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अस्त हुआ बीजेपी की सियासत का अरुण, नहीं रहे पूर्व वित्त मंत्री

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली का निधन हो गया है. उन्होंने दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त, रक्षा और सूचना प्रसारण जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने वाले अरुण जेटली को संसद में सरकार का संकटमोचक माना जाता था. यानी जब भी सरकार को कोई समस्या आई तो जेटली ने अपने अनुभव से उसे दूर करने का काम किया. जेटली पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी मंत्री रहे. इसके बाद विपक्ष की भूमिका में भी जेटली बेहद मुखर प्रवक्ता रहे और यूपीए सरकार को निशाने पर लेते रहे. उन्हें एनडीए का सफल रणनीतिकार भी माना जाता था.

अरुण जेटली के संसदीय सफर की बात करें तो वे 47 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने. 19 अक्टूबर 1999 को अरुण जेटली वाजपेयी सरकार में मंत्री बने. सबसे पहले सूचना-प्रसारण (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री बने. इसके बाद उन्हें विनिवेश मंत्रालय, कानून मंत्रालय, उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय का भी जिम्मा मिला. साल 2000 में जेटली पहली बार कैबिनेट मंत्री बने.

2000-12 तक तीन बार गुजरात से राज्यसभा में आए, साल 2010 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला. 2014 में उन्होंने बीजेपी के टिकट पर अमृतसर से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें असफलता हाथ लगी. इसके बाद 2018 में बीजेपी ने चौथी बार यूपी से राज्यसभा भेजा. 2009 में राज्यसभा में नेता विपक्ष की भूमिका निभाई. साल 2014 बीजेपी की बंपर जीत के बाद उन्हें राज्यसभा में लीडर ऑफ द हाउस की जिम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. सदन में उनके विरोधी भी उनके भाषण की तरीफ करते थे. आपको जानकर हैरानी होगी इतने लंबे राजनीतिक जीवन में अरुण जेटली कभी लोकसभा के सदस्य नहीं बने.

अरुण जेटली ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र जीवन से की थी, साल 1974 जेटली दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ अध्यक्ष बने. 1977 जनता पार्टी के लिए चुनाव प्रचार किया और इसके बाद 1980 बीजेपी की स्थापना के समय ही पार्टी सदस्य बन गए. अपनी कार्य कुशलता और रणनीति के चलते जेटली को साल 1991 में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बने. साल 1999 होने वाले आम चुनाव से पहले जेटली को पार्टी प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. साल 2002 में जेटली को बीजेपी संगठन में महासचिव का पद देकर बड़ी जिम्मेदारी दी गई. इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भी उनकी रणनीति काम आई. रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को साथ रखने में उन्होंने अहम रोल निभाया. जेटली के निधन के बाद अब पूरे राजनीतिक जगत में शोक की लहर है. हर कोई आज उन्हें याद कर रहा है.

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