इंडिया न्यूज़, पानीपत
श्री गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व पर 24 अप्रैल को पानीपत में विशाल कार्यक्रम आयोजित किया गया है। अपने जीवनकाल में गुरु महाराज कई बार हरियाणा के गांवों और शहरों में आए और धर्म प्रचार किया, आज यहां पर ऐतिहासिक गुरुद्वारे स्थित हैं। हरियाणा सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि 400वें प्रकाश पर्व पर प्रदर्शनी में इन गुरुद्वारों की झलक तो मिलेगी ही साथ गुरु साहिब के हथियारों को भी प्रदर्शित किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी द्वारा अपने प्रिय शिष्य संत चाचा फग्गुमल साहेब जी को भेंट की गई सदैव यादगारी शस्त्र आज भी गुरुद्वारा चाचा फग्गुमल साहेब जी में धरोहर के रूप में स्थापित है। इसकी झलक पानीपत में आयोजित हो रहे 400वें प्रकाश पर्व पर मिलेगी।
प्रवक्ता ने बताया कि “बिहार के प्रमुख सिख ऐतिहासिक स्थान गुरुद्वारा बाबा फग्गुमल साहिब जी में हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर जी से संबंधित कई धरोहर हैं। संत चाचा फग्गुमल साहिब जी की अरदास पर 1666 ई. में जब श्री गुरु तेग बहादुर पातशाही जी परिवार एवं संगत के साथ चाचा फग्गुमल साहिब जी के स्थान पर आएं तो गुरु जी के स्नान करने के लिए संत चाचा फग्गुमल साहिब जी ने एक पत्थर की चौकी बनवाई जिस पर गुरुजी 21 दिनों तक सासाराम प्रवास के दौरान नित्य स्नान किया करते थे। जो आज भी गुरुद्वारा चाचा फग्गुमल साहिब जी में संगत के दर्शन के लिए विराजमान है।”
इसी दौरान संत बाबा फग्गुमल साहिब जी द्वारा निर्मित रिहाइश पर ना रुकते हुए गुरु तेग बहादुर जी ने अपने घोड़े पर सवार होकर उनकी कुटिया के एक छोटे से दरवाजे से प्रवेश कर संत फग्गुमल साहिब को बाबा जी का मान बख्शा। तब से पूरी दुनिया में संत बाबा फग्गुमल साहिब के नाम से विख्यात हो गए।
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प्रवक्ता ने कहा कि “फग्गुमल साहिब जी की अरदास पर श्री गुरु तेग बहादुर जी ने सासाराम में 21 दिनों का सत्संग समागम किया। एक निर्धन अनाथ माता नित्य संत चाचा फग्गुमल साहिब जी की दर पर लंगर की सेवा किया करती थी। गुरु जी के आगमन पर दशबंध लेने के क्रम में संत चाचा फग्गुमल साहिब को निर्धनता से जूझ रही माता ने गुस्से में कूड़ा दिया था।”
“गुरु जी के विदाई समारोह में जब सभी दशबंध को पेश किया गया तो माताजी के कूड़ा को गुरु जी ने स्वयं अपने हाथों में लेकर खोला एवं उसे हिला कर मिले बेर के फल को अपने कोठी (रिहाइश) के बाहर रोपते हुए वचन किया कि माता तु निर्धन अनाथ नहीं बल्कि दुनिया कायम रहने तक मेरे साथ रहेगी। आज भी सैकड़ों साल पुराना बेर का वृक्ष गुरुद्वारा चाचा फग्गुमल साहिब जी के परिक्रमा में स्थापित है। एवं हर साल बेर का फल संगत को प्रसाद के रूप में मिलता है।
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