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Mahendragarh News : स्वतंत्रता सेनानी की वीरांगना बर्फी देवी का पेंशन के लिए संघर्ष, न्यायालय का फैसला आने से पहले हुई मृत्यु 

• LAST UPDATED : December 2, 2024

India News Haryana (इंडिया न्यूज), Mahendragarh News : महेंद्रगढ़ जिले की बर्फी देवी ने स्वतंत्रता सेनानी की वीरांगना के रूप में पेंशन पाने के लिए अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष किया, लेकिन उनके जीवनकाल में न्याय नहीं मिला। यह मामला प्रशासनिक लापरवाही, देरी और असंवेदनशीलता का जीता-जागता उदाहरण बनकर सामने आया है।  बर्फी देवी, जो स्वतंत्रता सेनानी सुल्तान राम की पत्नी थीं, 2012 से पेंशन के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं। उनके पति को 1972 से 2011 तक स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा प्राप्त था, लेकिन प्रमाण पत्र अपडेट न होने के कारण उनकी पेंशन बंद कर दी गई।

Mahendragarh News : मामूली विसंगतियों के आधार पर गृह मंत्रालय ने उनका दावा रोक दिया

पति की मृत्यु के बाद, बर्फी देवी ने वीरांगना पेंशन के लिए आवेदन किया। हालांकि, नाम और दस्तावेजों में मामूली विसंगतियों के आधार पर गृह मंत्रालय ने उनका दावा रोक दिया। सरकारी प्रक्रियाओं में उलझा न्याय गृह मंत्रालय ने यह स्पष्ट करने की मांग की थी कि “बार्फी देवी” और “बर्फी देवी” एक ही व्यक्ति हैं या नहीं।

इसके अलावा, दस्तावेजों में मृतक के पति का नाम “सुल्तान सिंह” और “सुल्तान राम” के रूप में अलग-अलग दिखने की वजह से भी मामले में देरी हुई। हालांकि, महेंद्रगढ़ के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय ने उनके दावों की पुष्टि कर केंद्र सरकार को पेंशन बहाल करने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद, केंद्र सरकार ने मामले में उचित कार्रवाई नहीं की।  हाईकोर्ट को इस देरी के लिए सरकार पर दो बार जुर्माना लगाना पड़ा। अप्रैल 2023 में 15,000 रुपये और जुलाई 2023 में 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। अंततः, बर्फी देवी को न्याय पाने की उम्मीद में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

मौत के साथ खत्म हुआ इंतजार

सितंबर 2023 में हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू की, और 13 दिसंबर को फैसला सुनाने की तारीख तय की गई। लेकिन बर्फी देवी का संघर्ष उनकी मृत्यु के साथ खत्म हो गया। वह न्याय का इंतजार करते-करते इस दुनिया से चली गईं। उनकी बेटियों, सुमित्रा देवी और ज्ञान देवी ने अपनी मां के दर्द को याद करते हुए कहा, “मां को अपने पति की पेंशन न मिलने का गहरा दुख था। यह उनके सम्मान और उनके पति के बलिदान का सवाल था।

केंद्र सरकार ने सिर्फ मामूली तकनीकी कारणों से न्याय में देरी की। प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल परिवार के वकील रविंदर ढुल ने कहा कि केंद्र सरकार के पास सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध थे। राज्य सरकार ने भी उनके दावे का समर्थन किया था। बावजूद इसके, नाम की वर्तनी या दस्तावेज़ों में मामूली विसंगतियों को आधार बनाकर केंद्र ने मामले को टाला।

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