India News (इंडिया न्यूज), Asthma Symptoms And Prevention : अस्थमा एक ऐसी समस्या है जो एडल्ट आबादी के साथ ही बच्चों को भी प्रभावित करती है। इसी बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से मैक्स मेड सेंटर पानीपत में मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग के डॉक्टरों ने एक अवेयरनेस सेशन आयोजित किया। मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप मेडिसिन विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर इंद्र मोहन चुग इस मौके पर मौजूद रहे। डॉक्टर चुग ने अस्थमा के इलाज में रोग के सही वक्त पर पता चलने और दवाओं की अहम भूमिका के बारे में बताया। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी, 1990-2019) की स्टडी से पता चलता है कि पूरी दुनिया में अस्थमा के जितने मामले हैं उसके करीब 13.09% भारत में हैं।
लक्षणों और अस्थमा से बचाव के बारे में मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप मेडिसिन विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर इंद्र मोहन चुग ने कहा, ”अस्थमा मुख्य रूप से 5-17 साल के बच्चों को अपनी चपेट में लेता है, और ये समस्या अक्सर कम उम्र में शुरू होती है। आनुवंशिकी, रेस्पिरेटरी इंफेक्शन, एलर्जी और प्रदूषक जैसे विभिन्न कारणों के चलते बच्चों में ये समस्या बढ़ती है। अस्थमा यंग एडल्ट आबादी को भी हो सकता है।
खासकर, 20 और 30 एज ग्रुप के लोगों, मिडिल एज आबादी भी अस्थमा की गिरफ्त में आ सकती है। हालांकि, बुजुर्ग आबादी में ये समस्या आम नहीं है। अस्थमा के लक्षणों में घरघराहट, खांसी, सांस लेने में कठिनाई, सीने में जकड़न, बलगम आना, थकान, नींद सही न होना और गंभीर मामलों में कम ऑक्सीजन के कारण सायनोसिस भी हो जाता है। लक्षणों को जल्दी पहचान कर, समय पर इलाज लेकर अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति को आने वाली समस्याओं से बचाया जा सकता है।”
सभी उम्र के लोगों में अस्थमा होने के कई तरह के कारण होते हैं। वायु प्रदूषण जैसे धुआं, गाड़ियों का धुंआ, फैक्ट्रियों से निकलने वाले दूषित पदार्थ और घर के अंदर की एलर्जी जैसी चीजों से अस्थमा हो सकता है। बचपन में रेस्पिरेटरी इंफेक्शन से अस्थमा पनप जाता है, इनमें रेस्पिरेटरी सिंशियल वायरस (आरएसवी) और राइनोवायरस अस्थमा से जुड़े होते हैं। इसके अलावा मोटापा, केमिकल या धूल के बीच काम करने से भी व्यक्ति में ये समस्या घर सकती है।
डॉक्टर चुग ने आगे कहा, ”अस्थमा की समस्या से बचाव के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जिसमें दवाओं के साथ लाइफस्टाइल में बदलाव भी शामिल होता है। ब्रोन्कोडायलेटर जैसी दवाओं से अटैक के दौरान सांस की नली के आसपास की मांसपेशियों को राहत मिलती है, जबकि एंटी-फ्लेमेटरी दवाएं सांस की नली की सूजन को कम करती हैं। लाइफस्टाइल में बदलाव जैसे स्वस्थ वजन बनाए रखना और तनाव मुक्त रहना भी इसमें अहम होता है। एक क्रोनिक कंडीशन होने के नाते अस्थमा की गहन देखभाल की जरूरत होती है, ताकि जीवन के अवरोध कम किए जा सकें। इस जागरूकता सत्र के माध्यम से मैं ये कहना चाहूंगा कि रोग के अर्ली डायग्नोज और तुरंत इलाज के जरिए प्रभावकारी रणनीतियों को अमल में लाया जा सकता है।”
डॉक्टर इंद्र मोहन चुग भी पानीपत के मैक्स मेड सेंटर में हर महीने के पहले गुरुवार को ओपीडी में आते हैं और मरीजों को देखते हैं। डॉक्टर चुग की ओपीडी सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक लगती है।
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