डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज), Former Union minister Birender Singh : पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने अपनी पत्नी प्रेमलता समेत 9 फरवरी को मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का दामन थामते हुए दिल्ली में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान ने उनको पटका पहनाकर पार्टी में ज्वाइनिंग करवाई। करीब 10 साल कांग्रेस ज्वाइनिंग को उन्होंने घर वापसी ही नहीं, बल्कि विचार वापसी भी बताया। उनसे पहले उनके बेटे व पूर्व भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह पहले ही भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम चुके थे।
बीरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी ने दो दिन पहले ही भाजपा को अलविदा कहते हुए जल्द ही कांग्रेस ज्वाइन करने की बात कही थी। चूंकि अब बीरेंद्र सिंह का पूरा परिवार विधिवत रूप से भाजपा छोड़ने के बाद कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं तो अब ये चर्चा है उनके कांग्रेस ज्वाइन के बाद पार्टी को क्या सियासी फायदा होगा या फिर महज बीरेंद्र सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं ही पूरी हो पाएंगी।
वहीं दूसरी तरफ ये भी माना जा रहा है कि बीरेंद्र सिंह के आने के बाद कांग्रेस को जींद, हिसार और फतेहाबाद सहित आस-पास के जिलों में चौधरी बीरेंद्र सिंह के परिवार की अच्छी पकड़ का फायदा मिलेगा। सियासत के जानकारों का मानना है कि बीरेंद्र सिंह की कांग्रेस ज्वाइन एक तरह से एक हाथ ले एक हाथ दे रणनीति का हिस्सा है।
बीरेंद्र के कांग्रेस ज्वाइन करते ही परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने आकार लेना शुरू कर दिया है और ज्वाइनिंग के पहले दिन ही ये बात सबके सामने आ गई। ज्वाइनिंग के बाद मीडिया के सवालों के जवाब देते हुए बीरेंद्र सिंह की पत्नी व उचाना से पूर्व विधायक प्रेमलता ने कहा कि वो चाहती हैं कि उनका बेटा बृजेंद्र हिसार लोकसभा सीट से चुनाव लड़े। इसके अलावा वो खुद उचाना से चुनाव लड़ेंगी।
वहीं इस बात से भी हर कोई इत्तेफाक रखता है कि बीरेंद्र सिंह के परिवार को पहले ही पता चल गया था कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उनकी टिकट काट दी है और भाजपा में रहते राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी हो पाना मुश्किल था। चूंकि अब वो कांग्रेस में आ चुके हैं तो महत्वाकांक्षाओं का हिलोर लेना भी वाजिब है।
बीरेंद्र सिंह के आने तक हरियाणा कांग्रेस में मुख्य रूप से दो ही धड़े रहे हैं, जिन पर हुड्डा गुट और एसआरके यानी कि कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी शामिल हैं। बेशक बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस में आकर भाजपा की तुलना में कुछ राहत महसूस की हो, लेकिन अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए दो ही धड़ों से संतुलन बनाकर चलना होगा।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि किसी भी धड़े को नाराजगी की स्थिति में उनके लिए चीजें खराब हो सकती हैं। वहीं ये भी बता दें कि कुमारी सैलजा ने बीरेंद्र सिंह की कांग्रेस में वापसी को पार्टी के लिए बेहतर बताया है। लेकिन काफी कुछ इस पहलू पर भी टिका है कि कयासों से परे धरातल पर हुड्डा के साथ उनके कैसे समीकरण रहते हैं।
ज्वाइनिंग के बाद बीरेंद्र सिंह ने कहा कि जो मुझे कांग्रेस ने दिया कोई और नहीं दे सकता। साथ ही कहा कि किसान भाई मुझसे मिलने आए थे और कहा था कि मसले पर कम से कम भूपेंद्र हुड्डा वाली बात तो करो। फिर मैंने पार्टी से कहा कि एमएसपी नहीं दे सकते तो कम से कम एक बैंचमार्क तो बना दो। साथ ही कहा कि भाजपा ने किसान और गरीब के लिए कुछ नहीं किया और ग्लिसरीन लगा महज दिखावे वाले आंसू ही रोये।
उन्होंने हुड्डा की भी तारीफ की, बेशक बीरेंद्र सिंह मामा-बुआ के लड़के होने के चलते रिश्तेदारी में भाई हैं, लेकिन हुड्डा की तारीफ के सियासी मायने हैं, क्योंकि हुड्डा के समर्थन के बिना बीरेंद्र सिंह के लिए कांग्रेस में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी कर पाना आसान नहीं हैं। ये भी बता दें कि कांग्रेस छोड़ने के पीछे की वजह उनके पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ मतभेद रहे, लेकिन अब हुड्डा और बीरेंद्र सिंह की फिर से एक-दूसरे के करीब आने की भी चर्चाएं हैं।
वहीं बीरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रेमलता के कांग्रेस जॉइनिंग के बाद सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं और इसको लेकर हरियाणा भाजपा में भी हलचल शुरू हो गई है। निरंतर चर्चा है कि भाजपा के भी कई विधायक बीरेंद्र सिंह के संपर्क में हैं, जिनके कांग्रेस ज्वाइन करने की संभावना लगातार चर्चा में है।
यह भी सामने आ रहा है कि भाजपा के कई विधायक अंदरुनी तौर पर नाराज हैं, लेकिन फिलहाल पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। अब ये देखना रोचक होगा कि अगर बीरेंद्र सिंह के साथ भाजपा या जजपा का कोई विधायक या फिर अन्य नेता कांग्रेस ज्वाइन करते हैं तो हुड्डा का इस पर क्या रिएक्शन होगा। ये भी चर्चा है कि हुड्डा लगातार जजपा नेताओं के कांग्रेस में आने के खिलाफ हैं और वो कतई नहीं चाहते कि जजपा नेता कांग्रेस ज्वाइन करें।
बता दें कि बीरेंद्र सिंह किसान नेता सर छोटूराम के नाती हैं और मूल रूप से जाटलैंड के नाम से पहचान रखने वाले जींद जिले से हैं। बांगर बेल्ट में राजनीतिक रूप से उनका प्रभाव माना जाता है, जिसको कांग्रेस पार्टी कैश करने की कोशिश करेगी। चूंकि बीरेंद्र व परिवार हिसार में भी जीत दर्ज कर अपना लोहा मनवा चुका है तो यहां भी इनका प्रभाव माना जाता है। हिसार से खुद बीरेंद्र सिंह व साल 2019 में भाजपा की टिकट पर बेटे बृजेंद्र सिंह सांसद रह चुके हैं।
ये भी बता दें कि बीरेंद्र सिंह जींद की उचाना सीट से 5 बार विधायक रह चुके हैं तो 2 दफा वो राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। इसके अलावा वो एक बार लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं। दो बार राज्यसभा और एक बार लोकसभा सांसद रह चुके बीरेंद्र सिंह 43 वर्ष तक कांग्रेस में रहने के बाद 2014 को लोकसभा चुनाव के बाद BJP में शामिल हो गए थे।
चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अपना पहला चुनाव उचाना से 1977 में लड़ा और वह बड़े मार्जिन से जीत हासिल करते हुए विधायक बने। इसके बाद 1982 में फिर से वह उचाना से ही विधायक चुने गए। फिर हिसार लोकसभा सीट से ओपी चौटाला को हराने के बाद बीरेंद्र सिंह 1991 में फिर से उचाना से विधायक बने और लगातार 2009 तक इस सीट पर विधायक रहे।
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