India News (इंडिया न्यूज़), Haryana Ambala Big News, चंडीगढ़ : हरियाणा के जिला अंबाला से एक बड़ी खबर सामने आई है। जी हां, धर्मेंद्र सिंह (रिंकू) मुलतानी जर्मनी से वाया पाकिस्तान होते हुए भारत पहुंचा। मुलतानी गाड़ी में 10,000 किलोमीटर का सफर तय करते हुए जर्मनी समेत 12 देश कवर करते हुए 16 दिनों के बाद भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से अपने देश में पहुंचा। मुलतानी की इस एक तरफ की यात्रा पर लगभग 5 लाख रुपए खर्च हुए हैं।
धर्मेंद्र सिंह मुलतानी ने जानकारी देते हुए बताया कि वह मूल रुप से अंबाला के बराड़ा का रहने वाला है, लेकिन पिछले 23 वर्षों से जर्मन रह रहा है। उनका परिवार बराड़ा में ही रह रहा है। पिछले कई साल से उनके मन में सवाल उठ रहा था कि क्यों न गाड़ी में ही भारत तक का सफर करूं। लगभग ढाई साल पहले उसने पूरी प्लानिंग तय की। इसके बाद 13 नवंबर 2023 को जर्मन से गुरुद्वारा में माथा टेककर भारत के लिए रवाना हुआ। 23 नवंबर को पाकिस्तान पहुंचे और
जर्मनी से सफर शुरू करने के बाद चेकरिपब्लिक, स्लोवाकिया, हंगरी (यूरोप), सबेरिया, गुलगारिया, तुर्की, ईरान व पाकिस्तान से होते हुए अटारी बॉर्डर से भारत में प्रवेश किया।
रिंकू मुलतानी 10 दिन तक पाकिस्तान में अपने दोस्त के पास ठहरे। मुलतानी को जर्मनी की नागरिकता मिली हुई है। भारत लौटने के लिए रिंकू को ईरान और पाकिस्तान का टूरिस्ट वीजा लेना पड़ा। रिंकू ने बताया कि जर्मनी से पाकिस्तान-भारत के बॉर्डर तक पहुंचने के लिए उसकी पैजेरो क्लासिक गाड़ी में 1200 लीटर तेल की खपत हुई। उसने जर्मनी से अपना सफर शुरू किया। उसके बाद चेक रिपब्लिक, स्लोवाकिया, हंगरी (यूरोप), सबेरिया, गुलगारिया, तुर्की, ईरान पहुंचा। इसके पश्चात पाकिस्तान में 10 दिन बीताने के बाद अटारी बॉर्डर से भारत में एंट्री की। मुलतानी का मूल रुप से पाकिस्तान के ननकाना साहिब का रहने वाला दोस्त भूपेंद्र सिंह भी जर्मनी में रहता है।
मुलतानी ने बताया कि ईरान के बाद बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में थोड़ी दिक्कत आई। पाकिस्तान के पंजाब में इतना प्यार मिला कि वह कभी भूला नहीं सकता। दरअसल, उसका दोस्त भूपेंद्र सिंह लवली मूल रुप से पाकिस्तान के ननकाना साहिब का रहने वाला है। उसी ने वीजा दिलाने में उनकी मदद की। जब वह अपने दोस्त के साथ 23 नवंबर को पाकिस्तान के ननकाना साहिब पहुंचा तो वहां के लोगों ने बहुत सम्मान दिया।
मुलतानी ने बताया कि उसके दादा तारा सिंह और दादी शानकौर शेखुपुरा पिंडीदास (पंजाब पाकिस्तान) में रहते थे, जबकि मुलतान में उसके रिश्तेदार रहते थे। भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो उसके दादा-दादी को अपना घर बार सब छोड़कर आना पड़ा। उसकी बचपन से ही तमन्ना थी कि जहां दादा-दादी रहते थे, मौका मिलेगा तो वह जरूर देखूंगा। वह अपने दोस्त की मदद से 10 दिन पाकिस्तान में रुका। यहां उसने ननकाना साहिब, लाहौर, लालपुर, फैसलाबाद का दौरा किया। मुलतानी के मुताबिक, जिस गांव में उसके पूर्वज रहते थे, वहां कुछ नहीं मिला। गुरुद्वारा भी नहीं रहा। सिर्फ नेम प्लेट लगी हुई थी। अंदर मुस्लिम परिवार रह रहा है। परिजनों से जो सुना था, माहौल बहुत चेंज हो चुका है।
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