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Shri Shri Ravi Shankar : इस नवरात्रि पर पूरा करें अपना संकल्प 

• LAST UPDATED : October 2, 2024

India News Haryana (इंडिया न्यूज), Shri Shri Ravi Shankar : हरियाणा स्टेट मीडिया कोऑर्डिनेटर कुसुम धीमान ने नवरात्रि के पावन पर्व के अवसर पर गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के विचार साझा करते हुए बताया कि हमारा मन संकल्प और विकल्प से भरा हुआ रहता है। शक्ति आपके संकल्प में निहित है और हर काम संकल्प से ही होता है। हाथ के उठने से पहले मन में संकल्प उठता है। कमजोर मन का संकल्प निष्प्रभावी होता है। जबकि साधना और ज्ञान से अपने मन को दृढ़ बनाने से हमारा संकल्प भी दृढ़ होता है।

Shri Shri Ravi Shankar : बिना किसी आसक्ति के अपना काम करते रहें

नवरात्रि के पहले तीन दिन तमो गुण, अगले तीन दिन रजो गुण और अंतिम तीन दिन सत्त्व गुण के लिए माने गए हैं। हमारी चेतना तमो और रजो गुण से होकर अंतिम तीन दिनों में सत्त्व गुण में खिलती है। फिर दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में मनाकर इस ज्ञान के सार का सम्मान किया जाता है। संकल्प का एक अर्थ यह भी है कि अपनी चेतना को ब्रह्मांड में, अनंत में ले जाना और मन को वर्तमान क्षण में लाना। संकल्प में आप एक इच्छा करें और फिर उसे छोड़ दें और उस दिशा में बिना किसी आसक्ति के अपना काम करते रहें। ऐसा करते ही संकल्प साकार होता दिखने लगेगा।

दीर्घकाल में जो आपके लिए सबसे अच्छा है, वहीं आपके साथ होगा

मान लीजिए कि आप बेंगलुरु से मुंबई जाना चाहते हैं। आप एक टिकट खरीदते हैं और लगभग दो घंटे की यात्रा करके मुंबई पहुँचते हैं लेकिन आप दो घंटे की समयावधि में यह नहीं जपते रहते कि, “मुझे मुंबई जाना है या मैं मुंबई जा रहा हूँ।” यदि ऐसे करते रहे तो आप पागलखाने में भी जा सकते हैं! कभी-कभी इच्छा ज्वर का रूप लेकर, आपके लक्ष्य को अवरुद्ध कर देती है। ज्वर रहित इच्छा के साथ आपको यह विश्वास भी रखना होगा कि जो कुछ भी मेरे लिए अच्छा है, वह मुझे प्राप्त होकर रहेगा। भले ही कुछ समय के लिए ऐसा लगे कि यह आपके लिए सबसे अच्छा नहीं है लेकिन दीर्घकाल में जो आपके लिए सबसे अच्छा है, वहीं आपके साथ होगा।

जिन्हें हर चीज में दोष दिखाई देते हैं। वे न तो ध्यान कर सकते हैं, न ही शांत हो सकते

यहाँ पालन करने वाली मुख्य बातें हैं – साधना (आध्यात्मिक अभ्यास और आत्म-प्रयास), जागरूकता और ज्वर का त्याग है। आमतौर पर जब लोग अपनी आँखें बंद करते हैं और अपने भीतर जाते हैं, तो उन्हें ऐसे विचार आते हैं, ‘यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है’। उन्हें हर चीज में दोष दिखाई देते हैं। वे न तो ध्यान कर सकते हैं, न ही शांत हो सकते हैं। क्रियाकलापों में लगे लोग ठीक इसके विपरीत करते हैं — काम करते समय “सब ठीक है”, ऐसा सोचते हैं। इन दोनों  दृष्टिकोणों पर हमें ध्यान देना चाहिए।

जब आपको अपने भीतर जाना है तब निवृत्ति का दृष्टिकोण होना चाहिए – जो जैसा है ठीक है। जब आपको बाहर आकर काम करना है तब प्रवृत्ति में रहना होना चाहिए – कौन कौन सी चीजें हैं जिन्हें हमें ठीक करना है। ऐसा करने से आप छोटी-छोटी बातों में भी पूर्णता देखते हैं। जहाँ भी आपको अपूर्णता दिखती है वहाँ देखें कि आप कैसे उसे ठीक कर सकते हैं। यह दोनों दृष्टिकोण आपको ध्यान में गहरे जाने में मदद  करेंगे। ध्यान का मूल सिद्धांत है – मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ और मैं कुछ नहीं हूँ।

आपको जो भी चाहिए, वह आपके पास स्वाभाविक रूप से आएगा

नवरात्रि के नौ दिन दिव्यता से आंतरिक संबंध के दिन हैं। इन नौ दिनों में, हम अपनी सभी छोटी-छोटी तुच्छ बातें, छोटी-छोटी इच्छाएं, आवश्यकताएं, छोटी-छोटी समस्याएं जो हमें परेशान करती हैं – सबको एक तरफ रख दें और उस देवी माँ से, उस परम दिव्यता से कहें, “मैं आपका हूँ, मेरे लिए आपकी जो इच्छा हो, वह पूरी हो।” इस दृढ़ विश्वास के साथ, जब आप आगे बढ़ेंगे, अपनी साधना करेंगे, तो आपको किसी भी चीज़ की कमी नहीं होगी। आपको जो भी चाहिए, वह आपके पास स्वाभाविक रूप से आएगा।

इस विश्वास के साथ आगे बढ़े कि हमारा ध्यान रखा जा रहा है और आगे भी रखा जाएगा। नवरात्रि एक ऐसा समय है जब शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सभी तरह की आवश्यकताएं ईश्वर द्वारा पूरी की जाती हैं। साथ ही, उनकी मदद करें जिन्हें आपकी मदद की आवश्यकता है। यह नौ रातें बहुत शुभ होती हैं और आत्मा को ऊपर उठाने वाली होती हैं। इन दिनों  ईश्वरीय ज्ञान में रहते हुए, अपने आप के साथ रहें।

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