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Mission 2024 : विस चुनाव से पहले अस्तित्व व सत्ता की लड़ाई में एक-दूसरे पर दबाव व संतुलन की राजनीति

  • जजपा कर रही लगातार 46 सीट व 51 फीसदी वोट की अपील, बीरेंद्र सिंह व बेटे का कहना कि गठबंधन महज स्थिरता के लिए हुआ था

  • हिसार सीट पर 3 राजनीतिक परिवार अस्तित्व की लड़ाई में एक-दूसरे पर बना रहे दबाव

डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Mission 2024, चंडीगढ़ : अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा में विधानसभा चुनाव भी लंबित है। तमाम दल इनकी तैयारियों में जुटे हुए हैं। सत्ताधारी भाजपा संगठन को मजबूत करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है, वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा इनेलो भी सत्ता में वापसी के लिए तमाम प्रयत्न करी रही है। इसी कड़ी में देखने में आ रहा है कि चाहे सत्ता में सहयोगी हों या फिर एक-दूसरे के सियासी दुश्मन, कोई भी एक-दूसरे पर दबाव बनाने का मौका नहीं छोड़ रहा। ये तमाम राजनीतिक चाल सत्ता के लिए चली जा रही है। सभी दलों के नेता चाहे पार्टी के अंदर और बाहर, दोनों जगह सियासी विरोधियों के खिलाफ दबाव बनाने के लिए प्रयासरत हैं।

जजपा का 46 सीट व 51% वोट पाने का दावा, दिल्ली दूर की कौड़ी

पिछले साढ़े 3 साल से भाजपा के साथ कदमताल कर सत्ता का स्वाद चखने वाले जजपा व मुख्य सत्ताधारी दल भाजपा में कई दफा खटास की खबरें धरातल पर आई हैं। ऐसा आभास हो रहा था कि दोनों के बीच गठबंधन तब टूटा-अब टूटा। इसी कड़ी में पिछले दिनों एनडीए की बैठक में जजपा को भी बुलाया गया तो पार्टी को भी राहत की सांस मिली। भाजपा की तरफ से गठबंधन तोड़े जाने के दबाव से मुक्ति मिली।

कई मुद्दों पर अपने वोट कैडर की नाराजगी झेल रही जजपा को बूस्ट मिला। पार्टी पिछले कुछ समय से लगातार कह रही है कि अबकी बार संपूर्ण सत्ता के जरूरी 46 सीट लानी है और कम से कम 51 फीसदी वोट पाना है। ऐसे में जजपा भी रणनीति के तहत लगातार दावा कर रही है कि अबकी बार फुल फ्लेज सत्ता में आना है। उसका कहीं न कहीं ये दावा भाजपा पर दबाव बनाने के लिए भी है। पार्टी के अध्यक्ष अजय चौटाला के ताजा बयान को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। बेशक फिलहाल के लिए भाजपा ने गठबंधन को विराम देने की चर्चाओं पर विराम लगा दिया हो, लेकिन आगे के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।

हिसार सीट पर अभी से घमासान, एक-दूसरे पर हावी होने का प्रयास

हिसार सीट पर कुलदीप बिश्नोई की ओर से पिछले दिनों चुनाव लड़ने की इच्छा जताई गई। उन्होंने एक तरह से यहां से चुनाव लड़ने की अपनी महत्वाकांक्षा पार्टी के सामने जाहिर कर दी। इसी सीट पर चौधरी बीरेंद्र सिंह और दुष्यंत चौटाला का परिवार भी चुनाव लड़ते रहे हैं। कुलदीप के बयान को लेकर बीरेंद्र सिंह के बेटे और भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह ने कहा कि कुलदीप बिश्नोई सीनियर नेता हैं, चुनाव लड़ना चाहें तो कोशिश करें, मेरी तैयारी पूरी है। हालांकि उनका ये भी कहना है कि फिलहाल तो चुनाव दूर है और टिकट बंटवारे को लेकर भी अभी कुछ नहीं है। वहीं इसी सीट पर दुष्यंत चौटाला का परिवार भी चुनाव लड़ता रहा है। वो खुद यहां से सांसद रहे हैं। वो लगातार इस सीट पर नजर बनाए हुए हैं।

