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Haryana Polls 2024 : कुमारी सैलजा की नाराज़गी पर सस्पेंस… चुनावी प्रचार से अभी तक है दूर *

• LAST UPDATED : September 23, 2024

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  • कुमारी सैलजा और हुड्डा के बीच की अंतर्कलह बनती जा रही चुनौती

कनिका कटियार, India News Haryana (इंडिया न्यूज), Haryana Polls 2024, नई दिल्ली : हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए कुमारी सैलजा और हुड्डा के बीच की अंतर्कलह दिन-प्रतिदिन चुनौती बनती जा रही है। चुनावी प्रचार में कुमारी सैलजा पार्टी के लिए कोई प्रचार नहीं कर रही, बल्कि दिल्ली में मौजूद अपने समर्थकों से मुलाकात करती नज़र आ रही है।

Haryana Polls 2024 : कांग्रेस की अंतर्कलह का भाजपा को मिल रहा फायदा

कांग्रेस पार्टी के भीतर दोनों नेताओं की लड़ाई पार्टी के लिए चुनौती बनती नज़र आ रही है, जिसका फ़ायदा भाजपा हरियाणा में उठाने की कोशिश कर रही है। बीते दिन सैलजा को लेकर लगातार प्रचार न करने को लेकर चर्चाएं अब तेज़ी से बढ़ती नज़र आ रही हैं।बीजेपी सैलजा की नाराज़गी और दलित वोटर को लुभाने की कोशिश में लगी है, वहीं कांग्रेस बीजेपी को घेरने में लगी है यह कह रही है कि बीजेपी अपना घर संभाले।

भाजपा दे चुकी है सैलजा को पार्टी में आने का खुला ऑफर

बीजेपी हरियाणा में कांग्रेस पर आक्रामक तौर से हमलावर है। बीते दिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनहोहर लाल हो या नायब सिंह सैनी दोनों सैलजा को बीजेपी में शामिल होने का ऑफर दे चुके हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव में कुमारी सैलजा और हुड्डा के बीच की लड़ाई अब बीजेपो को बार-बार कांग्रेस को घेरने और दलित विरोधी जैसे आरोप का मौक़ा दे रही है। बीजेपी के नेता लगातार सैलजा को बीजेपी में शामिल होने जैसे ऑफर देते नजर आ रहे हैं जिसपे अभी तक कुमारी सैलजा ने चुप्पी नहीं तोड़ी।

कांग्रेस से सैलजा परिवार का गहरा रिश्ता

कुमारी सैलजा का खानदान कांग्रेस में शुरुआत से रहा है। सैलजा के पिता शुरू से कांग्रेस में रहे थे और राजीव गांधी के समय से वह कांग्रेस पार्टी में अपनी राजनीति करते रहे थे और उनके जाने के बाद सैलजा ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की और वह लगातार हरियाणा की सियासत से लेकर दिल्ली तक की राजनीति करती चली आ रही है। वह पांच बार कैबिनेट मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, महासचिव और सांसद जैसे बड़े पदों पर रह चुकी है और वर्तमान में वह दिल्ली से लेकर हरियाणा की राजनीति में बड़े चेहरों में गिनी जाती है।

… सैलजा कभी भी कांग्रेस नहीं छोड़ेगी

वहीं सैलजा के करीबी सूत्रों की मानें तो सैलजा कभी भी कांग्रेस पार्टी नहीं छोड़ेगी। सैलजा को जानने वाले जानते हैं कि उसके खून में कांग्रेस है। बीजेपी और खट्टर उनके बारे में अफवाह फैलाकर केवल दलित वोट बैंक को साधने और कांग्रेस की छवि ख़राब करने की कोशिश कर रहे हैं।

सैलजा ने अपनी नाख़ुशी कांग्रेस आलाकमान को शुरु से बताई हुई है। पार्टी आलाकमान को शुरु से सैलजा और हुड्डा की बीच अंतर्कलह एयर लड़ाई के बारे में पता है। कई बार यह लड़ाई कांग्रेस अध्यक्ष खरगे और राहुल गांधी तक पहुंची, लेकिन उस वक्त आश्वासन के साथ चुप करवा दिया गया।

सैलजा की नाराज़गी के ये हैं बड़े कारण

  • दरअसल, टिकट बंटवारे में संख्या से ज़्यादा मन की सीट न मिल पाना और हुड्डा के लोगों को दी गई तर्ज़ी बड़ा कारण।
  • नारनौंद सीट उनके सबसे करीबी नेता कैप्टन अजय चौधरी को टिकट नहीं मिली इसलिए सैलजा हताश।
  • उकलाना सीट यहां से वो खुद लड़ना चाहती थी, लेकिन उनके समर्थक को भी नहीं मिली और न उनको लड़ने दिया गया।
  • सैलजा के खिलाफ रैलियों में अपशब्दों का प्रयोग किया गया और वह हुड्डा समर्थकों की ओर से हुआ।
  • सैलजा समर्थकों का आरोप है कि जहां हुड्डा समर्थकों को टिकट नहीं मिला वहां हुड्डा समर्थक निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं और यह एक-सोची समझी रणनीति है।
  • 12 सितंबर को लिस्ट आने के बाद से सैलजा ने खुद को चुनाव प्रचार से दूर रखा है। हालांकि, वह दिल्ली में लंबे अर्से से रहकर अपने समर्थकों के साथ लगातार बैठकें जरूर कर रही है।
  • इस विवाद को देखें तो अभी तक यह मामला सुलझा नहीं है, इसलिए सैलजा का हरियाणा में प्रचार का अभी कोई कार्यक्रम नहीं बना।

कांग्रेस जानकारों का यह भी कहना है कि इस बार सैलजा आसानी से नहीं मानेगी।  जिस तरह उन्होंने लगातार प्रचार और चुनाव से ख़ुद को दूर रखा हुआ है वह आसानी से बिना आलाकमान के आश्वासन के नहीं मानेगी।

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इस पूरे मामले पर कांग्रेस आलाकमान सब कुछ जनता है, लेकिन आलाकमान की ओर से भी वेट एंड वॉच की परिस्थिति बनी हुई है। हरियाणा के चुनावी प्रचार में अभी तक हरियाणा कांग्रेस के तीनों नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला एक साथ नज़र नहीं आए जिसके कारण ज़मीन पर इसका नुक़सान कांग्रेस को झेलना पड़ रहा है। वहीं बीजेपी इस मुद्दे का लाभ उठाती नज़र भी आ रही है। इस रणनीति के तहत किस पार्टी को फ़ायदा और किसको नुक़सान यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे, लेकिन कांग्रेस के लिए यह लड़ाई एक बड़ी चुनौती बनती नज़र आ रही है।

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