सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार अगर मेरी मांग को पहले ही मान लेती तो आज कुछ मांगें तो होती ही नहीं। न मुकदमे वापस लेने की मांग आती, क्योंकि तब तक किसानों पर झूठे मुकदमे दर्ज नहीं हुए थे। न ही इस आंदोलन में अपनी जान की कुर्बानी देने वाले करीब 700 किसानों को आर्थिक मदद और नौकरी देने की मांग होती, क्योंकि उन किसानों के परिवार में अंधेरा नहीं होता, करीब 700 परिवारों के चिराग नहीं बुझते। न लखीमपुर खीरी कांड होता न गृह राज्य मंत्री के इस्तीफा देने की मांग उठती।
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दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि उन्होंने बार-बार सरकार को अगाह किया कि राजहठ छोडकर, किसानों की मांग मान लें। आज पूरे देश के सामने एक बात स्पष्ट हो गयी है कि असली किसान कौन हैं और किसान बन कर टीवी स्टूडियो में तीन काले कानूनों समर्थन करने वाले कौन हैं।(MP Deepender Hooda) सरकार कहती है वो किसानों को समझा नहीं पायी, लेकिन सरकार दुःखी इस बात से है कि किसान पिछले दरवाजे से विधेयक लाने की उसकी मंशा को तुरंत समझ गया।
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