सत्ता में शामिल राजनीतिक परिवारों में भी घमासान की स्थिति, भाजपा के हाथ मोहरे

फिलहाल प्रदेश के तीन बड़े राजनीतिक परिवार सत्ता सुख भोग रहे हैं। इनमें दुष्यंत व उनकी पार्टी जजपा गठबंधन में हैं। बदले में वो बतौर डिप्टी सीएम राजपाट में हिस्सेदारी रखते हैं। उनके अलावा दो और राजनीतिक परिवार भाजपा में ही हैं। चौधरी बीरेंद्र सिंह भाजपा में हैं और केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। फिलहाल उनके बेटे भाजपा के हिसार से सांसद हैं। आने वाले चुनाव को लेकर उनकी महत्वाकांक्षा भी जग जाहिर है।

वहीं कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस को छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं। उनके बेटे भव्य आदमपुर से विधायक हैं। ये तीनों राजनीतिक परिवार भाजपा से किसी न किसी तरह से जुड़े हैं। भाजपा वेट एंड वॉच की पॉलिसी पर चलते हुए समय व जरूरत के लिहाज से तीनों के साथ सियासी समीकरण साध आगे बढ़ रही है। यहां जरूरत इन तीनों राजनीतिक परिवारों की भी है। किसी को राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखना है तो किसी को सत्ता में वापसी करनी है। लेकिन फिलहाल इन तीनों की स्थिति को देखते हुए भाजपा का पैर ऊपर है।

क्या जजपा के साथ गठबंधन लोकसभा चुनाव तक, आगे की रणनीति पर मंथन बाद में

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। अभी तो साफ नहीं है कि हरियाणा में लोकसभा विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे या फिर लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव होंगे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर लोकसभा चुनाव पहले हुए तो भाजपा के साथ जजपा का गठबंधन यहीं तक सीमित हो सकता है। इस पर भी जजपा लगातार नजर बनाए हुए है।

अगर गठबंधन रहता है तो जजपा सीटों पर मोल भाव तो करने में गुंजाइश नहीं रखेगी। वहीं दूसरी तरफ चौधरी बीरेंद्र सिंह की भी राजनीतिक हालात पर लगातार नजर है। अगर भाजपा गठबंधन को लंबा रखना चाहेगी तो इस स्थिति में बीरेंद्र सिंह को कुछ अलग रास्ता चुनने पर मजबूर होना पड़ सकता है। हालांकि वो खुद व बेटे बृजेंद्र सिंह लगातार कह रहे हैं कि गठबंधन महज सरकार को स्थिरता देने के लिए हुआ था और आगे अभी कुछ तय नहीं है।

दबाव के साथ-साथ संतुलन की राजनीति भी जारी

वहीं भाजपा का मुख्य टारगेट लोकसभा चुनाव मिशन 2024 को फतेह करना है। राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह से 26 राजनीतिक दल एक बैनर के तले आए हैं, उससे कहीं न कहीं भाजपा की परेशानी बढ़ी है। ऐसे में भाजपा को कहीं न कहीं छोटे दलों का सहारा लेना पड़ा। इसी कड़ी में जजपा को एनडीए की बैठक में बुलाया गया था।

इसके अलावा पार्टी को जजपा की जरूरत पड़ोसी राज्य राजस्थान में पड़ सकती है। फिलहाल जजपा को भी गठबंधन की जरूरत है। इसी तरह से भाजपा को कुलदीप बिश्नोई से राजस्थान में काफी उम्मीद हैं तो भाजपा के जरिए कहीं न कहीं कुलदीप अस्तित्व बचाए रखने में सफल रहे। कमोबेश यही स्थिति बीरेंद्र सिंह के मामले में है। लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा को बीरेंद्र सिंह के महत्व का अहसास है। वहीं अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए बीरेंद्र सिंह को भाजपा से सहारे की पूरी उम्मीद है। ऐसे में एक-दूसरे पर दबाव के साथ संतुलन बनाए रखने का भी खेल जारी है।

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