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Diwali Festival 2024 : आधुनिकता के रंग में रंगती जा रही दीवाली, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव मिट्टी के दीयों पर भी

  • मिट्टी के दीपक की घटती मांग से कुंभकारों के समक्ष आर्थिक संकट

India News Haryana (इंडिया न्यूज), Diwali Festival 2024 : दीवाली का त्यौहार नजदीक आते ही कुम्हार दीये आदि सामान बनाने में व्यस्त हो जाते हैं, लेकिन दीवाली पर्व पर बाजार में रेडीमेड दीयों, चाईनीज लाईटों व रंग-बिरंगी मोमबत्तियों की बढ़ती मांग ने कुंभकारों के समक्ष समस्या उत्पन्न कर दी है। जी हां, पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव से दीवाली पर्व भी अछूता नहीं रहा तथा कुंभकारों के लिए दीपावली पर्व पर भारी संख्या में बिकने वाले मिट्टी के दीपों की बिक्री पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा है जिसके चलते कुंभकारों के समक्ष आर्थिक संकट पैदा हो गया है। ध्यान रहे कि गांवों से लेकर हर कस्बे व शहर में दीपावली पर्व पर पहले मिट्टी के दीयों का प्रयोग किया जाता रहा है, इससे कुंभकार समुदाय को भी आजीविका के साथ-साथ उनकी सांस्कृतिक विरासत जीवित रहती आई है।

Diwali Festival 2024 : दीयों की जगह होने लगा चाइनीज मोमबत्ती व लाइटों का प्रयोग

बता दें कि वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण कुंभकार द्वारा बनाए जाने वाले मिट्टी के दीयों की मांग में भारी गिरावट आई है तथा लोग दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीयों की जगह चाईनीज लाइटों की लड़ियों का प्रयोग किया जाने लगा है। दीपावली पर्व के मध्यनजर कुंभकार हालांकि दीये बनाने में व्यस्त हैं लेकिन दीयों पर भी महंगाई की मार इस कदर हावी है कि आम आदमी दीयों के प्रयोग की बजाय मोम के रेडीमेड दीयों व रंग-बिरंगी मोमबत्तियों व लड़ियों का ही प्रयोग करने लगे हैं।

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मिट्टी के दीये बनाने वाले कुंभकारों ने बताया कि उनके पूर्वज सदियों से चिकनी मिट्टी का प्रयोग कर मिट्टी के बर्तन, करवे और दीये बनाते आ रहे हैं लेकिन पिछले करीब पांच वर्षों से दीपावली पर प्रयोग में लाए जाने वाले दीये का प्रचलन लगातार खत्म होता जा रहा है तथा रंग-बिरंगी मोमबत्तियों व लाइटों के बढ़ते प्रयोग से लोग दीयों का प्रयोग धीरे-धीरे कम करने लगे हैं। वहीं दीये के कम होते प्रचलन के बावजूद इनका प्रयोग कुछ हद तक गांवों में तो देखने को मिलता है, लेकिन कस्बों व शहरों से मिट्टी के परंपरागत दीयों के महत्व से लोग अनजान होते जा रहे हैं।

मिट्टी पर भी महंगाई की मार, पुश्तैनी धंधे से हुआ मोह भंग

कुभकांरों की मानें तो मिट्टी के दीये बनाने के लिए पहले मिट्टी आसानी से उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन अब उन्हें मिट्टी बाहर से महंगे दामों में मंगवानी पड़ती है, जिससे दीये के मूल्य में भी वृद्धि होना स्वाभाविक है। मिट्टी से बने बर्तनों, दियों आदि के कम होते प्रचलन से जहां कुंभकार समुदाय के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है वहीं उनकी पुश्तैनी परंपरा का अस्तित्व भी समाप्त होने की कगार पर है।

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इस कारण से कुम्हार समुदाय के लोग अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़कर अन्य व्यवसायों को अपना रहे हैं। हालांकि हरियाणा सरकार द्वारा कुंभकार समुदाय की परंपरा को जीवित रखने के लिए माटी कला बोर्ड का गठन किया गया था, लेकिन माटी कला बोर्ड भी कुंभकार समुदाय के पुश्तैनी धंधे के अस्तित्व को बचाए रखने में नाकाफी सिद्ध हो रहा है।

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Amit Sood

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