India News (इंडिया न्यूज), Haryana Politics, चंडीगढ़ : हरियाणा में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव की तैयारियों में तमाम राजनीतिक दल और दिग्गज जुटे हुए हैं। सत्ताधारी भाजपा व जजपा की कोशिश है कि वो फिर से सरकार बनाए तो लंबे समय से सत्ता से दूर कांग्रेस और इनेलो की कोशिश है कि दोनों सत्ता से अपना वनवास खत्म कर सत्ता में वापसी करें।
वहीं राजनीतिक परिवारों के दिग्गजों की कोशिश है कि वो अपनी अगली पीढ़ी को प्रदेश की राजनीति में बड़ा हस्ताक्षर बनाएं और स्थापित करें। इसी कड़ी में सभी पार्टियों में कई दिग्गज सियासी गलियारों में काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। प्रदेश के सभी सियासी घराने अपनी अगली पीढ़ी को प्रदेश व हो सके तो राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। इसमें भाजपा, कांग्रेस, इनेलो और जजपा समेत सभी पार्टियों के नेता कोशिश में जुटे हैं।
प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति में भूपेंद्र सिंह हुड्डा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। पार्टी हाईकमान को भी उनके कद का अहसास है और उनकी बात को तवज्जो दी जाती है। हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा राज्यसभा सांसद हैं। वो भी लगातार पिता के साथ सत्ता के गलियारों में कदमताल कर रहे हैं। हुड्डा चाहते हैं कि वो बेटे दीपेंद्र का राजनीतिक भविष्य व स्थिति मजबूत कर दें।
दूसरी पार्टियों के नेता भी लगातार कह रहे हैं कि वो बेटे को स्थापित करने के लिए हर जुगत में लगे हैं। वो इस बात को लेकर भी हमलावर हैँ कि हरियाणा में कांग्रेस पिता-बेटे की पार्टी हो गई है और हुड्डा लगातार कार्यक्रमों में बेटे दीपेंद्र को आगे कर रहे हैं। इसके अलावा उनके समर्थक विधायक भी दीपेंद्र का नेतृत्व स्वीकारने का संकेत दे रहे हैं। विरोधियों का कहना है कि हुड्डा बेटे को भविष्य का सीएम चेहरा बनाने के लिए भी लगातार प्रयासरत हैं।
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बीरेंद्र सिंह के सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह को एडजस्ट करने की कोशिश
किसानों के मसीहा सर छोटूराम के नाती और नेकी राम के बेटे चौधरी बीरेंद्र सिंह का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं और तमाम राजनीतिक दल उनके राजनीतिक वजूद व काबिलियत का लोहा मानते हैं। बीरेंद्र सिंह स्वयं तो कभी सीएम नहीं बन पाए, लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर उनकी कोशिश है कि भाजपा से सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह को प्रदेश की राजनीति में बड़ा चेहरा बनाएं। फिलहाल भाजपा में पिता-बेटे की ज्यादा सुनवाई नहीं है और ये छटपटाहट किसी ने किसी रूप में बाहर आ ही जाती है।
2 अक्टूबर को जींद रैली में भी इसकी बानगी देखने को मिली। रैली में उन्होंने बेशक कहा कि वो बेटे के लिए ये सब नहीं कर रहे लेकिन उनकी हरसंभव कोशिश है कि बेटे का राजनीतिक करियर व भविष्य ब्राइट हो। 78 साल के हो चुके बीरेंद्र सिंह ने जिस तरह से रैली में अपनी ही पार्टी को जमकर घेरा उससे साफ हो गया कि वो बेटे के राजनीतिक करियर को सुरक्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। वो लगातार भाजपा पर सत्ता में सहयोगी जजपा से दूरी बनाने और गठबंधन को तोड़ने का दबाव बना रहे हैं। बीरेंद्र चाहते हैं कि भाजपा उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी चौटाला परिवार व जजपा से दूर रहे और हिसार व आसपास के इलाकों में उनके बेटे बृजेंद्र सिंह को राजनीतिक रूप से मजबूत करने में मदद करे।
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उधर, लंबे समय तक कांग्रेस में रहने के बाद भाजपा ज्वाइन करने वाले और अहीर बेल्ट में काफी प्रभाव रखने वाले राव इंद्रजीत की गिनती कद्दावर नेताओं में होती है। कांग्रेस में खुद को असहज महसूस करते रहने के बाद वो भाजपा चले गए और फिलहाल केंद्रीय राज्य मंत्री हैं, लेकिन उनकी एक टीस अब भी बरकरार है। वो बेटी आरती राव, को उनकी राजनीतिक विरासत की हकदार है, वो उनको प्रदेश की राजनीति में स्थापित करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक धरातल पर ये प्रयास फलीभूत नहीं हो पाए।
पिछली बार खुद के अलावा बेटी आरती राव के लिए भी टिकट के चाहवान थे, लेकिन भाजपा की एक परिवार एक टिकट की नीति के चलते ऐसा नहीं हो पाया। इसके चलते पार्टी के प्रति उनकी नाराजगी किसी ने किसी जरिए सामने भी आई। राव इंद्रजीत लगातार कोशिश कर रहे हैं कि वो बेटी आरती राव को प्रदेश की सियासत में बड़ा चेहरा बना सकें। इसको लेकर वो हरसंभव पहलू पर काम भी कर रहे हैं। ये चर्चा में भी लगातार है कि चुनाव से पहले राव इंद्रजीत कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।
इस बात से हर कोई इत्तेफाक रखता है कि कुलदीप बिश्नोई कहीं न कहीं बेटे के उज्ज्वल राजनीतिक भविष्य के आश्वासन के साथ भाजपा में आए थे। आदमपुर उपचुनाव जीतकर बेटे भव्य विधायक तो बन गए। वो हरसंभव प्रयास कर रहे हैं कि बेटे भव्य राजनीति में बुलंदी छुएं।
भाजपा में बेटे को उंचे ओहदे तक ले जाने के लिए हरसंभव प्रयास में हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बेटे के सुरक्षित राजनीतिक भविष्य के लिए भाजपा के साथ “एक हाथ ले एक हाथ दे” की पॉलिसी अख्तियार किए हुए हैं। वहीं कांग्रेस की दिग्गज नेता किरण चौधरी भी बेटी श्रुति के राजनीतिक भविष्य के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं। वो खुद पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। आने वाले लोकसभा चुनाव भी वो भिवानी सीट से दावेदार हैं और फिलहाल कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं।
इसके अलावा प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति में चौटाला परिवार भी किसी परिचय का मोहताज नहीं है। परिवार में बिखराव के बाद अजय चौटाला और अभय चौटाला दोनों सक्रिय हैं। जजपा से दुष्यंत डिप्टी सीएम हैं और लगातार खुद को मजबूत कर रहे हैं। इन दिनों वो हरियाणा के अलावा पड़ोसी राज्य राजस्थान की राजनीति में भी हाथ पैर चला रहे हैं। वहीं उनके छोटे भाई दिग्विजय अभी भी कुछ खास नहीं कर पाए। अभय चौटाला लगातार कोशिश कर रहे हैं कि इनेलो के पुराने दिन बहुर जाएं और उनके दोनों बेटे करण-अर्जुन भी राजनीति में स्थापित हों।
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