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Haryan Congress Groupism : कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी हमेशा प्रदेश प्रभारियों के लिए बनी रही सिरदर्द

  • नए प्रभारी के लिए भी चुनौती, गुटबाजी के कारण हरियाणा कांग्रेस संगठन में अभी देरी

  • हरियाणा में पिछले 6 साल में आधा दर्जन प्रभारी आए और चले गए

  • दिग्गजों की गुटबाजी को अभी तक कोई पार्टी प्रभारी खत्म नहीं कर पाया

डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Haryan Congress Groupism, चंडीगढ़ : हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। एक तरह से कांग्रेस में गुटबाजी रहना परंपरा सी बन गई है। साल 2014 के बाद विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस लगातार मंथन और चिंतन की मुद्रा में है। 2014 के बाद पार्टी में बतौर प्रभारी कई कांग्रेस दिग्गज आए और चले गए, लेकिन पार्टी की कलह दूर नहीं हुई। अब इसी कड़ी में 9 जून को हरियाणा कांग्रेस को नए प्रभारी के रूप में दीपक बाबरिया मिले और उम्मीद की जा रही थी वह कांग्रेस की आपसी कलह खत्म कर पाएंगे, लेकिन हालात नहीं बदले।

गुटबाजी के कारण एक बार फिर संगठन लिस्ट लटक गई है। दो दिन के चंडीगढ़ प्रवास के दौरान मिले फीडबैक के बाद अब नए प्रभारी बाबरिया दिल्ली में भी फीडबैक लेंगे। इसके लिए उन्होंने कुछ नेताओं से वन टू वन मुलाकात के बाद दिल्ली बुलाया है।

वहीं नए प्रभारी द्वारा हरियाणा कांग्रेस के नेताओं के लिए पहली बैठक में आपसी खींचतान और वर्चस्व की लड़ाई सबके सामने भी आ गई। बेशक दीपक बाबरिया ने मीटिंग में सबके सामने कड़ा रुख और रवैया दिखाया हो, लेकिन उनकी राह आसान नहीं रहने वाली। उनसे पहले हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी रहे शकील अहमद, कमलनाथ और गुलाम नबी आजाद के कार्यकाल भी विवादित रहे हैं। उनसे पहले बंसल के विरुद्ध जिस तरह की मोर्चेबंदी की गई थी, उसके चलते वो कांग्रेस प्रभारी पद पर अधिक दिन नही टिक पाए।

दिग्गज नेता रहे हैं हरियाणा के प्रभारी, कलह नहीं खत्म पाए

वर्ष 2014 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हार के बाद कई दिग्गज हरियाणा के प्रभारी रहे, लेकिन वो भी हरियाणा में पार्टी के नेताओं की कलह को खत्म नहीं कर पाए। प्रभारी के सामने बैठकों में ही कई मर्तबा खुलकर जुबानी जंग चली और समर्थक भी आमने-सामने रहे। इतना सब होने के बाद पार्टी हाईकमान हमेशा मूकदर्शक की भूमिका में ही नजर आई।

वहींं यह भी बता दें कि 2014 के बाद प्रदेश अध्यक्षों के लिए भी चीजें आसान नहीं रही। उस वक्त अशोक तंवर को हुड्डा खेमे के चलते 2019 में पद से इस्तीफा दे दिया थाा। इसके बाद कुमारी सैलजा रही। सैलजा ने भी हुड्डा खेमे के विरोध के चलते 27 अप्रैल, 2022 में कार्यकाल पूरा किए बिना ही पद छोड़ दिया। प्रदेश में कुछ समय के लिए पद खाली रहा और फिर इस पर हुड्डा के खासमखास उदयभान पदासीन हुए।

कांग्रेस की फूट के चलते पिछले 4 साल में चार प्रभारी बदले

हरियाणा में पिछले 4 साल में कांग्रेस ने चार प्रभारी बदले हैं। बावजूद इसके हरियाणा कांग्रेस के दिग्गजों की कलह समाप्त नहीं हो रही। 2015 में तत्कालीन कांग्रेस महासचिव शकील अहमद प्रभारी रहे। इनके बाद साल 2016 कमलनाथ को ये जिम्मेदारी दी गई। जनवरी 2019 में नेता गुलाम नबी आजाद को हरियाणा प्रभारी के तौर पर नियुक्त किया गया था, इसके महज डेढ़ साल बाद ह सितंबर 2020 में आजाद की जगह विवेक बंसल को हरियाणा में प्रभारी बनाकर भेजा गया। विवेक बंसल करीब 2 साल तक इस पद पर रहे।

