इंडिया न्यूज, चण्डीगढ़:
Improving Maternal and Child Mortality : हरियाणा में डिलीवरी के दौरान पहले जच्चा व बच्चा की मौत का आंकड़ा काफी ज्यादा था जिसमें अब काफी हद तक सुधार आ रहा है। कई तरह की बीमारी के चलते दोनों की मृत्यु की चांसेस ज्यादा थे जिनको ना केवल कम किया गया है। बल्कि धरातल पर भी दोनों को मोर्टेलिटी रेट (मृत्यु दर) में कई गुना तक कमी आई है। इसको सरकार व स्वास्थ्य विभाग की बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है।
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बता दें कि गत दिनों राष्ट्रीय स्वास्थ्य टीम ने प्रदेश के स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से सबसे बेहतरीन व पिछड़े जिलों के अस्पतालों का भी दौरा किया है। वहां भी इसकी पुष्टि हुई है कि जच्चा व बच्चा मृत्यु दर के आंकड़ों पहले की तुलना में कहीं ज्यादा कमी दर्ज की गई है। बता दें कि नेशनल हेल्थ मिशन, हरियाणा द्वारा जच्चा-बच्चा को लेकर कई स्कीम चलाई जा रही हैं, जिसमें टीकाकरण, डिलीवरी, उनको घर आशा वर्कर की निरंतर विजिट, इम्यूनाइजेशन समेत कई तरह के कार्यक्रम हैं।
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हरियाणा के स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से सबसे बेहतर फतेहाबाद व पिछले नूंह जिलों में नेशनल टीम ने दौरा किया। इसमें जच्चा-बच्चा के लिहाज से हर स्वास्थ्य सेवाओं का रिव्यू किया गया। दोनों जिलों में जिला अस्पतालों, सब डिस्ट्रिक्ट अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी, सब सेंटर, यूपीएचसी, स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट, न्यूट्रीशनल रिहैबिलेशन सेंटर और डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर का दौरा किया गया।
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यूं तो प्रदेश के सभी जिलों में जच्चा बच्चा मृत्यु दर में कमी आई ही है, साथ में उनके लिए स्वास्थ्य संस्थानों में सुविधाएं भी बढ़ी हैं। वहीं दें कि अगर फतेहाबाद की बात करें हर एक हजार पर पांच साल के कम आयु के 39 बच्चों की मृत्यु हो रही है। तो वहीं इसी वर्ग में फतेहाबाद में ये आंकड़ा 31 है। वहीं 12 महीने से कम आयु कैटेगरी में नूंह में 32 बच्चों की मौत हो रही है औऱ फतेहाबाद में ये आंकड़ा 28 है। वहीं 28 दिन से आयु के बच्चों की बात करें तो नूंह में ये आंकड़ा 18 है और फतेहाबाद में 21 है। इस वर्ग में नूंह में फतेहाबाद से भी बेहतर परफॉर्म किया है।
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ये भी सामने आया है कि कि नेशनल हेल्थ मिशन, हरियाणा को नसीहत दी गई है को वो अपने अतिरिक्त खर्च को नियंत्रित करे। इसको राशि को जच्चा-बच्चा के लिए चलाई जाने वाली अन्य स्कीमों में इस्तेमाल करे। बता दें कि हरियाणा में एनएचएम का सालाना बजट करीब 900 करोड़ है।
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अगर शिशु मृत्यु दर की बात करें तो 5 साल से कम आयु के बच्चों में हर 1 हजार बच्चों में से 2005 में 78 की मृत्यु हो जाती थी। इसके बाद साल 2012 में ये आंकड़ा घटकर 48 रह गया। इसके बाद 2018 में ये आंकड़ा 36 पर आ गया। इसके बाद 12 महीने से कम आयु के शिशु की बात करें तो 2015 में हर एक हजार पर 60 बच्चों की मौत हो जाती थी। फिर साल 2012 में ये संख्या 42 रह गई है। वहीं 2018 में मरने वाले बच्चों की संख्या महज 30 रह गई।
वहीं 28 दिन से कम आयु के बच्चों की बात करें यो 2005 में हर 1000 में से 35 की मौत हो रही थी। इसके बाद 2012 में आंकड़ा 28 और 2018 में 22 रह गया। ऐसे में साफ है कि 5 साल से कम आयु के बच्चों में 50 फीसद से भी ज्यादा की कमी दर्ज की गई है।
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ये भी सबके लिए राहत की बात है कि पहले डिलीवरी के दौरान या बाद में साल 2004-06 में हर 10000 हजार पर 186 माताओं की मौत हो जाती थी। इसके बाद 201-12 में आंकड़ा 146 था। पिर साल 2016-18 आंकड़ा 91 रह गया। ऐसे में साफ है कि जच्चा की मौत में करीब 33 फीसद तक की कमी आई है। ये बता दें कि सर्वे हर तीन साल के बाद होता और नया सर्वे हुआ नहीं है तो ऐसे उपरोक्त आंकड़ों का नवीनतम माना जाता है।
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