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अंबाला में अंतिम संस्कार की ‘संस्कारी’ कथा

अंबाला/अमन कपूर

अंबाला के गोविंदपुरी में श्मशान घाट पर दाह संस्कार के लिए एलपीजी से चलने वाली बिजली और एलपीजी इलेक्ट्रॉनिक मशीन लगवाई… जिसका मकसद था कि कोरोना काल के दौरान दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों को परेशानी ना हो, साथ ही बढ़ते प्रदूषण को कम किया जा सके… सरकार और प्रशासन का मकसद नेक हो सकता है, लेकिन लोगों की जागरूकता भी जरूरी है… हैरानी की बात ये है कि 4 महीने में इस इलेक्ट्रॉनिक मशीन को आज तक इस्तेमाल ही नहीं किया गया है… जिसके चलते इलेक्ट्रॉनिक मशीन में एक भी दाह संस्कार नहीं हो पाया

धार्मिक मान्यता-पुरानी परंपरा के आगे मुर्दा हुई नई व्यवस्था

श्मशान घाट का संचालन करने वाली खत्री सभा इलेक्ट्रॉनिक मशीन के इस्तेमाल को लेकर लोगों को जागरूक भी कर रही है… लेकिन लोग धार्मिक आस्था और पुरानी परंपरा के चलते एलपीजी मशीन में दाह संस्कार कराने को तैयार नहीं होते… बदलते युग मे भी लोगों की आस्था और पुरानी पंरपरा नई व्यवस्था को लेकर बदलाव में आड़े आ रही है… ये ही वजह है कि 4 महीने बाद भी दाह संस्कार के लिए लगी इलेक्ट्रॉनिक मशीन बंद पड़े कमरे में धूल फांक रही है… हरियाणा सरकार ने बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए ये प्रोजेक्ट लगाया था, लेकिन आस्था के आगे ये फेल होता नजर आ रहा है।

कम खर्चा, कम प्रदूषण.. जागरूकता में भी कमी

गोविंदपुरी शमशान घाट का संचालन करने वाली खत्री सभा के सदस्यों के मुताबिक लोग अपने धर्म और आस्था की वजह से दाह संस्कार के लिए तैयार नहीं होते… खत्री सभा दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों को प्रेरित करती है, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक मशीन में संस्कार करने में खर्चा कम आता है और दूसरा प्रदूषण नहीं होता… बढ़ता प्रदूषण देश और दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है…भारत के बड़े शहरों में दाह संस्कार इलेक्ट्रॉनिक मशीन से होने लगा है, लेकिन छोटे शहरों में अभी भी लोगों मे जागरूकता की कमी है।

 

Yogesh Sharma

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Yogesh Sharma

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