस स्थान पर गुरुद्वारा मंजी साहिब की सुंदर इमारत सुशोभित है। कुरुक्षेत्र में धर्म प्रचार के दौरान डूडी गांव के लोगों ने उन्हें चरण डालने का अनुरोध किया। इस स्थान पर भी गुरु साहिब ने विश्राम किया। आज यहां सुंदर गुरुद्वारा सुशोभित है। गुरु साहिब ने कुरुश्रेत्र में जहां पहले बणी गांव था, वहां आकर बदरपुर बसाया। लोहगढ़ आक्रमण के समय बहादुरशाह की मुगल सेना ने इस जगह को ध्वस्त कर दिया था। खुदाई के समय जमीन से एक मंजी साहिब (पक्का थड़ा) निकला जो गुरु तेग बहादुर जी के समय का है। अब इस स्थान पर गुरुद्वारा बणी बदरपुर साहिब स्थापित है।

यमुनानगर में भी रखे थे गुरु साहिब ने चरण

श्री गुरु तेग बहादुर साहिब 1656 में पटना साहिब जाते हुए यमुनानगर के हरनौल में पहुंचे थे। यहां गुरु साहिब के समय का पुराना कुआं एवं एक सरोवर मौजूद है। गुरु तेग बहादुर साहिब जी की याद में गुरुद्वारा साहिब बना हुआ है। 1656 में गुरु साहिब यमुनानगर के झीवरहेड़ी भी आए थे। गुरु साहिब लाडवा से यहां आए थे। आज यहां गुरुद्वारा थड़ा साहिब सुशोभित है। यमुनानगर के बुड़िया में भी श्री गुरु तेग बहादुर जी पहुंचे थे। गुरु तेग बहादुर के आगमन के उपलक्ष्य में मंजी साहिब गुरुद्वारा सुशोभित है।

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