इशिका ठाकुर, India News Haryana (इंडिया न्यूज), International Gita Mahotsav : कुरुक्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती पर भारत के विभिन्न राज्यों की संस्कृति के साथ अनेक शिल्पकार भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं। कश्मीर से भी शिल्पकार अपनी पश्मीना शॉल लेकर अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में पहुंचे हैं, जहां वह दर्शकों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
कुरुक्षेत्र ब्रह्मसरोवर पर अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के दौरान अलग-अलग राज्यों की संस्कृति के साथ-साथ उनकी कलाकृतियों को भी देखने का मौका मिल रहा है जो अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में चार चांद लगा रही हैं। कश्मीर से शाह मुर्तजा शिल्पकार पहुंचे हैं, जिसकी पश्मीना शॉल अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में अलग ही रंग बिखेर रही है।
शाह मुर्तुजा का कहना है कि वह पिछले 7 -8 साल से गीता जयंती पर आ रहे हैं और लोगों का भरपूर प्यार उन्हें हर वर्ष मिलता है। उन्होंने कहा कि पश्मीना उनकी पहचान है। एक शॉल बनाने में करीब 9 से 12 महीने का समय लगता है, इसलिए इसकी कीमत लाखों रुपए में होती है।
उन्होंने कहा कि अगर पश्मीना की बात करें तो इससे महंगे दाम की पश्मीना भी आती है लेकिन खरीदारों को देखते हुए इससे महंगी शॉल लेकर वह यहां नहीं आते। उन्होंने कहा कि इस बार वह 230000 रुपए तक की शाल अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर लेकर पहुंचे हैं और पश्मीना शॉल की शुरुआती कीमत 9000 से शुरू होती है।
आपको एक बार फिर से बता दें कि अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2024 में कुरुक्षेत्र शहर में देश के अलग-अलग राज्यों से शिल्पकार पहुंचे हुए हैं और ब्रह्मसरोवर के चारों ओर अपनी प्रदर्शनी लगाए हुए हैं। ये प्रदर्शनी, शिल्प और क्राफ्ट मेला गीता महोत्सव में आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है वहीं कश्मीर से आए हुए शिल्पकारों की पश्मीना शॉल पर्यटकों का मन मोह रही है।
इस शॉल की खास बात ये है कि इसे बनाने में काफी ज्यादा मेहनत और तकरीबन साल भर का वक्त लगता है। इसकी कीमत भी लाखों रुपए में होती है। अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर कश्मीर से आए हुए शिल्पकार ने बताया कि वे पिछले 8 सालों से अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में आ रहे हैं। उनके परिवार के सदस्य पिछले कई दशकों से पश्मीना शॉल बनाने का काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पश्मीना शॉल इतनी गर्म होती है कि कश्मीर की वादियों में भी इंसान को जैकेट की जरूरत नहीं पड़ती। अकेली यह शॉल सर्दी को रोकती है। जितना इस पर वर्क किया जाता है, उतनी ही इसकी कीमत बढ़ती जाती है। इसकी खासियत को देखते हुए बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इसकी मांग रहती है वहीं भारत के भी प्रत्येक कोने में उनकी शॉल जाती है।
शिल्पकार ने बताया कि उन्हें कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं। राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर के अवार्ड से भी वे सम्मानित किया जा चुके हैं। पश्मीना शॉल के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि ये मुगल काल के वक्त से काफी ज्यादा मशहूर है। उस वक्त के जो राजा थे, वे इसका इस्तेमाल किया करते थे।
उन्होंने बताया कि शॉल बहुत ही मुलायम और गर्म होती है। जो एक छोटी सी अंगूठी में से भी आसानी से निकल जाती है। जिसके चलते पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले लोग इसको ज्यादा पसंद करते हैं। सर्दी से बचाने के लिए ये बहुत ही ज्यादा कारगर होती है। इसकी खासियत ऐसी होती है कि ये एक छोटी सी अंगूठी में से भी ये शॉल आसानी से निकल जाती है। अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर लोग इसे खूब पसंद कर रहे हैं।
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