डॉ. रविंद्र मलिक, Haryana News (Haryana News Vidhan Sabha Building issue) : हरियाणा और पंजाब में कई मुद्दों को लेकर घमासान चल रहा है। पहले से जहां एसवाईएल (SYL) में हिस्सेदारी नहीं मिलने पर हरियाणा निरंतर इसकी मांग उठाता रहा है तो अब पंजाब हरियाणा को इसके हिस्से का पानी देने से इनकार कर रहा है।
अब मामला केंद्र द्वारा हरियाणा को नई विधानसभा की इमारत के लिए जमीन मंजूर किए जाने के बाद गरमाया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हरियाणा को नई विधानसभा इमारत के लिए जमीन दिए जाने को सहमति दे दी है। हरियाणा ने केंद्र सरकार के इस कदम को जहां सराहनीय बताया तो वहीं दूसरी तरफ पंजाब के सभी पार्टियों के नेता हरियाणा के पक्ष में आए केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ खड़े हो गए हैं। Haryana News Vidhan Sabha Building issue
मामला इतना तूल पकड़ गया है कि अब यह चर्चा भी जारी है कि कहीं विधानसभा की नई इमारत का मुद्दा भी एसवाईएल की तरह लटक न जाए। पिछले 3 दिनों से दोनों राज्य में सभी पार्टियों के नेता मामले को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता के अलावा भाजपा जजपा के सभी नेताओं ने फैसले की तारीफ की है, वहीं पंजाब की आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस ने इस फैसले को बिल्कुल गलत बताया।
मामला जहां सियासी बन गया है तो वहीं दूसरी तरफ दोनों राज्यों के बीच भी खाई बढ़ती जा रही है। बता दें कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी ने मामले को लेकर अपना स्टैंड क्लियर नहीं किया और नई विधानसभा इमारत के लिए जमीन देने के केंद्र के फैसले पर पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक बयान अब तक नहीं आया।
मामले को लेकर जहां हरियाणा में भाजपा व सहयोगी जजपा लगातार कह रही है कि सरकार के इस फैसले के बाद हरियाणा को फायदा मिलेगा तो वहीं मुख्य विपक्षी दल में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का मानना है कि नई विधानसभा इमारत बनाने से हरियाणा का चंडीगढ़ पर दावा कमजोर होगा। हरियाणा को पुरानी विधानसभा में ही अपनी पूरी हिस्सेदारी के लिए प्रयास जारी रखनी चाहिए। अगर हरियाणा नई विधानसभा इमारत बनाता है तो ये गलत होगा।
प्रदेश सरकार को राजधानी पर क्लेम कमजोर नहीं करना चाहिए।
60-40 के अनुपात में हरियाणा का चंडीगढ़ पर पूर्ण अधिकार है। अगर इसी अनुपात में हरियाणा को अलग राजधानी बनाने के लिए मुआवजा मिले तो वह लाखों करोड़ों रुपए बनता है। अगर इसी अनुपात में हरियाणा को मुआवजा और हिंदी भाषी क्षेत्र मिलते हैं तो हरियाणा अपनी अलग राजधानी बनाने के लिए तैयार है, लेकिन मौजूदा सरकार लगातार प्रदेश के अधिकारों पर कुठाराघात करने में लगी है। अपनी ही राजधानी में विधानसभा की जमीन के लिए केंद्र सरकार ने 10 एकड़ जमीन की 500 करोड़ रुपए की कीमत लगाई है। इससे स्पष्ट है कि सरकार चंडीगढ़ पर हरियाणा के अधिकार को कमजोर कर रही है।
वहीं दूसरी तरफ यह भी बता दें कि वर्तमान विधानसभा इमारत में हरियाणा की हिस्सेदारी 40 फीसदी है, लेकिन यहां भी स्थिति उलट है। जब हरियाणा अलग हुआ तो जो हिस्सेदारी हरियाणा के लिए निर्धारित की गई थी, वह आज तक नहीं दी गई। हरियाणा को निर्धारित की गई 40 फीसदी में से केवल 27 फीसदी जगह ही दी गई है, जबकि बची हुई 13 फीसदी जगह पर अब भी पंजाब का कब्जा है। हरियाणा सरकार द्वारा बार-बार आवाज उठाए जाने के बाद भी पंजाब बाज नहीं आ रहा और हरियाणा के हक पर कब्जा किए हुए है।
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55 साल से हरियाणा को उसे कर्मचारियों के लिए विधानसभा में पूरी जगह तक नहीं मिल सकी, हरियाणा विधानसभा में करीब 350 कर्मचारियों के लिए जगह की कमी के चलते स्थिति यह है कि एक कमरे में 4 से 5 कैबिन बनाए गए हैं। इसके अलावा प्रदेश के मंत्रियों के लिए विधानसभा में रूम तक नहीं है। उनको भी वहां लांज में ही बैठना पड़ता है। विधानसभा की कार्यशैली भी जगह की कमी के चलते निरंतर प्रभावित हो रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के अलावा किसी भी मंत्री के लिए कमरा नहीं है।
साल 2025 में परिसीमन होना है। इसके बाद प्रदेश में विधायकों की संख्या बढ़नी तय है। फिलहाल हरियाणा में विधायकों की संख्या 90 है और इसके बाद संख्या बढ़कर 126 हो जाएगी। जब 90 विधायकों को बैठने में ही दिक्कत आ रही है तो फिर 126 विधायकों के लिए बैठने की जगह कहां से होगी। इस बात को लेकर भी विधानसभा स्पीकर व मुख्यमंत्री निरंतर चिंता जाहिर करते रहे हैं और समय-समय पर केंद्र से उनकी मांग रही है कि नए परिसीमन को देखते हुए हरियाणा के लिए जरूरी इंतजामात किए जाएं।
हरियाणा विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता (gian chand gupta) ने कहा कि प्रदेश को विधानसभा इमारत में आज तक निर्धारित 40 फीसदी हिस्सा नहीं मिला। पंजाब निरंतर जबरन कब्जा जमाए हुए है। हरियाणा को विधानसभा की नई इमारत के लिए जगह को मंजूरी मिल चुकी है।
लेकिन साथ में बता दें कि हरियाणा वर्तमान विधानसभा में अपनी हिस्सेदारी नहीं छोड़ेगा। पंजाब जो कर रहा है वह किसी भी हालत में सही नहीं कहा जा सकता। चाहे एसवाईएल की बात हो या पंजाब यूनिवर्सिटी या फिर विधानसभा या फिर सचिवालय, पंजाब ने हरियाणा को कभी उसका उचित हिस्सा नहीं दिया है।
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