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Haryana Pavilion in Gita Mahotsav : हरियाणा की कुम्हार कला को जीवंत कर रहा है हरियाणा पैवेलियन

  • मटके, मटकी, कुल्हड़ी, दीया, सुराही और कसोरे बनाकर दिखा रहा है कुम्हार

डॉ. राजेश वधवा, India News (इंडिया न्यूज़), International Gita Mahotsav, चंडीगढ़अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग द्वारा आयोजित हरियाणा पैवेलियन में हरियाणा की कुम्हार कला को लाइव चॉक पर कुम्हार से जुड़ी विषय-वस्तुओं को बनाते हुए प्राचीन परम्परा को जीवंत कर रहा है हरियाणा पैवेलियन। हरियाणा पैवेलियन हरियाणवी लोक संस्कृति का ऐसा केन्द्र बन चुका है जिसमें हरियाणा की समस्त कलाएं जीवंत हो उठी हैं।

हरियाणा पैवेलियन के संयोजक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि लोक जीवन में कुम्हार का काम मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करना है। आरम्भ में मनुष्य ढाक, केले आदि के पत्तों पर भोजन करने और पानी पीने के काम लेता था। धीरे-धीरे पत्थर और लकड़ी को कांट-छांटकर काम चलाऊ पात्र बनाए, यज्ञ आदि के समय आज भी पत्थर की कूंडी, लकड़ी का सरोहा आदि काम में लाए जाते हैं।

वैदिक कालीन साहित्य में मिलता है कुम्हार के पात्रों का वर्णन

उन्होंने बताया कि कुम्हार के पात्रों का वर्णन वैदिक कालीन साहित्य में मिलता है। मिट्टी, मृत्तिका या गृदा के पात्र मानव समाज की बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति का परिणाम है। इसके निर्माता को ब्रह्मा या प्रजापति के समान माना गया। ब्रह्मा जिस प्रकार सृष्टि के जीवधारियों का जन्मदाता माना जाता है, उसी प्रकार कुम्भकार भी मिट्टी के पात्र, खिलौने आदि बनाकर एक सृष्टि की रचना करता है। अंतर इतना ही है कि ब्रह्मा अपनी सृष्टि में प्राण फूंक सकने में सक्षम है तथा कुम्भकार की अपनी सीमाएं हैं।

डॉ. पूनिया ने कहा कि कुम्भकार या कुम्हार द्वारा मिट्टी के पात्रों का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। पात्र बनाने के लिए कुम्हार कईं स्थानों से उपयुक्त मिट्टी एकत्र करता है। शीतकाल में जोहड़ की तलहट की मिट्टी चिकनी भी होती है तथा इससे निर्मित घड़े का पानी भी शीतल होता है। पृथ्वी की प्रकृति के अनुसार कुछ स्थानों की मिट्टी चिकनी होती है। कुम्हार गहरे गड्ढों में नीचे से चिकनी मिट्टी निकालता है। कुम्हार इन्हें कुम्हारधने कहते हैं। हरियाणा पैवेलियन में कुम्हार की परम्परा को जीवंत रखा गया है। यहां पर लाईव चॉक के माध्यम से कुम्हार मटके, मटकी, कुल्हड़ी, दीया, सुराही, कसोरे बनाकर दिखा रहा है। डॉ. पूनिया ने कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का प्रयास हरियाणा की लोक संस्कृति को युवाओं से जोड़ना है और इस कडी में हम कामयाब भी हुए हैं।

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