बंसल के बाद दिसंबर-2022 में गुजरात कांग्रेस के दिग्गज शक्ति सिंह गोहिल को प्रभारी बनाया गया। अब शक्ति सिंह गोहिल की जगह एक बार फिर से आलाकमान ने फेरबदल करते हुए दीपक बाबरिया को हरियाणा कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया है। वहीं बता दें कि हरियाणा में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है।

राज्य सभा चुनाव में हार बनी शकील अहमद की रवानगी का कारण

2016 में हरियाणा राज्यसभा के लिए वोटिंग हुई थी, कांग्रेस के खुले समर्थन के ऐलान के बाद भी उम्मीदवार आरके आनंद राज्यसभा नहीं पहुंच पाए। उस वक्त माना गया कि कांग्रेस ने परोक्ष रूप से आनंद की राह में रोड़े अटकाए। उस वक्त शकील अहमद हरियाणा के प्रभारी थे।

राज्यसभा में जीत के लिए रणनीति बनाते वक्त हाईकमान और कांग्रेस विधायकों के बीच शकील अहमद एक कड़ी का काम कर रहे थे। लेकिन पार्टी चुनाव नहीं जितवा पाई। उसी वक्त शकील अहमद को प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त करने की तैयारी हो गई थी। हरियाणा के राज्यसभा वोटिंग कांड के 24 घंटे के भीतर कांग्रेस ने प्रभारी शकील अहमद की छुट्टी कर दी। उनके बाद कमलनाथ हरियाणा के कांग्रेस प्रभारी बने थे।

राज्यसभा चुनाव में हार के बाद विवेक बंसल को भी जाना पड़ा

विवेक बंसल का हरियाणा में बतौर प्रभारी कार्यकाल संतोषजनक नहीं रहा। हरियाणा कांग्रेस के आपसी कलह के बीच वो भी विवाद का हिस्सा रहे। राज्यसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार अजय माकन की हार ने एक तरह से उनकी हरियाणा से रवानगी की पटकथा लिख दी थी। चुनाव में क्रॉस वोटिंग के चलते अजय माकन को हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद माकन और भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनसे खासे नाराज थे। हुड्डा खेमे ने क्रॉस वोटिंग को लेकर किरण चौधरी पर भी आरोप लगाए। हुड्डा खेमे ने कहा कि चुनाव के दौरान वो जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर पाए । इसके चलते पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। किस विधायक ने क्रॉस वोटिंग की थी, ये आज तक पार्टी की तरफ से औपचारिक तौर पर सार्वजनिक नहीं किया गया।

अनुभवी गुलाम नबी आजाद भी सुलह नहीं करवा पाए

गुलाम नबी आजाद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के करीबी थे। मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ के बाद आजाद को हरियाणा का प्रभारी लगाया गया था, लेकिन न तो वह पार्टी को सत्ता में ला पाए और न ही गुटबाजी कम कर पाए। उनके समय में गुटबाजी चरम पर रही, जिसे कांग्रेस हाईकमान ने कुमारी सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर खत्म करने का प्रयास किया। बावजूद इसके आजाद हरियाणा में पार्टी संगठन को खड़ा नहीं कर पाए। आजाद ज्यादातर समय दिल्ली में देते थे, यहां वो औपचारिकता महज ही निभा पाए।

जानिए कौन हैं अब नए प्रभारी दीपक बाबरिया

कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया

नए प्रभारी दीपक बाबरिया मूल रूप से गुजरात के रहने वाले हैं। उनको राजनीतिक उठापटक का काफी अनुभव है और उनकी गिनती बाबरिया कांग्रेस के पुराने नेताओं में होती है। वो ऑल इंडिया कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी भी रह चुके हैं। इसके अलावा इससे पहले वो मध्य प्रदेश कांग्रेस के इंचार्ज की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। फिर साल 2020 में उन्होंने मध्य प्रदेश इंचार्ज पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उनके स्थान पर मुकुल वासनिक को एमपी का प्रभारी नियुक्त किया गया था। अब उनके सामने हरियाणा कांग्रेस के पटरी पर लाने और पार्टी के तमाम दिग्गजों के बीच जारी कलह को खत्म करने की विराट चुनौती है।

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Amit Sood

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