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Internal Tussle in Congress : अपनी ही पार्टी में वर्चस्व व अस्तित्व की लड़ाई रहे कई दिग्गज

PUBLISHED BY: • LAST UPDATED : November 27, 2023
  • कांग्रेस में जारी है खींचतान, हुड्डा का पलड़ा भारी तो एसआरके की तिकड़ी जुटी खुद को मजबूत करने में
  • भाजपा में भी जारी है उठापटक, बीरेंद्र सिंह लड़ रहे अस्तित्व की लड़ाई 

डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज), Internal Tussle in Congress, चंडीगढ़ : हरियाणा में अगले वर्ष विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने हैं। तमाम सियासी दल इसकी तैयारियों में जुटे हुए हैं। सभी दलों की कोशिश है कि हर हाल में जीत का परचम लहराया जाए, लेकिन इससे इतर कई पार्टियों के दिग्गजों में आपसी वर्चस्व की जंग जारी है। चाहे सत्ताधारी भाजपा हो या फिर कांग्रेस, कोई इससे अछूता नहीं है।

भाजपा में भी पिछले दिनों नए पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी हुई जिसके कई मायने  निकाले जा रहे हैं तो वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के दिग्गजों के बीच आपसी खींचतान भी कोई नई बात नहीं है। कुछ दिन पहले पार्टी की दिग्गज कुमारी सैलजा द्वारा विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई गई, साथ ही उन्होंने धुर विरोधी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लेकर भी बयानबाजी की। आने वाले चुनाव को देखते हुए ये खींचतान बढ़ने की ही संभावना है।

हुड्डा का पलड़ा, आसान नहीं विरोधी तिकड़ी की डगर

हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का पलड़ा फिलहाल भारी है। पिछले कुछ समय से वो पार्टी पर एकतरफा पकड़ बनाए हुए हैं। इस बात से हर कोई इत्तेफाक रखता है कि हरियाणा में कांग्रेस में हुड्डा का कद बड़ा है। हालांकि पार्टी के अंदर विरोधी तिकड़ी कुमारी सैलजा, किरण चौधरी और रणदीप सुरजेवाला (एसआरके) निरंतर उनको कमजोर करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनके प्रयास उस तरीके से फलीभूत होते प्रतीत नहीं हो रहे।

हुड्डा के समर्थक उनको निरंतर पार्टी की तरफ से सीएम चेहरे के रूप में परमोट कर रहे हैं तो विरोधी तिकड़ी लगातार कह रही है कि सीएम चेहरा कौन होगा, ये तो पार्टी हाईकमान तो डिसाइड करना है। दूसरी पार्टियों के दिग्गज भी गाहे-बगाहे इस बात का जिक्र करते सुनाई व दिखाई पड़ते हैं कि हरियाणा में हुड्डा ही कांग्रेस है। पार्टी हाईकमान को भी इस बात का खासा आभास है कि हुड्डा की अनदेखी नहीं की जा सकती। साथ ही पार्टी सैलजा, किरण चौधरी व सुरजेवाला को भी तवज्जो दे रही है, लेकिन धरातल पर स्थिति क्या है, ये सबको पता है।

कुमारी सैलजा और हुड्डा में जारी है खींचतान

कुमारी सैलजा कई दफा कह चुकी हैं कि वो विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती हैं। कई दिन पहले भी उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई और साथ में हुड्डा पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि वो विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छुक है, पर किस सीट से लड़ना है यह सीट भी हाईकमान ही तय करेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि पांच राज्यों के चुनाव संपन्न होने के बाद वे प्रदेश की सभी दस लोकसभा क्षेत्रों में यात्राएं निकालेंगी जिसके लिए हर नेता को निमंत्रण दिया गया।

