डॉ. रविंद्र मलिक, Haryana News (Haryana Air Quality Index) : उत्तर भारत के कई राज्यों में इन दिनों वायु प्रदूषण काफी खराब हो चुका है। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में स्थिति काफी चिंताजनक है। हरियाणा में स्थिति अब दिल्ली से भी बदतर होती जा रही है। प्रदेश के दर्जनभर से ज्यादा जिलों में वायु प्रदूषण खतरे से ऊपर चल रहा है। इसके पीछे पराली जलाने को जिम्मेदार बताया जा रहा है।
हालांकि सरकार व संबधित विभाग का दावा है कि पराली के मामलों में बेहद कमी आई है और पिछले कुछ सालों की तुलना में पराली जलाने के मामले काफी कम हैं। लेकिन फिलहाल प्रदेश में जिस तरह की आबोहवा बेहद दूषित है, ऐसे में यह सांस के मरीजों पर भारी पड़ रही है। हालात ये हैं कि प्रदेश के अस्पतालों में सांस के मरीजों की ओपीडी बढ़ी हुई है। इसके अलावा हार्ट के मरीजों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उनके लिए सांस लेना दुश्वार हो गया है। ये भी बता दें कि दिवाली के बाद प्रदेश की आबोहवा निरंतर खराब हुई है और पराली जलाने के चलते भी प्रदूषण बढ़ा है।
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध 4 नवंबर के आंकड़ों को देखें तो प्रदेश 10 जिले ऐसे हैं, जहां वायु प्रदूषण खतरनाक लेवल (रेड जोन) पर पहुंच चुका है। इन सबसे जगह एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 400 पार है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आने वाले हरियाणा के कस्बे बहादुरगढ़ में एक्यूआई 448 था जो कि दिल्ली से भी ज्यादा था। इसके बाद दूसरे नंबर पर हिसार है जहां पर एक्यूआई 444, फतेहाबाद में 432, फरीदाबाद में 430, गुरुग्राम में 420, भिवानी में 419, रोहतक में 415 और मानेसर में 400 हो चुका है। करीब आधा दर्जन जिले ऐसे रहे है, जिनमें एक्यूआई 300 से 400 के बीच में रहा। ऐसे में अंदाजा लगाना सहज है कि वायु प्रदूषण किस स्तर तक बढ़ चुका है।
प्रदूषित हवा के चलते लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। इसके अलावा आंखों में जलन भी हो रही है। इसके साथ कई जगह स्मॉग भी बन रही है और इसमें कार्बन डाइआॅक्साइड, नाइट्रोक्साइड वे सल्फर डाइआॅक्साइड जैसी जहरीली गैसों का मिश्रण होता है। इन गैसों के चलते वीक एसिड बनता है। इसके चलते सांस लेने में तकलीफ और आंखों में जलन होती है। स्मॉग के चलते आंखों में जलन, एलर्जी और आंखों में बार-बार पानी आने के मरीज लगातार अस्पतालों की ओपीडी में आ रहे हैं। स्मॉग से खांसी, गले और छाती में संक्रमण आदि बीमारियां भी होती हैं।
डाक्टरों का कहना है कि लोगों को ज्यादा भीड़-भाड़ वाली जगहों में जाने से बचना चाहिए। जितना संभव हो सके, घरों से बाहर न निकलें। इसके अलावा बाजार में खुले में बिक रही खाने-पीने की चीजों के सेवन से बचना चाहिए। अगर दोपहिया वाहन पर कहीं जा रहे हैं तो हेलमेट के आगे शीशा होना सुनिश्चित करें और घर से बाहर निकलने की स्थिति में आंखों पर चश्मा जरूर लगाएं। अगर आंखों में जलन हो रही है तो पानी से धो लें। अगर पानी बार-बार आ रहा है और नहीं रुक रहा हो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। डॉक्टर की सलाह के बिना किसी दवाई की इस्तेमाल न करें।
वहीं दूसरी तरफ मामले पर पंजाब का हट्ठी रवैया बरकरार तो है ही, साथ में वहां की आप सरकार पूरे मामले पर राजनीतिक रोटियां सेंकने से कतई बाज नहीं आ रही। पराली जलाने के मामलों के चलते प्रदूषण तो बढ़ा ही है, लेकिन गौरतलब है कि साल 2022 में अब तक पंजाब में हरियाणा से 10 गुना से ज्यादा पराली जलाने की घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं। हरियाणा ने पराली जलाने की घटनाओं को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया गया है।
सरकार के अथक प्रयासों के फलस्वरूप 2022 में केवल 2377 घटनाएं दर्ज की गई हैं। जबकि इस बार पंजाब में 24,146 घटनाएं हुई हैं। इस प्रकार, हरियाणा में पंजाब के मुकाबले 10 प्रतिशत से भी कम मामले दर्ज किए गए हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आप की दिल्ली सरकार जहां पहले वायु प्रदूषण के लिए हरियाणा और पंजाब दोनों को जिम्मेदार मानती थी, वो अब केवल हरियाणा पर पराली को लेकर आरोप लगा रही है। इसका कारण है पंजाब में भी आप की ही सरकार है।
वहीं इस बारे में प्रो रविंद्र खैवाल (कॉम्युनिटी मेडिसिन, पीजीआई, चंडीगढ़) का कहना है कि दिल्ली में फिलहाल जो प्रदूषण है, उसमें पराली जलाने के चलते करीब 30 फीसदी तक का योगदान है। सिस्टम आफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) पुणे, के आंकड़ों में स्पष्ट हो चुका है। अन्य राज्यों में इस तरह का आकलन होना चाहिए। हालांकि हरियाणा में पराली जलाने के मामले कम हुए हैं और इसके चलते होने वाले प्रदूषण में कमी आई है। प्रदूषण के जिम्मेदारी अन्य फैक्टर पर भी काम करने की जरूरत है। पॉल्यूशन बढ़ने के चलते दमा व सांस के मरीजों की ओपीडी भी बढ़ती है।
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