India News Haryana (इंडिया न्यूज), Om Prakash Chautala : 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार और 143 सीट जीतने वाले जनता दल की सरकार बनने के साथ हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आया। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री और हरियाणा की राजनीति के दिग्गज नेता चौधरी देवीलाल ने प्रधानमंत्री पद का ऑफर ठुकरा दिया और उप प्रधानमंत्री बने। इस फैसले के साथ ही हरियाणा की सत्ता के लिए चौटाला परिवार में उत्तराधिकार की जंग शुरू हो गई।
देवीलाल के सामने चुनौती यह थी कि हरियाणा की कमान किसे सौंपी जाए। उनके छोटे बेटे रणजीत चौटाला राज्य की राजनीति में सक्रिय थे और मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रहे थे। 1 दिसंबर 1989 को रणजीत ने दिल्ली के एक होटल में अपने समर्थकों के साथ बैठक की और इसके बाद वे चंडीगढ़ पहुंचे और मुख्यमंत्री बनने की तैयारियों में जुट गए।
देवीलाल को यह कदम नागवार गुजरा। उन्होंने तुरंत बड़ा फैसला लेते हुए बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला के नाम का ऐलान कर दिया। 2 दिसंबर को दिल्ली के हरियाणा भवन में ओमप्रकाश ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली।
आपको जानकारी दे दें कि ओमप्रकाश चौटाला का राजनीतिक सफर शुरुआत से ही विवादों से भरा रहा। 1978 में वे दिल्ली एयरपोर्ट पर महंगी घड़ियों और पेन के साथ कस्टम विभाग द्वारा पकड़े गए थे। इस घटना से देवीलाल नाराज हो गए और उन्होंने सार्वजनिक रूप से बेटे को घर से बाहर निकालने की घोषणा कर दी। हालांकि बाद में जांच में चौटाला निर्दोष साबित हुए और पिता ने उन्हें माफ कर दिया।
1987 के विधानसभा चुनाव में लोकदल को बड़ी जीत मिली और रणजीत चौटाला रोड़ी सीट से विधायक बने। उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया, लेकिन यही से ओमप्रकाश और रणजीत के बीच मतभेद गहराने लगे। देवीलाल ने ओमप्रकाश को राज्यसभा भेजा, जबकि रणजीत को सरकार में अहम भूमिका दी।
रणजीत का दावा था कि 1982 के चुनाव में लोकदल के 6 उम्मीदवार ओमप्रकाश के हस्तक्षेप के कारण हार गए थे। इस घटना के बाद देवीलाल ने ओमप्रकाश को राजनीति से दूर रहने की सलाह दी थी।
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एक बार फिर बता दें कि 1989 में केंद्र में जनता दल सरकार बनने पर देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने थे। हरियाणा में नेतृत्व को लेकर उनकी चिंता हमेशा बनी रही। प्रोफेसर संपत सिंह के मुताबिक, देवीलाल ने देर रात फैसला लिया कि ओमप्रकाश ही मुख्यमंत्री बनेंगे। अगले दिन विधायकों की बैठक में यह घोषणा कर दी गई।
इस ऐतिहासिक फैसले ने हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार की भूमिका को निर्णायक बना दिया। हालांकि, उत्तराधिकार की यह जंग आज भी चौटाला परिवार के बीच राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करती है।