साथ ही आगे कहा कि कौन सीएम बनेगा और कौन डिप्टी सीएम बनेगा यह नाम पार्टी हाईकमान तय करता है, हम जनता के बीच जाकर कैसे कह सकते है कि मैं सीएम बनूंगा और मैं ही डिप्टी सीएम बनाऊंगा। बता दें कि हुड्डा ने कुछ समय पहले उनकी सरकार बनने पर चार डिप्टी सीएम बनाने की बात कही थी, लेकिन सैलजा फिलहाल हुड्डा को टक्कर देने में वह इतनी मजबूत स्थिति में नजर नहीं आ रही हैं।

बीरेंद्र सिंह भी पार्टी में ही मंथन व चिंतन की मुद्रा में, जारी है अस्तित्व की लड़ाई

भाजपा के दिग्गज चौधरी वीरेंद्र सिंह पार्टी के अंदर खुद को लंबे समय से असहज महसूस नहीं कर रहे हैं और गाहे-बगाहे वो इसका अहसास व आभास दोनों दोनों करवाते रहते हैं। सीधे तौर पर उनकी सियासी जंग सत्ता में सहयोगी जजपा नेता व  डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला व परिवार से है। वो लगातार कह रहे हैं कि भाजपा को जितना जल्दी हो सके, जजपा से दामन छुड़ा लेना चाहिए, लेकिन भाजपा ऐसा नहीं कर रही है। एक बार फिर से दोनों के बीच हिसार लोकसभा व उचाना सीट को लेकर बयानबाजी जारी है।

दुष्यंत चौटाला ने अब हिसार लोकसभा सीट पर दावा ठोकते हुए कहा कि सीट पर जजपा का हक है। उन्होंने कहा कि जजपा प्रत्याशी यहां से चुनाव लड़ेगा। हिसार लोकसभा क्षेत्र मेरी कर्मभूमि है। मैं खुद उचाना सीट से विधानसभा चुनाव लडूंगा। हिसार से बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह सांसद हैं। इसी सीट पर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए कुलदीप बिश्नोई भी हिसार सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। वहीं, नारनौंद सीट से पूर्व विधायक और पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु भी यहां सक्रिय नजर आ रहे हैं। बीरेंद्र सिंह भी निरंतर दोनों सीटों पर दावा ठोक रहे हैं।

भाजपा में भी खींचतान का आभास, मनोहर लाल सबसे मजबूत

भाजपा में समय समय खींचतान दिख ही जाती है। पिछले दिनों हरियाणा भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष मिला। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ की पद से रवानगी कर दी गई। चुनाव नजदीक हो और इस विराट फेरबदल के सियासी मायने न निकले जाएं, ये भी लाजिमी नहीं है।

नायब सैनी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। इस बात से भी सभी वाकिफ हैं कि वो सीएम की गुड बुक्स में हैं और पद पर उनको बैठाने में सीएम मनोहर लाल की मुख्य भूमिका रही। उन्होंने पार्टी में अपने राजनीतिक कद का ट्रेलर भी दिखा दिया। वो पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी हैं और ये भी करीब करीब साफ हो चुका है आने वाला चुनाव पार्टी उनकी लीडरशिप में ही लड़ेगी। वहीं इससे परे मुख्यमंत्री मनोहर लाल और होम मिनिस्टर अनिल विज के बीच की दूरियां भी धरातल पर आ ही जाती हैं।

क्या राजस्थान के नतीजों से तय होगा हरियाणा गठबंधन का भविष्य

सत्ता में सहयोगी जजपा ने राजस्थान में 25 सीटों पर चुनाव लड़ा। दुष्यंत चौटाला ने चुनाव प्रचार में दमखम भी लगाया। एक जगह प्रचार के दौरान कहा भी कि भाजपा को वोट नहीं देनी। चूंकि हरियाणा में दोनों मिलकर सरकार चला रहे हैं तो यहां नजरिया थोड़ा अलग माना जा रहा है।

सीएम मनोहर लाल भी कह चुके हैं कि वो राजनीतिक बयान था और राजस्थान का मामला है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजस्थान चुनाव के परिणााम का असर हरियाणा में गठबंधन पर भी पड़ सकता है। राजनीति में किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। बाकी चीजें तो फिर परिणाम आने के बाद ही साफ हो पाएंगी।

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